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बांग्लादेश: हिरासत में रखे गए लेखक की मौत की पारदर्शी जाँच की माँग 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त, मिशेल बाशेलेट. (फ़ाइल फ़ोटो)
UN Photo/Laura Jarriel
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त, मिशेल बाशेलेट. (फ़ाइल फ़ोटो)

बांग्लादेश: हिरासत में रखे गए लेखक की मौत की पारदर्शी जाँच की माँग 

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने बांग्लादेश में अदालती कार्रवाई शुरू होने से पहले, 9 महीने तक हिरासत में रखे गए एक लेखक मुश्ताक़ अहमद की मौत की पारदर्शी जाँच कराए जाने की मांग की है. लेखक मुश्ताक़ अहमद को कोविड-19 पर सरकार की जवाबी कार्रवाई की आलोचनात्मक टिप्पणियाँ, सोशल मीडिया पर साझा करने और एक लेख प्रकाशित करने के लिये हिरासत में लिया गया था. 

लेखक मुश्ताक़ अहमद को जेल के एक अस्पताल में उपचार के लिये भर्ती कराया गया था, जिसके बाद 25 फ़रवरी को उनकी मौत हो गई.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) के अनुसार बांग्लादेश में प्रशासनिक एजेंसियों ने उनक मौत की जाँच कराए जाने की घोषणा की है.

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मानवाधिकार मामलों की उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा, “सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मुश्ताक़ अहमद की मौत की त्वरित, पारदर्शी व स्वतन्त्र जाँच हो.”

उन्होंने डिजिटल सुरक्षा क़ानून की समीक्षा किये जाने का भी आग्रह किया है, जिसके तहत मुश्ताक़ अहमद पर आरोप लगाए गए थे. 

मिशेल बाशेलेट ने इस क़ानून पर तुरन्त रोक लगाने और इसके अन्तर्गत हिरासत में लिये गए उन सभी लोगों को रिहा किये जाने की मांग की है, जोकि अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के अधिकार का इस्तेमाल कर रहे थे.  

उन्होंने कहा कि अनेक यूएन मानवाधिकार संस्थाओं ने लम्बे समय से चिन्ता जताई है कि डिजिटल सुरक्षा क़ानून में स्पष्टता का अभाव है, और उसके व्यापक प्रावधानों का इस्तेमाल, सरकार की आलोचना को दण्डित करने के लिये किया जाता रहा है. 

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने उन ख़बरों पर भी चिन्ता ज़ाहिर की है जिसमें मुश्ताक़ अहमद के लिये न्याय की माँग कर रहे प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ पुलिस द्वारा कथित रूप से अत्यधिक बल प्रयोग किये जाने की बात सामने आई है.  

बताया गया है कि पुलिस की कार्रवाई में 35 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं और सात प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया है. 

मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार मुश्ताक़ अहमद की तरह एक अन्य व्यक्ति, कार्टूनिस्ट अहमद किशोर को ऐसे ही आरोपों में हिरासत में लिया जाने और उनके साथ दुर्व्यवहार किये जाने के आरोप चिन्ताजनक है.

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा है कि प्रशासन का दायित्व है कि ऐसे दावों की तत्काल, प्रभावी जाँच कराई जाए, और उनकी सुरक्षा व कल्याण सुनिश्चित किया जाए. 

अनेक लोग गिरफ़्तार

यूएन कार्यालय के अनुसार, मुश्ताक़ अहमद और अहमद किशोर, उन 11 लोगों में हैं, जिन्हें पिछले मई 2020 महीने में, कोविड-19 के बारे में कथित रूप से भ्रामक जानकारी फैलाने और सरकार द्वारा जवाबी कार्रवाई की आलोचना के आरोपों में गिरफ़्तार किया गया था. 

इन व्यक्तियों को ज़मानत नहीं मिल पाई और मुक़दमा शुरू होने से पहले लगभग नौ महीने तक हिरासत में रखा गया. 

इसके बाद 20 जनवरी 2021 उनके ख़िलाफ़ औपचारिक रूप से आरोप तय किये गए हैं. इन पर दुष्प्रचार, झूठी, भड़काऊ जानकारी और ऐसी सूचना फैलाने का आरोप है जिससे सामुदायिक समरसता भंग होने और अशान्ति फैलने का ख़तरा है.

यूएन कार्यालय के मुताबिक, पिछले सप्ताह, मंगलवार को इन सभी को अदालत में पेश किया गया, जहाँ अहमद किशोर ने आरोप लगाया है कि रैपिड एक्शन बटालियन के दो अधिकारियों ने उन्हें यातनाएँ दी. 

यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि रैपिड एक्शन बटालियन फ़ोर्स द्वारा यातना दिये जाने और दुर्व्यवहार के मामले पहले भी चिन्ता का कारण रहे हैं. 

यातना के विरुद्ध समिति (Committee Against Torture) एक स्वतन्त्र संस्था है जिसका दायित्व यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक बर्ताव और दण्ड के ख़िलाफ़ सन्धि को लागू किये जाने की निगरानी करना है. 

वर्ष 2019 में समिति ने, बांग्लादेश सरकार से एक स्वतन्त्र जाँच आयोग के गठन की सिफ़ारिश की थी, ताकि सुरक्षा बलों द्वारा यातना दिये जाने की आरोपों की जाँच की सके. 

इनमें किसी व्यक्ति को, मनमाने ढंग से गिरफ़्तार किये जाने, उनके लापता होने और न्यायेतर हत्याओं सहित अन्य आरोप शामिल हैं.