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परमाणु अप्रसार संधि: अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का स्तंभ

निरस्त्रीकरण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की अवर महासचिव व उच्च प्रतिनिधि - इज़ूमी नाकामीत्सू
UN Photo/Loey Felipe
निरस्त्रीकरण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र की अवर महासचिव व उच्च प्रतिनिधि - इज़ूमी नाकामीत्सू

परमाणु अप्रसार संधि: अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का स्तंभ

शान्ति और सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र अवर महासचिव और निरस्त्रीकरण मामलों पर उच्च प्रतिनिधि इज़ुमी नाकामित्सु ने ज़ोर देकर कहा है कि परमाणु अप्रसार संधि ने अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और बदलती चुनौतियों के अनुरूप उसमें बदलाव पर विचार-विमर्श होना ज़रूरी है. लेकिन संधि की मूल भावना के प्रति संकल्प को पुरज़ोर ढंग से फिर प्रकट किया जाना होगा.

यूएन अवर महासचिव 2020 समीक्षा सम्मेलन से पहले परमाणु अप्रसार संधि पर सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को जानकारी दे रही थी.

परमाणु अप्रसार संधि का मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों और परमाणु तकनीकों के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग को बढ़ावा देने और परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को हासिल करना था. वर्ष 1970 में लागू हुई इस संधि पर अब तक 191 सदस्य देश मुहर लगा चुके हैं जिनमें पांच परमाणु हथियार संपन्न देश भी शामिल हैं. वर्ष 1995 में इस संधि की मियाद को अनिश्चितकालीन अवधि के लिए बढ़ा दिया गया था

यूएन अवर महासचिव नाकामित्सु ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) को अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का एक मज़बूत स्तंभ बताते हुए कहा कि यह निरस्त्रीकरण, शस्त्र नियंत्रण और परमाणु अप्रसार के प्रयासों की अहमियत का उदाहरण है.

“सुरक्षा संधियों से इतर, बहुत कम ऐसी बहुपक्षीय संधियां हैं जो एनपीटी की सफलता के रिकॉर्ड की बराबरी कर सकती हैं. पचास सालों से इसने सभी सदस्य देशों को सुरक्षा लाभ प्रदान किया है.”

‘2020 एनपीटी समीक्षा सम्मेलन’ इस संधि के लागू होने के पचास वर्ष और इसकी अवधि अनिश्चितकालीन रूप से बढ़ा जाने के 25 वर्ष पूरे होने पर आयोजित किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि यह लम्हा ये सुनिश्चित करने का अवसर है कि संधि निरस्त्रीकरण और परमाणु अप्रसार के प्रायसों के केंद्र में रहे और सभी देशों की सुरक्षा को बढ़ावा देती रहे.

परमाणु हथियारों की होड़

उन्होंने बताया कि हाल के सालों में दुनिया में कई बदलाव आए हैं और देशों के आपसी रिश्तों, विशेषकर परमाणु-शक्ति संपन्न देशों, में दरार आई है. बड़ी ताक़तों के बीच कथित रूप से ताक़त की प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है और विभाजन, अविश्वास और संवाद की कमी आम बात हो गई है.

उन्होंने आशंका भरे शब्दों में कहा कि वर्ष 1970 के बाद पहली बार अनियंत्रित परमाणु होड़ की छाया दुनिया के ऊपर मंडरा रही है और परमाणु हथियारों के लिए अब एक नए प्रकार की दौड़ देखने को मिल रही है – जिसमें हथियारों की संख्या के बजाए तेज़ गति, गोपनीयता और अचूकता पर ज़ोर है.

“परमाणु आयामों को समेटे क्षेत्रीय हिंसक संघर्ष और ख़राब हो रहे हैं और अप्रसार की चुनौती कम नहीं हुई है.”

उन्होंने कहा कि समीक्षा सम्मेलन की सफलता के लिए यह ज़रूरी है कि इन सभी मुद्दों व चुनौतियों पर रचनात्मक बहस हो. इसके लिए उन्होंने विचार-विमर्श में इन अहम बिंदुओं पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने पर बल दिया है:

  • संधि के प्रति संकल्प को पुरज़ोर ढंग से फिर प्रकट किया जाए
  • परमाणु हथियारों का इस्तेमाल ना करने के मानदंडों के प्रति पुन: संकल्प लिया जाए
  • जोखिम घटाने के लिए कार्रवाई का एक पुलिंदा तैयार किया जाए जिससे दुनिया को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की संभावना से दूर और परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में ले जाया सके
  • परमाणु अप्रसार की चुनौतियों के बदलते रूपों की शिनाख़्त हो और उसके अनुरूप तंत्रों में बदलाव की अहमियत को समझा जाए
  • बदलती दुनिया में निरस्त्रीकरण, अप्रसार और शस्त्र नियंत्रण के लिए दूरदर्शितापूर्ण उपायों को अपनाया जाए