परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि को लागू कराने के लिये फिर पुकार

संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण प्रमुख इज़ूमी नाकामीत्सू ने कहा है कि विश्व को परमाणु हथियार मुक्त बनाना ही उन ज़िन्दगियों को सम्मानित करने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा है जो परमाणु हथियारों से ही तबाह हुई हैं. निरस्त्रीकरण प्रमुख ने बुधवार को एक वर्चुअल बैठक में ये बात कही जो हर वर्ष 29 अगस्त को मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय परमाणु परीक्षण निषेध दिवस के अवसर पर आयोजित की गई.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की तरफ़ से बोलते हुए इज़ूमी नाकामीत्सू ने कहा कि इस वर्ष उस घटना के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं जब अमेरिका ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था और अन्ततः जापान के ख़िलाफ़ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया गया था.
The legacy of #nucleartesting has profoundly affected many communities and the environment. For the sake of the victims and our collective #security, in advance of the Int'l Day #AgainstNuclearTests, I urge all states that have not done so to sign & ratify the #CTBT. #IDANT https://t.co/raNmSSXaju
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उसके बाद से तो आने वाले दशकों में कम से कम आठ देशों ने 2000 से भी ज़्यादा परमाणु परीक्षण किये हैं.
उन्होंने कहा कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर प्रभाव आज भी महसूस किये जाते हैं. “अतीत में हुए परमाणु परीक्षणों के पीड़ितों को सम्मान देने का सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा ये होगा कि भविष्य में परमाणु परीक्षणों को रोक दिया जाए.”
“जैसाकि महासचिव ने कहा है, परमाणु परीक्षण किसी अन्य युग की एक निशानी है जिसे उसी दौर में रहना चाहिये.”
अन्तरराष्ट्रीय परमाणु परीक्षण निषेध दिवस 2010 से हर वर्ष मनाया जाता रहा है. 29 अगस्त 1991 को कज़ाख़्स्तान में सेमीपलातिन्स्क स्थल को बन्द किये जाने की वर्षगाँठ होती है. ये पूर्व सोवियत संघ में सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण स्थल हुआ करता था.
1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि को अपनाए जाने के बावजूद, दुनिया भर में आज भी हज़ारों परमाणु हथियार भण्डारों में तैयार अवस्था में रखे गए हैं.
निरस्त्रीकरण के लिये संयुक्त की उच्च प्रतिनिधि सुश्री इज़ूमी नाकामीत्सू ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि मौजूदा दौर परमाणु सम्पन्न देशों के बीच लगातार बढ़ते शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों के साये में घिरा हुआ है जो परमाणु हथियारों की धार तेज़ करने में लगे हैं और कुछ मामलों तो वो इन हथियारों की संख्या बढ़ाने में व्यस्त हैं.
महासभा अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद बाँडे के अनुसार कोविड-19 महामारी ने मानवता को बचाने के लिये सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत को उजागर कर दिया है, इसमें परमाणु मुक्त विश्व को एक प्राथमिकता बनाना भी शामिल है.
वर्चुअल बैठक में न्यूयॉर्क से शिरकत करते हुए उन्होंने कहा, “मानवता का वजूद हमारे इस संकल्पबद्ध समझौते पर टिका हुआ है कि परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं हो सकता और ये हमेशा के लिये ख़त्म कर दिये जाएँ.”
“एक परमाणु मुक्त विश्व ही सभ्यता को विलुप्त होने से बचाने की सच्ची गारण्टी मुहैया करा सकता है.”
परमाणु निरस्त्रीकरण कार्यकर्ता करीना लेस्टर के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के वॉलाटिना इलाक़े में रहने वाले आदिवासी लोगों ने इस पहले ख़तरे का सामना किया जब अक्टूबर 1953 में ब्रिटेन ने वातावरण में दो अलग-अलग परमाणु परीक्षण किये.
करीना लेस्टर के अनुसार, “परमाणु परीक्षणों ने हमारे देश, हमारी परम्परागत भूमि और हमारी ज़िन्दगियों को प्रभावित किया है, और अब भी कर रहे हैं.”
उन परमाणु परीक्षणों में सुश्री करीना लेस्टर के पिता दिवंगत येमी लेस्टर की आँखों की रौशनी ख़त्म हो गई थी.
करीना लेस्टर का कहना है, “परमाणु हथियारों के परीक्षणों को बिल्कुल बन्द करने का ये बिल्कुल सही समय है. यही बिल्कुल सही समय है कि परमाणु हथियारों को बिल्कुल ख़त्म कर दिया जाए.”
परमाणु पागलपन उछाल पर
वैसे तो 184 देशों ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिये हैं,और 168 देशों ने इसे अपनी सरकारों से मंज़ूरी भी दिला दी है, मगर फिर भी ये सन्धि अभी लागू नहीं हो सकी है.
ये सन्धि तभी लागू हो सकेगी जब इसे इन आठ देशों से मंज़ूरी मिल जाए: चीन, लोकतान्त्रिक जन गणराज्य कोरिया (उत्तर कोरिया), मिस्र, भारत, ईरान, इसराइल, पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने एक बार फिर उन सभी देशों से इस सन्धि पर और देरी किये बिना हस्ताक्षर करने और मंज़ूरी देने का आहवान किया है जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है.
महासचिव ने इस दिवस के लिये अपने सन्देश में कहा, “परमाणु पागलपन एक बार फिर उछाल पर है. परमाणु हथियारों की गुणवत्ता व संख्या में सुधार पर रोक लगाने और एक परमाणु मुक्त विश्व बनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिये परमाणु परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना बहुत ज़रूरी है.”
वर्ष 2021 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि को अपनाए जाने के 25 वर्ष पूरे होंगे. इस सन्धि को पूरी तरह लागू करवाने के लिये बनाए गए संयुक्त राष्ट्र के कार्यलय के प्रमुख लैस्सीना ज़ेरबो के अनुसार डर ये है कि उम्मीद ख़त्म होती जा रही है.
उनका कहना है, “ऐसे में जबकि दुनिया भर के लोग और सरकारें कोविड-19 महामारी की तकलीफ़ों से उबरने की कोशिश कर रही हैं, आइये, हम सभी अपने भविष्य को एक बेहतर आकार देने के लिये अतीत से कुछ सबक़ सीखें.”
“कहने का मतलब ये नहीं है कि अतीत हमारे सभी सवालों के जवाब दे देगा, लेकिन इतिहास से सबक़ सीखकर हम ठोस फ़ैसले करने के क़ाबिल बन सकते हैं, और भविष्य की दिशा में बढ़ते हुए ज़्यादार प्रभावशाली रणनीतियाँ और नीतियाँ बना सकते हैं.”