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कोविड-19: सार्वजनिक स्वास्थ्य में 'अल्प-निवेश के दुष्परिणाम' उजागर

कोविड-19 संक्रमण से उबरने के बाद एक नर्स फिर से अस्पतालों में मरीज़ों की देखभाल करने में जुटी है.
© UNICEF
कोविड-19 संक्रमण से उबरने के बाद एक नर्स फिर से अस्पतालों में मरीज़ों की देखभाल करने में जुटी है.

कोविड-19: सार्वजनिक स्वास्थ्य में 'अल्प-निवेश के दुष्परिणाम' उजागर

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा है कि कोरोनावायरस संकट ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में लम्बे समय से चली आ रही निवेश की कमी को उजागर किया है. यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए आगाह किया है कि समाजों में स्वास्थ्य के महत्व पर पुनर्विचार किये जाने की ज़रूरत है. 

कोविड-19 महामारी के कारण मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली का वार्षिक सत्र सीमित कर दिया गया था जिसके बाद सोमवार को 73वें सत्र का शेष भाग फिर शुरू हुआ था. 

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संगठन के प्रमुख ने Pfizer/BioNTech वैक्सीन परीक्षणों के नतीजों का विशेष तौर पर उल्लेख किया, जो उत्साहजनक रहे हैं - परीक्षणों में पाया गया है कि वैक्सीन 90 फ़ीसदी तक असरदार है. 

महानिदेशक घेबरेयेसस ने कहा कि मौजूदा महामारी पर क़ाबू पाने के लिये वैक्सीन निसन्देह एक अहम औज़ार है.  

“इतिहास में इससे पहले कभी भी वैक्सीन पर शोध इतनी तेज़ी से आगे नहीं बढ़ा. हमें सुनिश्चित करना होगा कि इस वैज्ञानिक उपलब्धि का लाभ सभी देशों तक पहुँचाने के लिये ऐसी ही तात्कालिकता और नवाचार लागू किये जाएँ.”

“लेकिन हमें एक लम्बा रास्ता तय करना है. दुनिया इसी एक औज़ार पर अपने सारे प्रयास दाँव पर नहीं लगा सकती और अन्य उपलब्ध औज़ारों का भी इस्तेमाल करना होगा, जिन्हें थाईलैण्ड जैसे देशों ने दर्शाया है कि वायरस पर क़ाबू पाने में वे असरदार हैं.”

उन्होंने कहा कि टीकाकरण से पहले, परीक्षण किया जाना, संक्रमितों और उनके सम्पर्क में आए लोगों को अलग रखा जाना, और उपचार को पुख़्ता बनाना भी महत्वपूर्ण है. 

यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में अल्प निवेश के दुष्परिणामों को दर्शाया है. 

स्वास्थ्य संकट के कारण सामाजिक-आर्थिक संकट भी उभरा है जिससे अरबों लोगों के जीवन और आजीविका पर असर पड़ा है और वैश्विक स्थिरता व एकजुटता कमज़ोर हुई हैं. इस वजह से यथास्थिति पर लौटना विकल्प नहीं है. 

यूएन एजेंसी महानिदेशक के मुताबिक सार्वजनिक स्वास्थ्य ढाँचों में महज़ निवेश की आवश्यकता नहीं है, यह भी ध्यान रखना होगा कि हम स्वास्थ्य को कितना मूल्यवान मानते हैं.

उन्होंने ऐसेम्बली को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट किया कि अब समय आ गया है कि स्वास्थ्य देखभाल को एक लागत के रूप में नहीं बल्कि एक निवेश के रूप में देखा जाए.

यही नज़रिया एक उत्पादक, सहनशील और स्थिर अर्थव्यवस्था की नींव है. 

इस सिलसिले में उन्होंने सर्वजन के लिये स्वास्थ्य अर्थव्यवस्था पर एक परिषद की स्थापना की है जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य और टिकाऊ, समावेशी व अभिनव समाधानों पर केन्द्रित आर्थिक प्रगति के बीच सम्बन्ध पर ध्यान लगाना है. 

इस परिषद के पहले वर्चुअल सत्र में अग्रणी अर्थशास्त्रियों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों को आमन्त्रित किया जाएगा जहाँ कामकाज आगे बढ़ाने के सर्वश्रेष्ठ तरीक़ों और कार्ययोजना पर चर्चा होगी. 

महानिदेशक घेबरेयेसस के मुताबिक महामारी ने दर्शाया है कि पैथोजन सम्बन्धी सामग्री और क्लीनिक के नमूनों को साझा करने के लिये एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जिस पर वैश्विक सहमति हो.