वनों की कटाई में कमी, लेकिन चिन्ता बरक़रार

खाद्य एवँ कृषि एजेंसी (FAO) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि पिछले तीन दशकों में विश्व भर में 17 करोड़ हैक्टेयर से ज़्यादा क्षेत्र में फैले वन लुप्त हो गए हैं. लेकिन इसी अवधि में वनों की कटाई की रफ़्तार में गिरावट भी दर्ज की गई है. रिपोर्ट में टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में वनों की अहमियत को रेखांकित करते हुए टिकाऊ वन प्रबन्धन पर भी ज़ोर दिया गया है.
खाद्य एवँ कृषि संगठन ने मंगलवार को अपनी ताज़ा रिपोर्ट, Global Forest Resources Assessment (FRA), जारी की है जिसमें वनों की कटाई सम्बन्धी चिन्ताजनक वैश्विक रुझानों के साथ-साथ अब तक हुई प्रगति का आकलन किया गया है.
Did you know the world’s forest area is decreasing, but the rate of loss has slowed?Check out our new interactive report to find out more on how #forests have changed in the last 30 years 👉 https://t.co/Pep5DaeYhs#FRA2020pic.twitter.com/eJjBgoZsds
FAO
यूएन एजेंसी की उपमहानिदेशक मारिया हेलेना सेमेदो ने कहा कि दुनिया भर में वनों पर विस्तृत जानकारी का उपलब्ध होना वैश्विक समुदाय के लिए बेहद मूल्यवान है और इससे तथ्य-आधारित नीतियों, निर्णयों व वन सैक्टर में धन निवेश सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.
रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में कुल वन क्षेत्र चार अरब हैक्टेयर से ज़्यादा है लेकिन इसमें लगातार कमी हो रही है.
यूएन एजेंसी का अनुमान है कि वनोन्मूलन (Deforestation) के कारण वर्ष 1990 से अब तक लगभग 42 करोड़ हैक्टेयर वन क्षेत्र सिकुड़ चुका है – अफ़्रीका और दक्षिण अमेरिका इससे ज़्यादा प्रभावित हैं.
पिछले 10 वर्षों में जिन देशों में वार्षिक तौर पर वन क्षेत्र में सबसे ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई है उनमें ब्राज़ील, काँगो लोकतान्त्रिक गणराज्य, इंडोनेशिया, अंगोला, तंज़ानिया, पैराग्वे, म्याँमार, कम्बोडिया, बोलिविया और मोज़ाम्बीक़ हैं.
लेकिन एक अच्छी ख़बर यह है कि वन क्षेत्र में कमी होने की दर में पिछले तीन दशकों में काफ़ी हद तक गिरावट आई है.
वर्ष 2010-2015 में वनोन्मूलन की वार्षिक दर एक करोड़ 20 लाख हैक्टेयर आँकी गई थी लेकिन 2015-2020 में यह घटकर एक करोड़ रह गई.
संरक्षित वन क्षेत्र भी अब बढ़कर 72 करोड़ 60 लाख हैक्टेयर पहुँच गया है जो वर्ष 1990 की तुलना में 20 करोड़ हैक्टेयर अधिक है.
लेकिन यूएन एजेंसी का मानना है कि चिन्ता के कारण अब भी मौजूद हैं.
वन मामलों के वरिष्ठ अधिकारी अनस्सी पेक्कारिनेन ने सचेत किया है कि टिकाऊ वन प्रबन्धन के लिये स्थापित किये गए वैश्विक लक्ष्यों पर जोखिम मंडरा रहा है.
“वनों की कटाई रोकने के लिये हमें अपने प्रयास तेज़ करने होंगे ताकि टिकाऊ खाद्य उत्पादन, ग़रीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, जैवविविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में वनों से मिलने वाले योगदान की सम्भावनाएँ पूर्ण रूप से हासिल की जा सकें, साथ ही उनसे मिलने वाली अन्य सामग्री व सेवाओं को भी सहेजा जा सके.”
वन संसाधन आकलन (FRA) नामक ये रिपोर्ट वर्ष 1990 से हर पाँच साल में प्रकाशित की जाती रही है. पहली बार इस रिपोर्ट में एक ऑनलाइन इण्टरएक्टिव प्लैटफ़ॉर्म को भी स्थान मिला है जिसमें लगभग 240 देशों व क्षेत्रों पर आधारित विस्तृत क्षेत्रीय व वैश्विक विश्लेषण उपलब्ध हैं.
यूएन एजेंसी की उपप्रमुख मारिया हेलेना सेमेदो ने बताया, “जो नए औज़ार जारी किये गए हैं उनसे हमें वनोन्मूलन और वनों के क्षरण से बेहतर ढँग से निपटने, जैवविविधता नष्ट होने की रोकथाम करने और टिकाऊ वन प्रबन्धन में सुधार लाने में मदद मिलेगी.”
यूएन एजेंसी का मानना है कि टिकाऊ विकास सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयासों की बुनियाद वनों पर भी टिकी है जिनसे लोगों व पृथ्वी को अनेक प्रकार के फ़ायदे हैं.
वनों की रक्षा करना इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि लाखों-करोड़ों लोग अपने भोजन व आजीविका के लिये उन पर निर्भर हैं.
वनों में हज़ारों प्रकार के वृक्ष, स्तनपायी पशुओं और पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं और वनों के ज़रिये जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने में भी मदद मिल सकती है.