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कोविड-19 सर्वे: 90 फ़ीसदी देशों में ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान

वेनेज़्वेला में एक स्वास्थ्य केंद्र में एक बच्ची को वैक्सीन की खुराक दी जा रही है.
© UNICEF/William Urdaneta
वेनेज़्वेला में एक स्वास्थ्य केंद्र में एक बच्ची को वैक्सीन की खुराक दी जा रही है.

कोविड-19 सर्वे: 90 फ़ीसदी देशों में ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान

स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक ताज़ा सर्वेक्षण के नतीजे दर्शाते हैं कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण अधिकाँश देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी असर पड़ा है. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले 105 में से लगभग 90 प्रतिशत देशों में स्वास्थ्य सेवाओं में किसी ना किसी प्रकार का व्यवधान आया है जिनमें निम्न और मध्य आय वाले देशों को सबसे ज़्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. 

अनेक देशों के मुताबिक बहुत सी नियमित और चयनात्मक सेवाएँ रोक दी गई हैं जबकि निम्न आय वाले देशों में कैंसर जैसी गम्भीर बीमारियों की स्क्रीनिंग व उपचार और एचआईवी थैरेपी – के निदान व इलाज में भी जोखिम बढ़ाने वाला व्यवधान सामने आया है.   

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यूएन एजेंसी के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने बताया कि यह सर्वेक्षण ना सिर्फ़ स्वास्थ्य प्रणालियों में आई दरार को दर्शाता है बल्कि स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधानों और उन्हें बेहतर बनाने की रणनीति से सम्बन्धित जानकारी भी पेश करता है. 

“कोविड-19 सभी देशों के लिये एक सबक़ होना चाहिए कि स्वास्थ्य कोई विकल्प वाला समीकरण नहीं है. हमें आपात हालात के लिये बेहतर ढँग से तैयार होना होगा लेकिन स्वास्थ्य प्रणालियों में भी निवेश जारी रखना होगा जिससे जीवनकाल में उनकी ज़रूरतों का ख़याल रख सके.”

मार्च से जून 2020 तक ‘Rapid Assessment of Continuity of Essential Health Services During the COVID-19 Pandemic’ नामक यह सर्वेक्षण 159 देशों में कराया गया और 105 देशों से इस सम्बन्ध में जवाब प्राप्त हुए. 

इस सर्वेक्षण का उद्देश्य 25 ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं पर कोविड-19 महामारी के कारण हुए असर की समीक्षा करना और देशों द्वारा किये जा रहे उपायों के बारे में जानना था. 

सर्वेक्षण के नतीजे

सर्वे में 25 स्वास्थ्य सेवाओं पर महामारी के असर की पड़ताल की गई है जिनमें देशों को औसतन 50 फ़ीसदी सेवाओं में व्यवधान का सामना करना पड़ा.

वैश्विक महामारी का आमतौर पर सबसे ज़्यादा असर नियमित टीकाकरण कार्यक्रमों (70 फ़ीसदी), सुविधा आधारित सेवाओं (61 फ़ीसदी), ग़ैर-संचारी रोगों के निदान व उपचार (69 फ़ीसदी), परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक उपाय (68 फ़ीसदी), मानसिक स्वास्थ्य परेशानियाँ (61 फ़ीसदी), कैंसर निदान व उपचार (55 फ़ीसदी) पर हुआ है. 

इसके अतिरिक्त अनेक देशों में मलेरिया के निदान व उपचार (46 फ़ीसदी) और टीबी बीमारी का पता लगाने और उसका इलाज करने के प्रयासों को भी झटका लगने की बात सामने आई है.  

स्वास्थ्य देखभाल के तहत आने वाली कुछ सेवाएँ जैसेकि दन्त चिकित्सा और पुनर्वास सेवाएँ सरकारी प्रोटोकॉल के तहत ऐहतियाती कारणों से रोक दी गई थीं.

लेकिन अन्य स्वास्थ्य सेवाओं में आए व्यवधान से मध्यम-काल और दीर्घ-काल तक नुक़सानदेह असर होने की आशंका है. 

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सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले क़रीब एक-चौथाई देशों में जीवनरक्षक आपात सेवाओं में व्यवधान आया है. उदाहरणस्वरूप, 22 फ़ीसदी देशों में 24 घण्टे सुचारू रहने वाले आपातकालीन सेवाओं में कामकाज बाधित हुआ है.

व्यवधान के कारण

सर्वेक्षण के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं में आई रुकावट का मुख्य कारण सेवाओं की माँग व आपूर्ति में आया बदलाव है. 76 फ़ीसदी देशों में तालाबन्दी और वित्तीय मुश्किलों के कारण लोग स्वास्थ्य केन्द्रों तक नहीं जा रहे हैं, जिससे माँग घटी है. 

वहीं चयनात्मक सेवाओं (ElectiveSservices) यानि ऐसी सेवाएँ जिन्हें टाला जा सकता है, लगभग 66 फ़ीसदी देशों में स्थगित की गई हैं. 

इसके अलावा कोविड-19 के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई में स्वास्थ्यकर्मियों की पुनर्तैनाती किये जाने, तालाबन्दी के कारण सेवाओं की अनुपलब्धता और मेडिकल सामग्री व उत्पादों की आपूर्ती में आई मुश्किलों से भी सेवाओं में रुकावट आई है. 

यूएन एजेंसी के मुताबिक अनेक देशों ने सेवाओं में आए व्यवधान को दूर करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की रणनीतियाँ लागू करनी शुरू की गई हैं. 

इसके तहत स्वास्थ्य प्राथमिकताएँ तय करना, आपात सेवाओं के ज़रूरतमन्द मरीज़ों की शिनाख़्त करना, ऑनलाइन परामर्श की सेवा मुहैया कराना और सार्वजनिक स्वास्थ्य सूचना रणनीति को मज़बूत बनाना है. 

हालाँकि महज़ 14 फ़ीसदी देशों में ही चिकित्सा सेवा को निशुल्क बनाया गया है जबकि यूएन स्वास्थ्य एजेंसी ने वित्तीय मुश्किलों के मद्देनज़र मरीज़ों को निशुल्क सेवाएँ प्रदान करने की अनुशंसा की थी.