एचआईवी दवाओं की क़िल्लत की आशंका, कार्रवाई की दरकार
विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण तालाबन्दी, पाबन्दियों और देशों की सीमाएँ बन्द किए जाने के कारण अगले दो महीनों में एचआईवी के उपचार में काम आने वाली दवाओं की क़िल्लत पैदा हो सकती है. एचआईवी - एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की अगुवाई कर रही यूएन एजेंसी (UNAIDS) ने इस चुनौती से निपटने के लिए सोमवार को समय रहते प्रयास करने की पुकार लगाई है.
यूएन एजेंसी का कहना है कि उपचार और ज़रूरी दवाओं के अभाव में लाखों मरीज़ों पर जोखिम मँडराने की आशंका है, विशेषत: विकासशील देशों में. साथ ही अन्य लोगों के एचआईवी से संक्रमित होने का भी ख़तरा होगा.
यूएन एजेंसी के मुताबिक जैनेरिक ऐण्टी -रैट्रोवायरल दवाइयों और उनके वितरण पर ख़तरा पैदा हो रहा है.
एजेंसी ने देशों और विनिर्माताओं के नाम एक अपील जारी करके कहा कि इसकी रोकथाम के लिए प्रयास अभी करने की आवश्यकता है.
यूएन एड्स की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयिमा ने कहा, “एण्टी-रैट्रोवायरल दवाइयों की ऊँची क़ीमतों और उपलब्धता में गिरावट की आशंका और असर से निपटने के लिए देशों द्वारा अभी योजना तैयार करना महत्वपूर्ण है.”
“मैं देशों और एचआईवी दवाओं के ख़रीदारों से तेज़ कार्रवाई का अनुरोध करती हूँ ताकि हर मौजूदा मरीज़ का इलाज जारी रह सके, ज़िन्दगियाँ बचाई जा सकें और एचआईवी संक्रमण नए लोगों में फैलने से रोका जा सके.”
सब-सहारा अफ़्रीका में जोखिम
सब-सहारा अफ़्रीका में लगभग ढाई करोड़ लोग एचआईवी संक्रमण के साथ जीवन जी रहे हैं.
यूएन एड्स ने अपने विश्लेषण के ज़रिये अनुमान लगाया है कि एण्टी-रैट्रोवायरल दवाओं के ज़रिये उपचार में छह महीने का व्यवधान आने पर महज़ सब-सहारा अफ़्रीका में एड्स सम्बन्धी लगभग पाँच लाख अतिरिक्त लोगों की मौत हो सकती हैं.
वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण कई वजहों से एचआईवी के उपचार के लिए दवाइयों के उत्पादन में लागत बढ़ रही है.
हवाई और समुद्री मार्ग से यातायात में कमी आई है, उत्पादन और परिवहन की क़ीमतों में इज़ाफ़ा हुआ है.
दवाएँ बनाने के वास्ते ज़रूरी सामग्री के लिए नए स्रोत की तलाश की जा रही है और कोरोनावायरस सँकट के कारण आर्थिक मोर्चे पर भारी व्यवधानों का सामना करना पड़ रहा है.
यूएन एजेंसी का मानना है कि इन क़ीमतों में अगर 10 से 25 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी होती है तो महज़ भारत से निर्यात होने वाली ऐण्टी-रैट्रोवायरल दवाएँ पहले की तुलना में प्रतिवर्ष 10 से 22 करोड़ डॉलर तक महँगी हो सकती हैं.
एचआईवी दवाओं के उत्पादन के क्षेत्र में एशियाई देशों में भारत का प्रमुख स्थान है.
विश्व भर में जानेरिक ऐण्टी-रैट्रोवायरल दवाइयों का 80 फ़ीसदी उत्पादन देश के आठ विनिर्माता द्वारा किया जाता है.
यूएन एजेंसी का कहना है कि वर्ष 2018 में एचआईवी की चुनौती पर पार पाने के लिए वित्तीय संसाधनों में सात अरब डॉलर कमी दर्ज की गई थी. ऐसे में एड्स पर असरदार कार्रवाई और निवेश में दुनिया अब एक और बोझ सहन नहीं कर सकती.
यूएन एजेंसी और साझीदार संगठन इसके प्रभावों से निपटने के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं. एड्स, टीबी और मलेरिया के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए वैश्विक कोष ने कोविड-19 के ख़िलाफ़ एक अरब डॉलर की रक़म जुटाने का संकल्प लिया है.