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कोविड-19: बाल संरक्षण व सामाजिक सेवाओं में व्यवधान बना चुनौती

पूर्वी यूक्रेन में सामाजिक कार्यकर्ता और मनोवैज्ञानिक की टीम बच्चों को पढ़ाई सामग्री वितरित कर रही है.
© UNICEF/Pavel Zmey
पूर्वी यूक्रेन में सामाजिक कार्यकर्ता और मनोवैज्ञानिक की टीम बच्चों को पढ़ाई सामग्री वितरित कर रही है.

कोविड-19: बाल संरक्षण व सामाजिक सेवाओं में व्यवधान बना चुनौती

स्वास्थ्य

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण घरेलू हिंसा की रोकथाम और ज़रूरी सहायता सेवाओं में आए व्यवधान से 100 से ज़्यादा देशों मे बच्चे शोषण व दुर्व्यवहार का शिकार होने के जोखिम का सामना कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के एक नए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है.  यूनीसेफ़ ने कहा है कि सरकारों को जल्द दीर्घकालीन उपायों को अपनाते हुए बाल हेल्पलाइन सेवाओं को मज़बूत बनाना होगा और सामाजिक सेवाओं में निवेश करना होगा ताकि बच्चों को इस ख़तरे से बचाया जा सके.

'Socio-economic Impact Survey of COVID-19 Response' नामक यूनीसेफ़ के इस सर्वेक्षण में कोविड-19 से सामाजिक और आर्थिक प्रभावों की पड़ताल की गई है. 

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सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 136 में से 104 देशों में बच्चों और महिलाओं की मदद के लिए सेवाओं में या तो व्यवधान आया है या फिर निलंबित किया गया है. इनमें रिपोर्ट किए गए मामलों का प्रबंधन करने और बाल कल्याण व सामाजिक कर्मियों द्वारा घर जाने सहित अन्य सेवाएँ बाधित हुए हैं. 

हिंसा की रोकथाम के लिए कार्यक्रम, बाल कल्याण एजेंसियों तक बच्चों की पहुँच और राष्ट्रीय हेल्पलाइन सेवाएँ भी प्रभावित हुई हैं. ग़ौरतलब है कि कोरोनावायरस संकट के दौरान ऐहितियाती उपायों के मद्देनज़र देशों ने क़दम उठाए हैं जिनसे इन सेवाओँ पर असर पड़ा है.  

यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक ने मंगलवार को कहा कि महामारी के दौरान तालाबंदी से बच्चों के लिए हिंसा का जोखिम बढ़ा है और उसकी क्षति को हम समझना अब शुरू कर रहे हैं. 

“स्कूलों के बन्द होने और गतिविधियों पर पाबंदी होने से कुछ बच्चे उनके साथ दुर्व्यवहार करने वालों के साथ घर तक सीमित हो गए हैं. संरक्षण सेवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर असर से बच्चों के पास कहीं जाने का साधन नहीं है.”

सर्वेक्षण के नतीजे दर्शाते हैं कि लगभग दो-तिहाई देशों में कम से कम एक सेवा गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है. इनमें दक्षिण अफ़्रीका, मलेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान सहित अन्य देश शामिल हैं. 

दक्षिण एशिया, पूर्वी योरोप और मध्य एशिया के देशों में इन सेवाओं में सबसे ज़्यादा व्यवधान आया है.  

यूनीसेफ़ का कहना है कि महामारी से पहले भी बच्चों को व्यापक रूप से हिंसा का सामना करना पड़ रहा था और विश्व में क़रीब आधे बच्चों को घर पर पिटाई या अन्य सज़ा मिलती थी.

दो से चार वर्ष की उम्र में लगभग हर चार में से तीन बच्चों को अनुशासनात्मक हिंसा झेलनी पड़ी और 15 से 19 वर्ष की हर तीन में से एक लड़की को उनके अंतरंग साथी द्वारा शोषण का शिकार हुई.

कोविड-19 के कारण अनौपचारिक मदद के नैटवर्क जैसे मित्रों, शिक्षकों, बाल देखभाल कर्मियों, परिवार और समुदाय के अन्य सदस्यों से सम्पर्क कम होने के कारण हालात और जटिल हो गए हैं. 

इन हालात में यूनीसेफ़ सरकारों और साझीदार संगठनों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण सेवाओं को जारी रखने के प्रयासों में जुटा है. 

उदाहरणस्वरूप, बांग्लादेश में यूनीसेफ़ ने निजी स्वच्छता के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को मास्क, हैण्ड सैनीटाइज़र्स और आँखों के बचाव के लिए ज़रूरी सामग्री उपलब्ध कराई है ताकि सड़कों, झुग्गियों और जलवायु प्रभावित या दूर-दराज़ के इलाक़ों में रह रहे बच्चों तक मदद पहुँचाई जा सके. 

साथ ही राष्ट्रीय बाल हेल्पलाइन सेवाओं के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की भर्ती व ट्रेनिंग पर ध्यान दिया जा रहा है. 

यूएन एजेंसी के मुताबिक बाल संरक्षण सेवाएँ पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रही थीं और विश्वव्यापी महामारी ने इस समस्या को और गहरा कर दिया है और जोखिमपूर्ण हालात में रह रहे बच्चों की सेवा के लिए मुस्तैद लोगों के हाथ बाँध दिए हैं. 

कार्यकारी निदेशक हेनरीएटा फ़ोर ने आगाह किया है कि सरकारों को जल्द दीर्घकालीन उपायों को अपनाते हुए बाल हेल्पलाइन सेवाओं को मज़बूत बनाना और सामाजिक सेवाओं में निवेश करना होगा ताकि बच्चों को हिंसा से बचाया जा सके.