डीआरसी: अंतरजातीय हिंसा के मामले 'युद्ध अपराध' के 'दायरे में'
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि कॉंगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) में हेमा समुदाय को निशाना बनाकर की गई हिंसा के मामलों को युद्ध अपराध की श्रेणी में परिभाषित किया जा सकता है. काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र साझा मानवाधिकार कार्यालय (UNJHRO) द्वारा की गई जांच के मुताबिक़ हेमा और लेंडु समुदाय के बीच अंतरजातीय हिंसा में 701 लोगों की मौत हुई और 168 घायल हुए जिनमें अधिकांश पीड़ित लोग हेमा समुदाय के थे.
ये हिंसा देश के पूर्वोत्तर में स्थित इतुरी प्रांत में दिसंबर 2017 और सितंबर 2019 के बीच हुई. “इसके अलावा, कम से कम 142 लोगों को यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है जिनमें अधिकतर पीड़ित लोग हेमा समुदाय के सदस्य थे.”
सितंबर 2018 से ही लेंडु हथियारबंद गुटों ने संगठित होकर हेमा और अलूर जैसे अन्य जातीय समूहों को निशाना बनाया है. बताया गया है कि उनका मक़सद हेमा समुदाय की भूमि और संसाधनों पर क़ब्ज़ा करना है.
इस रिपोर्ट में महिलाओं के साथ बलात्कार किए जाने, बच्चों के मारे जाने और गॉंवों में लूटपाट और उन्हें जलाए जाने के कई मामलों का उल्लेख है.
हिंसा का बर्बर रूप
10 जून 2019 को टोरगेस ज़िले में, हेमा समुदाय का एक व्यक्ति सशस्त्र हमलावरों को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने से रोकने की कोशिश कर रहा था. उसी दौरान हमलवारों ने उस व्यक्ति के आठ साल के बेटे का सिर धड़ से अलग कर दिया.
कई ऐसे मामलों का भी पता चला जिनमें पीड़ितों के शव क्षत-विक्षत कर दिए गए और शरीर के अंगों को काट कर उन्हें युद्ध की ट्रॉफ़ी के रूप में पेश किया गया.
रिपोर्ट कहती है कि ये हमले जिस बर्बरता से किए गए, उससे नज़र आता है कि हमलावर हेमा समुदाय को ऐसा मानसिक आघात पहुंचाना चाहते थे जिससे वे गांव छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएं और फिर वापस ना आ पाएं.
रिपोर्ट के मुताबिक़ हत्या, यातना, बलात्कार, यौन हिंसा के अन्य रूपों और लूटपाट के कुछ मामलों को युद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक़ जैसे-जैसे हिंसा में तेज़ी आई है, पिछले दो वर्षों में 57 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने पड़ोसी देश युगांडा में शरण ली है जबकि साढ़े पांच लाख से ज़्यादा लोग देश के इतुरी प्रांत में चले गए हैं.
रिपोर्ट बताती है कि जिन शिविरों और गांवों में हेमा समुदाय ने शरण ली हुई है उनमें बहुत से कैंपों पर लेंडु हथियारबंद गिरोहों ने धावा बोला और जला दिया. साथ ही स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों पर भी हमले करके उन्हें तबाह कर दिया गया.
आजीविका पर हमला
रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश हमले जून महीने - फ़सल कटाई का मौसम – और दिसंबर महीने – रोपाई का मौसम – में हुए.
“इस वजह से हेमा समुदाय के लोगों के लिए खेतों में काम करना मुश्किल हो गया और उनके सामने भोजन की कमी हो गई.”
जांचकर्ताओं ने बदले की कार्रवाई के तहत हेमा समुदाय के सदस्यों द्वारा किए गए हमलों के मामलों को भी दर्ज किया है. इनमें लेंडु समुदाय को निशाना बनाते हुए गांव जलाने की घटनाएं शामिल हैं.
प्रभावित इलाक़ों में फ़रवरी 2018 से ही सेना और पुलिस यूनिट तैनात हैं लेकिन रिपोर्ट के अनुसार वे हिंसा को रोकने में नाकाम रही हैं.
रिपोर्ट ये भी कहती है कि ख़ुद सुरक्षा बलों ने भी न्यायेतर हत्याएँ, यौन हिंसा और मनमाने ढंग से लोगों को हिरासत में लेने जैसे क्रूर कृत्य किए हैं.
न्यायालय ने अब तक दो पुलिस अधिकारियों और दो सैनिकों को दोषी क़रार दिया है.
देश में संयुक्त राष्ट्र साझा मानवाधिकार कार्यालय ने अपनी सिफ़ारिशों में सरकार से अनुरोध किया है कि हिंसक संघर्ष के मूल कारणों को सही मायनों में समझना और दूर करना आवश्यक है.
इनमें संसाधनों पर होने वाला संघर्ष बेहद अहम हैं. भूमि स्वामित्व और उसके इस्तेमाल को लेकर दोनों समुदायों के बीच मेलमिलाप के प्रयासों को रेखांकित किया गया है.
रिपोर्ट में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का आग्रह किया गया है, साथ ही पीड़ितों की घर वापसी और उनके लिए चिकित्सा व मनो-सामाजिक देखभाल सुनिश्चित करने की अनुशंसा की गई है.