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यूएनएड्स: दुनिया, भविष्य की महामारियों के लिये, ‘बिल्कुल तैयार नहीं’

फ़नाये हायलू का कहना है कि उनकी बेटी, बैट्टी एचआईवी-मुक्त पैदा हुई थी और अब आठ साल की है. वह सुझाव देती हैं कि हर माँ व हर गर्भवती महिला को एचआईवी परीक्षण करवाना चाहिये, जिससे माँ और बच्चे का जीवन बच सके.
UNAIDS
फ़नाये हायलू का कहना है कि उनकी बेटी, बैट्टी एचआईवी-मुक्त पैदा हुई थी और अब आठ साल की है. वह सुझाव देती हैं कि हर माँ व हर गर्भवती महिला को एचआईवी परीक्षण करवाना चाहिये, जिससे माँ और बच्चे का जीवन बच सके.

यूएनएड्स: दुनिया, भविष्य की महामारियों के लिये, ‘बिल्कुल तैयार नहीं’

स्वास्थ्य

एचआईवी व एड्स पर संयुक्त राष्ट्र के साझा कार्यक्रम (UNAIDS) ने अपनी एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि विश्व नेताओं ने अगर गहरी असमानताओं से निपटने के लिये क़दम नही उठाए, तो अगले 10 वर्षों में एड्स-सम्बन्धी कारणों से 77 लाख लोगों की मौत हो सकती है. 

यूएन एजेंसी ने, एक दिसम्बर को विश्व एड्स दिवस के अवसर पर जारी रिपोर्ट में, वर्ष 2030 तक इस सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़तरे को समाप्त करने के लिये कार्रवाई का आहवान किया है.

यूएन एजेंसी ने सोमवार को कहा कि यदि परिवर्तनकारी उपाय नहीं किए गए, तो दुनिया कोविड-19 संकट में फँसी रहेगी और बेहद ख़तरनाक रूप से, भविष्य की सभी महामारियों के लिये बिल्कुल तैयार नहीं होगी.

एचआईवी व एड्स के सम्बन्ध में कुछ अहम आँकड़ों पर एक नज़र.
UN News/Pratishtha Jain
एचआईवी व एड्स के सम्बन्ध में कुछ अहम आँकड़ों पर एक नज़र.

हर दो मिनट में एक संक्रमण

यह सन्देश ऐसे समय आया है, जब संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) ने हाल ही में कहा है कि 2020 में कम से कम तीन लाख 10 हज़ार बच्चे एचआईवी से संक्रमित हुए, यानि हर दो मिनट में एक बच्चे को संक्रमण की दर से.

इसी अवधि के दौरान, एक लाख 20 हज़ार बच्चों की एड्स से सम्बन्धित कारणों से मृत्यु हो गई - हर पाँच मिनट में एक बच्चे की मौत.

यूएन एजेंसी ने अपनी नवीनतम एचआईवी और एड्स ग्लोबल रिपोर्ट (HIV and AIDS Global Snapshot) में चेतावनी दी है कि कोविड-19 महामारी उन विषमताओं को गहरा कर रही है, जो लम्बे समय से एचआईवी महामारी में भी उजागर होते रहे हैं.

इससे कमज़ोर बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के सामने, एचआईवी की रोकथाम व जीवनरक्षक उपचार सेवाओं से वंचित होने का जोखिम है.

प्रगति ‘रास्ते पर नहीं'

यूएनएड्स की कार्यकारी निदेशक, विनी ब्यानयिमा ने कहा, "एड्स महामारी के ख़िलाफ़ प्रगति, पहले से ही रास्ते पर नहीं थी, अब कोविड-19 संकट के जारी रहने से, और भी ज़्यादा पिछड़ गई है. इससे एचआईवी की रोकथाम और उपचार सेवाओं, स्कूली शिक्षा, हिंसा-रोकथाम कार्यक्रम आदि उपायों में बाधा पहुँच रही है." 

“हमें आज एड्स महामारी को समाप्त करने और भविष्य की महामारियों की तैयारी के बीच चयन करने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता. एकमात्र सफल दृष्टिकोण वही होगा, जिससे दोनों हासिल हो सकेंगे.”

यूनीसेफ़ के अनुसार, दुनिया भर में एचआईवी की अवस्था में रह रहे हर पाँच में से दो बच्चों को अपनी स्थिति का आभास नहीं है, और केवल आधे से कुछ ज़्यादा एचआईवी पीड़ित बच्चों को ही एण्टीरैट्रोवायरल उपचार (एआरटी) हासिल है.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक, हैनरीएटा फ़ोर ने कहा, "जब तक हम एचआईवी महामारी को बढ़ाने वाली असमानताएँ दूर करने के प्रयास तेज़ नहीं करते, हम एचआईवी से संक्रमित अधिकाधिक बच्चों को एड्स के ख़िलाफ़ लड़ाई हारते देखेंगे, जबकि कोविड-19 ने ये असमानताएँ और बढ़ा दी हैं."

असमानता से संक्रमण के रूप परिभाषित होते हैं

यूएनएड्स की रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी की उच्चतम दर वाले कुछ देशों ने एड्स के ख़िलाफ़ "उल्लेखनीय प्रगति" की है.

हालाँकि, इसमें बताया गया है कि नए एचआईवी संक्रमण मामलों में, महामारी को रोकने लायक अपेक्षित गिरावट नहीं हो रही है. 2020 में 15 लाख नए एचआईवी संक्रमण मामले दर्ज किये गए व कुछ देशों में एचआईवी संक्रमण दर बढ़ोत्तरी पर है.

रिपोर्ट में यह भी कहा किया कि संक्रमण, असमानता के पीछे-पीछे चल रहा है. सब-सहारा अफ़्रीका क्षेत्र के किशोरों में होने वाले हर सात नए एचआईवी संक्रमण मामलों में से, छह किशोरियों में हो रहे हैं.

समलैंगिक पुरुष और अन्य पुरुष - जो पुरुषों, यौनकर्मियों और ड्रग्स का उपयोग करने वाले लोगों के साथ यौन सम्बन्ध रखते हैं, उन्हें एचआईवी संक्रमित होने का 25-35 गुना अधिक ख़तरा होता है.

यूनीसेफ़ के अनुसार, बच्चों में नए एचआईवी संक्रमणों में से 89 प्रतिशत सब-सहारा अफ़्रीका में सामने आए, और दुनिया भर में, एचआईवी के साथ जीने के लिये मजबूर 88 प्रतिशत बच्चे व किशोर, इसी क्षेत्र से हैं.

एड्स-सम्बन्धी कारणों से बच्चों की मृत्यु होने के 88 प्रतिशत मामले भी, सब-सहारा अफ़्रीका में दर्ज किये गए.

कोविड-19 के कारण व्यवधान

यूनीसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, कई देशों को, 2020 के शुरू में, कोविड-19 के कारण, एचआईवी सेवाओं में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा.

उच्च बोझ वाले देशों में शिशुओं के एचआईवी परीक्षण में, 50 से 70 प्रतिशत की गिरावट आई है. साथ ही, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये नए उपचार की शुरुआत में भी, 25 से 50 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.

तालाबन्दी के कारण लिंग-आधारित हिंसा में बढ़ोत्तरी और पीड़ितों की देखभाल तक सीमित पहुँच होने से भी संक्रमण दर में वृद्धि हुई.

कई देशों को स्वास्थ्य सुविधा सेवाओं, मातृत्व एचआईवी परीक्षण और एण्टीरेट्रोवायरल एचआईवी उपचार में भी कटौती करनी पड़ी.

यूएनएड्स के अनुसार, सर्वेक्षण किये गए 50 देशों में से 40 में एचआईवी के साथ रहने वाले बहुत कम लोगों का ही 2020 में इलाज शुरू हो पाया.

एजेंसी के विश्लेषण के मुताबिक़, 130 देशों में से 65 प्रतिशत में, नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों को होने वाले नुक़सान में कमी लाने वाली सेवाएँ भी बाधित हुईं.

असमानता के बीच ‘बढ़ती महामारी'

UNAIDS की रिपोर्ट में, एड्स महामारी को रोकने के लिये पाँच महत्वपूर्ण उपाय, तुरन्त लागू किये जाने पर बल दिया गया है, फ़िलहाल जिन्हें प्राथमिकता नहीं दी गई है और धनराशि की भी कमी है.

इनमें, समुदाय के नेतृत्व वाले व समुदाय आधारित बुनियादी ढाँचे, दवाओं, टीकों और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों की समान सुलभता और महामारी की अग्रिम पंक्ति में कार्यरता स्वास्थ्यकर्मियों के लिये समर्थन हैं.

रिपोर्ट में यह भी दोहराया गया है कि असमानताओं को उजागर करने वाली जन-केन्द्रित डेटा प्रणाली के साथ मानवाधिकारों को महामारी प्रतिक्रियाओं के केन्द्र में रखा जाना होगा.

यूएनएड्स रिपोर्ट में, महामारी की तैयारी व जवाबी कार्रवाई के लिये स्वतंत्र पैनल की सह-अध्यक्ष, हेलेन क्लार्क ने कहा, "महामारी विभाजित समाजों की दरारों में जगह बना लेती है. महामारी को ख़त्म करने के प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते, जब तक कि विश्व के नेता ऐसे क़दम ना उठाएँ जो उन्हें ऐसा करने में सक्षम बनाए." 

हैनेरीएटा फ़ोर ने इन चिन्ताओं को सामने रखते हुए कहा, "महामारी के बाद की दुनिया में बेहतर निर्माण प्रक्रिया में एचआईवी से निपटने की कार्रवाई भी शामिल होनी चाहिये, जोकि साक्ष्य-आधारित, लोगों पर केन्द्रित, सहनसक्षम, टिकाऊ व पूर्णत: न्यायसंगत हों.

"इस अन्तराल को पाटने के लिये, इन कार्यक्रमों को एक सुदृढ़ स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और सभी प्रभावित समुदायों, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर लोगों के सार्थक जुड़ाव के माध्यम से, क्रियान्वित किया जाना चाहिये."