हिंसक संघर्षों में बाल संरक्षण के लिए और ज़्यादा प्रयासों की दरकार
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 'बाल सैनिकों के इस्तेमाल के ख़िलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस' पर बाल संरक्षण को शांति प्रक्रियाओं में शामिल करने की अहमियत पर ज़ोर दिया है. विश्व भर में 25 करोड़ से ज़्यादा युवा हिंसक संघर्ष से प्रभावित देशों में रहने को मजबूर हैं जहां अस्पतालों व स्कूलों पर हमले होते हैं और बच्चों मानवाधिकारों के हनन के मामले लगातार सामने आते हैं.
बुधवार को सुरक्षा परिषद में एक उच्चस्तरीय चर्चा के दौरान बताया गया कि बाल संरक्षण सुनिश्चित ना होने से हिंसा के लिए उर्वर ज़मीन तैयार होने और हिंसा फिर भड़कने का जोखिम रहता है.
बाल सैनिकों के इस्तेमाल के ख़िलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस' हर वर्ष 12 फ़रवरीको मनाया जाता है. यूएन प्रमुख ने कहा कि बच्चों की हिंसक संघर्ष में कोई भूमिका नहीं है.
“अस्पतालों व स्कूलों पर हमले बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और जीवनरक्षक आपात सेवाओं तक पहुंच को रोकते हैं और परिवारों को घर छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं.”
उन्होंने दुख जताया कि युद्धक्षेत्र में बच्चों को यौन हिंसा, अग़वा किए जाने और बाल सैनिकों के तौर पर भर्ती किए जाने जैसे जोखिमों का सामना करना पड़ता है.
“इन उल्लंघनों से बच्चों, उनके समुदायों व समाजों पर लंबे समय के लिए असर पड़ता है.” उन्होंने स्पष्ट किया कि बाल अधिकारों के ये उल्लंघन हताशा को जन्म दे सकते हैं जिससे चरमपंध का रास्ता तैयार होता है और हिंसा व तनाव का कुचक्र बन जाता है.
यूएन प्रमुख ने ऐसे उल्लंघनों के मामलों के प्रति जागरूकता पर बल देते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र के निगरानी व रिपोर्टिंग तंत्र को वर्ष 2005 में स्थापित किया गया था. व्यवहार में परिवर्तन लाने, गंभीर हनन के मामलों की रोकथाम करने और बच्चों को संरक्षण प्रदान करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है.
सशस्त्र संघर्षों और बच्चों के लिए नियुक्त विशेष यूएन प्रतिनिधि के प्रयासों से अवगत कराते हुए उन्होंने कहा कि कई मुहिमों के ज़रिए विश्व में आम राय बनाने में मदद मिली है कि बच्चों का हिंसक संघर्ष में कभी इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. लेकिन उन्होंने माना कि इन तमाम प्रयासों के बावजूद गंभीर हनन के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
नए दिशा-निर्देश
इस अवसर पर यूएन प्रमुख ने मध्यस्थकारों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें हिंसक संघर्ष के हर चरण में बच्चों की ज़रूरतों व अधिकारों का उल्लेख किया गया है.
इन गाइडलाइन्स के ज़रिए मध्यस्थकार व वार्ताकार हिंसक संघर्ष का बाल अधिकारों के नज़रिए से विश्लेषण कर पाएंगे.
“शांति प्रक्रियाओं में बाल संरक्षण को शामिल करने के लिए विशिष्ट सुझावों को शामिल कर हम बच्चों व शांति के लिए ठोस नतीजों को हासिल कर सकते हैं.”
उन्होंने सभी सदस्य देशों, क्षेत्रीय व उपक्षेत्रीय संगठनों, मध्यस्थकारों और अन्य पक्षकारों से इन दिशा-निर्देशों का लाभ उठाने की अपील की है.
बुधवार को बैठक में सुरक्षा परिषद ने एक अध्यक्षीय वक्तव्य भी जारी किया है जिसमें दोहराया गया है कि सशस्त्र संघर्षों में बच्चों का संरक्षण टिकाऊ शांति व संघर्ष को सुलझाने के लिए व्यापक रणनीति का हिस्सा होना चाहिए.
अफ़्रीकी संघ में शांति व सुरक्षा के लिए कमिश्नर स्मेल चेरगुई ने कहा कि हिंसक संघर्षों के निपटारे और उनकी रोकथाम के प्रयासों के केंद्र में बच्चे होने चाहिए.
“बाल अधिकारों के हनन के मामलों पर कार्रवाई के अभाव में दंडमुक्ति, अन्याय और जंगलराज की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है जो अक्सर हिंसक संघर्ष के लिए ही ज़िम्मेदार कारण होते हैं. इससे हिंसा के फिर पनपने के लिए उर्वर ज़मीन तैयार होती है.”
हिंसक संघर्ष का बच्चों पर जबदस्त असर होता है और उनके बुनियादी मानवाधिकारों और आज़ादी पर आंच आती है. अफ़्रीकी संघ के कमिश्नर ने कहा कि मध्यस्थता और शांति प्रक्रियाओं से जुड़े सभी पक्षकारों के लिए बाल संरक्षण से जुडे प्रावधनों को शांति समझौतों में शामिल कराना अहम होगा.
शांति प्रक्रियाओं में बाल संरक्षण
ह्यूमन राइट्स वॉच संगठन में बाल अधिकारों के लिए पैरोकार निदेशक जो बेकर ने मानवाधिकारों व मानवीय संगठनों के नेटवर्क ‘वॉचलिस्ट ऑन चिल्ड्रन एंड आर्म्ड कॉन्फ़लिक्ट’ की प्रतिनिधि के तौर पर अपनी बात रखी.
उन्होंने चिंता जताई कि भले ही शांति प्रक्रियाओं में बाल संरक्षण का समावेश करने के लिए सुरक्षा परिषद में बार-बार पुकार लगाई गई हो, दुखद सच यही है कि बाल संरक्षण के प्रावधान वाले शांति समझौते दुर्लभ होते हैं. “वे अपवाद हैं, मानक नहीं हैं.”
वर्ष 1999 में पहली बार सुरक्षा परिषद में सशस्त्र संघर्ष में बच्चों के संरक्षण के मुद्दे को उठाया गया था. उन्होंने याद दिलाया कि 444 दस्तावेज़ों का एक विश्लेषण दर्शाता है कि महज़ 18 फ़ीसदी में ही बाल संरक्षण के लिए प्रावधान था.
“यह बिलकुल भी पर्याप्त नहीं है.”
उन्होंने शांति प्रक्रियाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि उनसे युद्ध समाप्त करने से कहीं ज़्यादा हासिल होता है. शांति प्रक्रिया के ज़रिए संक्रमण काल के दौरान अंतरिम फ़्रेमवर्क स्थापित किया जाता है, शांति के लिए एक राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक एजेंडा तैयार होता है, और हिंसक संघर्ष की समाप्ति के बाद निवेश व संसाधनों के आवंटन के लिए प्राथमिकताओं का खाका बनता है.
उन्होंने आगाह किया है कि इससे नए कष्टों के उभर सकते हैं और अतीत के बाल सैनिक फिर से हथियार उठा सकते हैं.
“जब बच्चों को दायरे से बाहर रखा जाता है तो उनकी ज़रूरतें और अधिकार अदृश्य हो जाते हैं.”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हिंसक संघर्ष से प्रभावित बच्चों की ज़रूरतों को शांति प्रक्रियाओं में ध्यान रखे जाने को नैतिक व क़ानूनी रूप से तो अनिवार्य है ही, स्थाई शांति के लिए भी यह अहम है.