75वाँ सत्र: पााकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने 'इस्लामोफ़ोबिया' के उभार पर चिन्ता जताई

पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने कहा है कि अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में स्फूर्ति के लिये अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत टकराव के बजाय आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया चाहिये. इमरान ख़ान ने शुक्रवार को यूएन महासभा में जनरल डिबेट को दिये सन्देश में बढ़ते 'इस्लामोफ़ोबिया' या मुस्लिम समुदाय से तथाकथित भय की भावना पर चिन्ता जताई है.
प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने यून महासभा के वार्षिक सत्र के लिये पहले से रिकॉर्ड किये अपने वीडियो सन्देश में संयुक्त राष्ट्र की 75वीँ वर्षगाँठ की अहमियत को रेखांकित किया.
“हम सभी के लिये यह समय यह चिन्तन करने का है कि क्या संयुक्त राष्ट्रों के तौर पर हम अपने लोगों से किये गए सामूहिक वादे को पूरा करने में सफल रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यवस्था की नींव के लिये मौजूद बहुआयामी ख़तरों के बीच आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता सहयोग के ज़रिये है, टकराव से नहीं.
पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने इस क्रम में बहुपक्षवाद के लिये अपना सहयोग पुष्ट किया है.
प्रधानमन्त्री ख़ान ने अपने सम्बोधन में महासभा को बताया कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान ने स्मार्ट तालाबन्दी लागू की है.
“हम ना सिर्फ़ वायरस पर क़ाबू पाने, अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने में सफल रहे बल्कि सबसे अहम बात ये है कि हमने तालाबन्दी के सबसे बदतर दुष्प्रभावों से अपने समाज के सबसे ग़रीब तबके की रक्षा की है.”
उन्होंने कहा कि इन सफलताओं के बावजूद पाकिस्तान अभी इस संकट से पूरी तरह बाहर नहीं निकला है, जैसाकि अन्य देश भी अभी इसकी चपेट में हैं.
पाकिस्तानी नेता ने महासभा को ध्यान दिलाते हुए कहा कि आपस में जुड़ी दुनिया में मानवता एक है, और कोई भी तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है.
प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने विश्व नेताओं से जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिये पेरिस समझौते में लिये गए सभी संकल्पों को पूरा करने का आहवान किया है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का कार्बन उत्सर्जन में बेहद कम योगदान है लेकिन वो जलवायु संकट से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले देशों में शुमार है.
प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने कहा कि उनका देश जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिये अगले तीन वर्षों में 10 अरब पेड़ लगाने की योजना पर काम कर रहा है.
पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने बढ़ती धार्मिक नफ़रत, उभरते राष्ट्रवाद और चरम पर पहुँचते वैश्विक तनाव पर चिन्ता जताई.
उन्होंने कहा कि इन कारणों से ‘इस्लामोफ़ोबिया’ (मुसलमानों से भय व उनसे नफ़रत) और गहरा हुआ है जिससे अनेक देशों में मुसलमानों पर हमले हुए हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि जानबूझकर भड़काए जाने और नफ़रत उकसाने पर विश्व भर में प्रतिबन्ध होना चाहिये. इस सम्बन्ध में उन्होंने महासभा से आग्रह किया कि मुसलमानों से भय व उनसे नफ़रत की भावना का मुक़ाबला करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिवस (International Day to Combat Islamophobia) की शुरुआत की जानी होगी.
प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने भारत पर राज्यसत्ता द्वारा प्रायोजित इस्लामोफ़ोबिया भड़काने का आरोप लगाते हुए कहा कि मस्जिदें ध्वस्त की गई हैं व मुसलमानों को मारा गया है, और भेदभावपूर्ण क़ानूनों की वजह से वे अपनी नागरिकता खोने के जोखिम का सामना कर रहे हैं.
“कोरोनावायरस फैलाने के लिये मुसलमानों पर झूठे आरोप लगाए गए, उन्हें तिरस्कृत और उत्पीड़ित किया गया. उन्हें चिकित्सा सुविधाओं से नकारा गया और अनेक अवसरों पर उनके व्यवसायों का बहिष्कार किया गया.”
प्रधानमन्त्री ख़ान ने कहा कि भारत में अन्य धर्म भी हाशिये पर धकेले जाने के जोखिम का सामना कर रहे हैं.
प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने कहा कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थायी शान्ति के लिये जम्मू-कश्मीर विवाद के निपटारे की आवश्यकता है, जिसे अन्तरराष्ट्रीय वैधता हासिल हो.
“सुरक्षा परिषद को एक त्रासदीपूर्ण टकराव को टालना होगा और अपने प्रस्तावों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करना होगा, जैसाकि उसने पूर्व तिमोर के मामले में किया था.”
उन्होंने सुरक्षा परिषद से इस सम्बन्ध में उपाय करने के लिये उपयुक्त कार्रवाई किये जाने की पुकार लगाई है.
प्रधानमन्त्री ख़ान ने सितम्बर में अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न धड़ों में शुरू हुई वार्ता का ज़िक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान में शरण लेने वाले अफ़ग़ान शरणार्थियों का जल्द लौटना राजनैतिक समाधान का हिस्सा होना चाहिये.
अपने सम्बोधन के समापन में प्रधानमन्त्री ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव से वैश्विक टकरावों को टालने में अग्रणी भूमिका निभाने की अपील की.
उन्होंने कहा कि इस दिशा में प्रगति के लिये शिखर वार्ता स्तर की बैठकें आयोजित की जानी होंगी ताकि क्षेत्रीय तनावों के मुद्दों व विवादों का निपटारा किया जा सके.