यूनेस्को: पारम्परिक, भरोसेमन्द ख़बरों के 'अस्तित्व के लिये ख़तरा' है सोशल मीडिया

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर वैश्विक रुझानों की जाँच करने वाली यूनेस्को की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि समाचार मीडिया का व्यापारिक मॉडल 'छिन्न-भिन्न' हो चुका है और इससे, हमारा सूचना का मौलिक अधिकार ख़तरे में है.
पिछले पाँच वर्षों में, समाचारों के दर्शक और विज्ञापनों से आने वाला राजस्व, दोनों ही बड़ी संख्या में इण्टरनेट के मंच की ओर चले गए हैं. केवल दो कम्पनियों - Google और मेटा (जिसे पहले फ़ेसबुक के रूप में जाना जाता था) को, वैश्विक डिजिटल विज्ञापन ख़र्च का आधा हिस्सा जा चुका है.
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने, 2016 से 2021 तक, मीडिया विकास के रुझान का विश्लेषण किया और पाया कि पाँच सालों में, विश्व स्तर पर समाचार पत्रों को विज्ञापन से मिलने वाला राजस्व आधा हो चुका है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि समाचार संगठन अक्सर पाठकों से क्लिक प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं. इन क्लिक्स से ही विज्ञापनों से होने वाली आमदनी निर्धारित होती है, और कई संगठन तो ऑनलाइन समाचारों में नई आवाज़ों के प्रसार व नए डिजिटल बिचौलियों के एल्गोरिदम के बीच ख़ुद को फंसा हुआ पाते हैं.
अध्ययन के मुताबिक़, "डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र ने प्रतिस्पर्धी सामग्री की बाढ़ ला दी है और बड़ी इण्टरनेट कम्पनियाँ इनके लिये सुरक्षित रास्ता मुहैया कराती है."
इसके अलावा, सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 2016 में 2 अरब 30 करोड़ से लगभग दोगुना होकर, वर्ष 2021 में 4 अरब 20 करोड़ हो गई है.
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि उनके पास अधिक सामग्री की उपलब्धता और अधिक आवाज़ों तक पहुँच ज़रूर है - लेकिन ज़रूरी नहीं कि उसमें पत्रकारिता की गुणवत्ता के मूल्य भी शामिल हों.
रिपोर्ट में पाया गया है कि कोविड-19 महामारी ने केवल विज्ञापन राजस्व में गिरावट, कामकाज छूटने और न्यूज़रूम बन्द होने से, स्थिति और बदतर बना दी है.
महामारी के दौरान, पत्रकारिता एक जीवन रक्षक अग्रिम पंक्ति की सेवा रही है. वहीं, कोविड-19 से सम्बन्धित झूठी सामग्री सोशल मीडिया पर तेज़ी से फैली, जबकि पत्रकारों के रोज़गार और कामकाज में कटौती से, सूचना परिदृश्य में एक 'शून्य' पैदा हो गया, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में.
यूनेस्को के विवरण के मुताबिक़, "फोंडाज़ियोन ब्रूनो केसलर की पहल, कोविड-19 ‘इन्फ़ोडेमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी’, के अनुसार, सितम्बर 2020 में, ट्विटर पर महामारी से सम्बन्धित 10 लाख से अधिक ग़लत, अविश्वसनीय या भ्रामक जानकारी भरे सन्देश पोस्ट किए गए थे."
इस बीच, 1400 पत्रकारों के बीच हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि महामारी के आर्थिक दबाव के कारण उनमें से कम से कम दो-तिहाई अब अपने कामकाज में कम सुरक्षित महसूस करते हैं.
पिछले पाँच वर्षों में, पत्रकारों द्वारा आर्थिक और ग़लत सूचना / दुष्प्रचार बाधाओं का सामना करने के अलावा, उन्हें दुनिया भर में तरह-तरह के हमलों निशाना भी बनाया जाता रहा है.
2016 से 2021 के अन्त तक, यूनेस्को ने 455 पत्रकारों की हत्याएँ दर्ज की हैं, जिन्हें या तो उनके काम के कारण या कामकाज के दौरान निशाना बना गया था. दस हत्याओं में से लगभग नौ अनसुलझी हैं, जो दुनिया भर में इन अपराधों के ज़्यादातर दण्ड मुक्त होने पर प्रकाश डालती है.
रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर, न केवल सरकारों और आपराधिक समूहों से, बल्कि निजी समर्थक वर्ग और जनता के कुछ सदस्यों से भी ख़तरा बढ़ रहा है, जो ऑनलाइन गाली-गलौज और हमले शुरू करने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं.
वास्तव में, पत्रकारों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन हिंसा में वृद्धि, एक नई और उभरती हुई प्रवृत्ति है, जिससे पूरी दुनिया में महिला पत्रकार असमान रूप से प्रभावित हैं.
2021 के यूनेस्को के एक पेपर में पाया गया कि सर्वेक्षण में शामिल दस में से सात से अधिक महिला पत्रकारों ने ऑनलाइन हिंसा का अनुभव किया था और पाँच ने ऑनलाइन धमकियों से सम्बन्धित ऑफ़लाइन हिंसा का भी शिकार होने की सूचना दी.
साथ ही, विरोध, प्रदर्शन और दंगों की कवरेज करने वाले पत्रकारों के ख़िलाफ़ हमले "चिन्ताजनक रूप से आम" होते जा रहे हैं, वहीं पत्रकारों को हिरासत में लेने की घटनाएँ भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई हैं.
कई देशों में, क़ानून इन ख़तरों से पत्रकारों की रक्षा नहीं करते हैं, और कुछ में, वो इस तरह के ख़तरों को और बढ़ाते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 2016 के बाद से, 44 देशों ने नए क़ानून अपनाए या संशोधित किये हैं जिनमें अस्पष्ट भाषा या तथाकथित भ्रामक समाचार, कथित अफ़वाहों, या "साइबर-मानहानि" जैसी कार्रवाइयों के लिये, अनुपातहीन दण्ड की व्यवस्था की गई है, जिससे इस पर कुछ स्वतः स्फूर्त लगाम लगी है.
इस बीच, 160 देशों में मानहानि के आरोप अब भी एक अपराध माने जाते हैं. चूँकि मानहानि का मामला, सिविल क़ानून के बजाय आपराधिक क़ानून के अन्तर्गत आता है, तो ऐसे में, इसे पत्रकारों को दबाने के लिये गिरफ़्तार या नज़रबन्द करने के आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
इस रिपोर्ट में, पत्रकारों को सुरक्षा देने की समिति के आँकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2021 में, 293 पत्रकारों को हिरासत में लिया गया था, जो तीन दशकों में सबसे अधिक वार्षिक संख्या थी.