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सशस्त्र संघर्षों का बच्चों पर बढ़ता क़हर

लड़ाकों के रूप में बच्चों की भर्ती और इस्तेमाल अब भी व्यापक स्तर पर हो रहा है.
UNICEF/Siegfried Modola
लड़ाकों के रूप में बच्चों की भर्ती और इस्तेमाल अब भी व्यापक स्तर पर हो रहा है.

सशस्त्र संघर्षों का बच्चों पर बढ़ता क़हर

मानवाधिकार

दुनिया भर में सशस्त्र संघर्षों में मारे जाने वाले और अपंग होने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2018 में 12 हज़ार का आंकड़ा पार कर गई. जब से संयुक्त राष्ट्र ने इस विषय में आकंड़ों की निगरानी करना आरंभ किया है तब से यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. सोमालिया, सीरिया, कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य और माली जैसे देशों में हिंसा बच्चों से उनका बचपन छीन रही है. सशस्त्र संघर्षों में बच्चों की व्यथा को टटोलती एक नई रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है.

साल 2018 में बच्चों और सशस्त्र संघर्षों के मामलों में 20 अलग-अलग संघर्षों में हनन के 24 हज़ार से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए.

लड़ाई के दौरान अधिकांश मामलों में बच्चों की मौत गोलीबारी, आईईडी विस्फोट और बारूदी सुरंगों की चपेट में आने से हुई.

बच्चे और सशस्त्र संघर्ष के विषय में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गांबा ने बताया, “यह बेहद दुखद है कि सशस्त्र संघर्षों में बच्चे बड़ी संख्या में पिस रहे हैं और लड़ाई की वजह से उन्हें मरते हुए या अपंग होते हुए देखना भयावह है."

"यह अति आवश्यक है कि सभी पक्ष बच्चों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए. अब और इंतज़ार नहीं किया जा सकता: लड़ाई लड़ रहे पक्षों को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए बच्चों को सुरक्षा प्रदान करनी होगी और ठोस क़दम उठाने होंगे ताकि हनन को रोका जा सकेगा.”

रिपोर्ट के अनुसार लड़ाकों के रूप में बच्चों की भर्ती और इस्तेमाल बदस्तूर जारी है और विश्व भर में सात हज़ार से ज़्यादा बच्चों का मोर्चों पर लड़ाई और अन्य गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया.

बच्चों की सैनिकों के तौर पर भर्ती के मामले में सोमालिया सबसे आगे है और उसके बाद नाइजीरिया और सीरिया का नंबर आता है.

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हालांकि रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि जिन बच्चों को आज़ाद कर दिया गया उनका आंकड़ा भी पिछले कुछ सालों में बढ़ा है और यह संयुक्त राष्ट्र और लड़ाई में शामिल अन्य पक्षों में सीधे बातचीत का नतीजा है जिससे हज़ारों बच्चों को उम्मीद की किरण नज़र आई है.

वर्ष 2018 में 13 हज़ार 600 बच्चों को रिहा किया गया और 2017 (12 हज़ार) की तुलना में यह ज़्यादा है और ऐसे बच्चों को समाज में पुनर्स्थापित करने के लिए ज़रूरी समर्थन मुहैया कराया गया है.

कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में हथियारबंद गुटों से दो हज़ार 200 से ज़्यादा बच्चों को अलग किया गया जबकि नाइजीरिया में 833 और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य में ऐसे बच्चों की संख्या 785 रही.

लड़के और लड़कियों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा के मामले (933) भी व्यापक रूप से सामने आए हैं. लेकिन आशंका जताई गई है कि उचित साधनों तक पहुंच न होने, कथित कलंक और बदले की कार्रवाई के डर के कारण कई मामलों में पीड़ित सामने नहीं आते और इस वजह से वास्तविक मामलों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है.

सोमालिया और कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य में ऐसे केस बड़ी संख्या में दर्ज किए गए हैं.

बच्चों को अगवा किए जाने के मामले जारी हैं और अपहरण के बाद उनका इस्तेमाल लड़ाई या फिर यौन हिंसा में होता है.

साल 2018 में ढाई हज़ार से ज़्यादा को अगवा किए जाने की पुष्टि हुई और इनमें आधे से ज़्यादा मामले सोमालिया में सामने आए.

स्कूलों और अस्पतालों पर हमलों के पुष्ट मामलों (1,056) में कमी देखी गई है लेकिन सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान सहित कुछ देश ऐसे हैं ज़हां इनमें बढ़ोत्तरी देखी गई है.

रिपोर्टे दर्शाती है कि स्कूलों का सैन्य रूप से इस्तेमाल किए जाने का रुझान चिंताजनक है और इससे माली जैसे देशों में बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं.

दिसंबर 2018 तक माली में 827 स्कूल बंद हो चुके हैं जिससे ढाई लाख बच्चों की शिक्षा रुक गई है.

विशेष प्रतिनिधि ने बाल संरक्षण और मानवीय राहत पहुंचाने में जुटे संगठनों और लोगों के काम की प्रशंसा की है और सभी पक्षों से अपील की है कि ऐसे संगठनों के काम में बाधा नहीं डाली जानी चाहिए.