कृषि में परागण को बढ़ावा देने में वनों का महत्वपूर्ण योगदान
मधुमक्खियों, तितलियों और अन्य जीवों द्वारा परागण क्रिया को बढ़ावा देने में वनों और वृक्षों का अहम योगदान है. संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में इन जीवों के पर्यावास क्षरण (Habitat degradation) को रोकने और जैवविविधता की रक्षा करने के लिए तत्काल उपायों की ज़रूरत रेखांकित की गई है.
विश्व भर में जंगली फूलों के पौधों की 88 फ़ीसदी प्रजातियों का परागण जीवों द्वारा किया जाता है और 70 प्रतिशत से अधिक फ़सलें भी जीव-परागण से पोषित होती हैं.
खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) और बायोवर्सिटी इन्टरनेशनल द्वारा तैयार इस रिपोर्ट का उद्देश्य वनों पर निर्भर रहने वाले परागणकारी जीव-जन्तुओं की अहमियत को दर्शाया गया है.
साथ ही वन प्रबन्धकों, भूद्श्य योजनाकर्ताओं (Landscape planners) और भूमि के इस्तेमाल से सम्बन्धित निर्णय लेने वाले अधिकारियों के लिए सुझाव पेश किए गए हैं.
यूएन एजेंसी में वन नीति और संसाधन विभाग की प्रमुख टीना वाहनेन ने बताया, “वनों में जंगली मधुमक्खियाँ, चमगादड़ें, तितलियाँ और अन्य परागणकारी जीव बसते हैं और पारिस्थितिकी तन्त्रों की रक्षा, जैवविविधता और फ़सल उत्पादन में उनकी अहम भूमिका है – और इस तरह से खाद्य सुरक्षा के लिए भी.”
उनके मुताबिक परागणकारियों की संख्या में गिरावट से वनों में वृक्षों की आनुवान्शिकी विविधता घटती है और सहन-क्षमता प्रभावित होती है.
इससे वनों के फिर से फलने-फूलने पर असर पड़ने की आशंका बढ़ जाती है.
बहुत से परागणकारी अपने घोंसलों और दाना-पानी के लिए वनों पर निर्भर हैं.
रिपोर्ट बताती है कि वनों की कटाई होने, भूदृश्य सम्बन्धी बदलावों और जलवायु परिवर्तन से होने वाला असर अब पारिस्थितिकी तन्त्रों के टिकाऊपन, खाद्य सुरक्षा और आजीविका को भी प्रभावित कर रहे हैं.
मधुमक्खियों और अन्य जीवों द्वारा पराग को एक पौधे से दूसरे पौधे में पहुँचाने की प्रक्रिया से नए फलों और बीजों का जन्म होता है और पौधे फलते-फूलते हैं. इससे खाद्य व पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलती है.
हाल के सालों में चिन्ता जताई जाती रही है कि मानव गतिविधियों के प्रभाव के कारण परागणकारी जीवों की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है और उनकी कुछ प्रजातियाँ हमेशा के लिए खो सकती हैं.
भूमि के इस्तेमाल में और भूमि प्रबन्धन के तरीक़ों मे बदलाव से परागणकारी जीवों के पर्यावासों पर दुष्प्रभाव होता है.
रिपोर्ट के मुताबिक जंगली परागणकारियों से फ़सल उत्पादन में जो सहायता मिलती है उससे पाली जाने वाली मधुमक्खियों से पूरा नहीं किया जा सकता.
यूएन एजेंसी में वन विशेषज्ञ डेमियन बर्ताण्द का कहना है कि वन और भूदृश्य के बेहतर प्रबन्धन के ज़रिये परागणकारी जीवों और जैवविविधता को प्रोत्साहन दिया जा सकता है.
“हमें परागणकारियों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी ताकि वनों व कृषि की सहनक्षमता और उत्पादकता भी बढ़ाई जा सकें.”
इस रिपोर्ट में 35 से ज़्यादा उदाहरण (Case studies) शामिल किए गए हैं.
उदाहरण के तौर पर, ब्राज़ील के कॉफ़ी उत्पादन सैक्टर में मधुमक्खियों की विविधता और वन आच्छादित क्षेत्र में गहरा सम्बन्ध है.
वहीं कोस्टा रीका में कुछ मधुमक्खियों की प्रजातियाँ सिर्फ़ वन पर्यावासों में ही पाई जाती हैं.