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वनों की बहाली के लिये प्रयास, यूएन की अग्रणी भूमिका

निजेर के कुछ क्षेत्रों में ख़राब भूमि प्रबन्धन के कारण भूमि क्षरण का शिकार हुई है.
© FAO/Giulio Napolitano
निजेर के कुछ क्षेत्रों में ख़राब भूमि प्रबन्धन के कारण भूमि क्षरण का शिकार हुई है.

वनों की बहाली के लिये प्रयास, यूएन की अग्रणी भूमिका

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवँ कृषि संगठन (FAO) अगले दशक के दौरान भूदृश्य (Landscapes) और वनों को बहाल करने के प्रयास आगे बढ़ाने में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है. इन प्रयासों के तहत क्षरण का शिकार और वनों से वंचित 35 करोड़ हैक्टेयर भूमि को उबारने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा – यह क्षेत्र भारत के क्षेत्रफल के आकार से भी बड़ा है. 

यूएन एजेंसी के वनों पर आधारित अन्तरराष्ट्रीय जर्नल ‘Unasylva’ के नए संस्करण के मुताबिक दुनिया ने पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में ठोस प्रगति की है. 

‘Restoring the Earth - the next decade’ शीर्षक वाला लेख दर्शाता है कि 63 देशों, प्रान्त-स्तरीय सरकारों और निजी संगठनों ने पहले से ही 17 करोड़ हैक्टेयर से ज़्यादा वन बहाल करने के लिये संकल्प लिया है. 

क्षेत्रीय स्तर पर किये जा रहे प्रयास अफ़्रीका और लातिन अमेरिका में विशेष रूप से आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं. 

मौजूदा प्रयासों का लक्ष्य ‘बॉन चुनौती’ को हासिल करना है, जोकि दुनिया में स्वैच्छिक रूप से शुरू की गई सबसे बड़ी वन भूदृश्य को बहाल करने सम्बन्धी पहल है. यह वर्ष 2011 में शुरू की गई थी.

इन वैश्विक लक्ष्यों के तहत वर्ष 2020 तक 15 करोड़ हैक्टेयर और वर्ष 2030 तक 35 करोड़ हैक्टेयर क्षरित और वनोन्मूलित (Deforested) भूमि को फिर बहाल करना है. 

जर्नल में प्रकाशित लेख तैयार करने वाली टीम के सदस्य ने बताया कि दुनिया भर में समाजों को वनों की बहाली की अनिवार्यता को समझना होगा. 

इसके लिये विवेकशील ढँग से आर्थिक तर्क को समझना, मौजूदा और भावी पीढ़ी के लिये करुणा और प्रकृति के साथ भावनात्मक जुड़ाव का होना ज़रूरी है. 

असीमित सम्भावनाएँ

नई रिपोर्ट में मौजूदा प्रगति का आकलन करने और उसे तेज़ी से आगे बढ़ाने पर प्रक्रियाओं की सम्भावनाएँ तलाश की गई हैं. साथ ही चीन, केनया, ब्राज़ील और कम्बोडिया सहित अन्य देशों में जारी कार्य की समीक्षा की गई है. 

रिपोर्ट में बताया गया है कि बहाली की दिशा में कार्य का स्तर व दायरा किस तरह बढ़ाया जा सकता है. 

इनमें उन पहलों का भी ज़िक्र किया गया है जिनके ज़रिये उपलब्ध धनराशि को बढ़ाने, स्थानीय पक्षकारों व तकनीकी सहायता को बढ़ावा देने के प्रयास किये जा रहे हैं. 

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बताया गया है कि इन पहलों को, उनके किफ़ायतीपन, अनुकूलता, विभिन्न पारिस्थितिकी तन्त्रों में उनकी प्रासंगिकता और लागू करने में सरलता की वजह से मुख्यधारा में शामिल किये जाने की असीम सम्भावनाएँ हैं. 

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2021 से संयुक्त राष्ट्र पारिस्थितिकी तन्त्रों की बहाली के दशक की शुरुआत हो रही है. 

यह एक ऐसी पुकार है जिसके ज़रिये वर्ष 2021 में शुरू होकर 2030 तक दुनिया भर में पारिस्थितिकी तन्त्रों की रक्षा करने और उनमें फिर स्फूर्ति भरने के लिये प्रयास तेज़ किये जाएँगे.