इराक़: प्रदर्शनों व अशांति में नज़र राष्ट्रीय एकता की नई लहर
इराक़ में दशकों से चली आ रहे सांप्रदायिक प्रतिरोध और संघर्ष के हालात के बाद अब देशभक्ति या राष्ट्रीयता की नई भावना जड़ जमाती नज़र आ रही है, ये कहना है इराक़ में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत जिनीन हैनिस प्लासकार्ट का जिन्होंने मंगलवार को सुरक्षा परिषद को ताज़ा हालात की जानकारी देते हुए ये बात कही.
विशेष दूत ने बग़दाद से ही सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए कहा कि हज़ारों इराक़ियों ने अपनी सरज़मीन से प्रेम ज़ाहिर करते हुए सड़कों पर प्रदर्शन करने का रास्ता चुना है. इस रास्ते के ज़रिए वो अपने देश की संपूर्ण संभावनाओं को देशवासियों के फ़ायदे के लिए दोहित करने की माँग उठा रहे हैं.
Briefing by SRSG Jeanine Hennis-Plasschaert at the 8676th meeting of the UN Security Council on the situation concerning #Iraq, held via video-teleconference from #Baghdad on Tuesday, 3 December 2019.English: https://t.co/KAzqvI9At3 Arabic: https://t.co/cRtlPJFa9H pic.twitter.com/IGUuiWnIvh
UNIraq
विशेष दूत ने कहा, "हालाँकि इन लोगों को अपनी आवाज़ सुनवाने के लिए भारी क़ीमत भी चुकानी पड़ रही है." एक अक्टूबर के बाद से 400 से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो गई है और 19 हज़ार से ज़्यादा घायल हो गए.
उन्होंने बताया कि वैसे तो मौजूदा युवा पीढ़ी को याद नहीं है कि पूर्व तानाशाह शासक सद्दाम हुसैन के दौर में जीवन किस तरह का था, लेकिन वो इस बात से पूरी अवगत नज़र आते हैं कि सद्दाम हुसैन की मौत के बाद देश में क्या वादा किया गया था. और लोगों को आपस में जोड़ने वाली ताक़त के ज़रिए ये लोग ये भी जानते हैं कि एक बेहतर भविष्य मुमकिन है.
ग़ौरतलब है कि सद्दाम हुसैन को युद्धापराधों के आरोप साबित होने के बाद 2006 में फाँसी सी सज़ा दे दी गई थी.
इराक़ के लिए विशेष दूत का कहना था, "देश की मौजूदा स्थिति का आकलन इसे अतीत के संदर्भ में रखे बिना नहीं किया जा सकता लेकिन हम जो देख रहे हैं वो दरअसल अनेक वर्षों तक कोई ख़ास प्रगति नहीं होने पर इकट्ठा हुई हताशा का रूप है."
भरोसे का संकट
विशेष दूत ने कहा कि प्रदर्शनों की पहले ही रात से घटनाएँ बेक़ाबू होती चली गईं क्योंकि अधिकारियों ने जल्दबाज़ी में और अत्यधिक बल प्रयोग किया."
"हिंसा, बड़ी संख्या में लोगों का हताहत होना और वायदों को पूरा करने के लिए लंबे समय तक कुछ नहीं किया जाना - इन सभी का परिणाम भरोसे के संकट के रूप में हुआ है."
अलबत्ता इराक़ सरकार ने मकानों, गंभीर और उच्च बेरोज़गारी दर, वित्तीय संकट को सुधारने, शिक्षा क्षेत्र वग़ैरा के लिए अनेक पैकेज घोषित किए हैं लेकिन ये राहत उपाय अक्सर या तो नाकाफ़ी और बहुत देर से किए गए समझे जाते हैं या फिर ये वास्तविकता से बहुत दूर हैं.
कड़वी हक़ीक़त
यूएन अधिकारी ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि वैसे तो शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की मौतों और उनके घायल होने के लिए कोई भी वजह सही नहीं ठहराई जा सकती मगर यूएन अधिकारी इन सभी की परिस्थितियों के बारे में सूचनाएँ एकत्र करके दस्तावेज़ तैयार रह रहे हैं.
एक तरफ़ तो ये ज़रूरी है कि प्रदर्शनकारियों के साथ इस्तेमाल किए जाने वाले बल प्रयोग को कम से कम स्तर पर लाया जाए, दूसरी तरफ़ एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि जानलेवा बारूद व आँसू गैस का इस्तेमाल और लोगों को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से गिरफ़्तार करके उन्हें बंदी बनाए रखना भी जारी है. साथ ही लोगों का अपहरण, धमकियाँ और परेशान करना भी जारी है.
विशेष दूत जिनीन हैनिस प्लासकार्ट ने इन मामलों में ज़िम्मेदार पक्षों की जवाबदेही तय करने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने की अहमियत पर ज़ोर देते हुए कहा कि मूलाधिकारों की गारंटी की महत्ता को समझने की ज़रूरत है. इनमें जीवन का अधिकार और शांति पूर्ण ढंग से सभा करने व अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार शामिल हैं.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मीडिया, इंटरनेट और सोशल मीडिया को बंद करने से आम लोगों में ये धारणा बनती है कि सरकार व अधिकारी कुछ छुपा रहे हैं. हेट स्पीच यानी नफ़रत भरी बातों या विचारों से निपटने का मतलबप ये नहीं है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को सीमित किया जाए या फिर दबा ही दिया जाए.
विशेष दूत ने कहा कि ज़्यादातर प्रदर्शनकारी एक बेहतर जीवन के लिए शांतिपूर्ण तरीक़ों अपनी बात कह रहे हैं और ये सरकार की मुख्य ज़िम्मेदारी है कि वो देश के लोगों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करे. हिंसा के कोई भी रूप अस्वीकार्य हैं और हिंसा के ज़रिए लोगों की सुधारों की जायज़ माँगों को दबाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए.
अन्य कमियाँ
विशेष दूत जीनिन हैनिस प्लासकार्ट का कहना था कि चुनाव सुधारक, विशालकाय भ्रष्टाचार और रोज़गार व प्रगति के लिए उपयुक्त वातावरण की कमी अब भी ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार को काम करना है.
ऐसे में बातचीत का रास्ता निकालना बहुत ज़रूरी है, साथ ही ख़ून-ख़राबा, अपहरण और अवैध गिरफ़्तारियों को तुरंत रोका जाना भी बहुत आवश्यक है.
इससे भी ज़्यादा ये है कि जवाबदेही और न्याय की सुनिश्चितता किए बिना लोगों को इस पर राज़ी करना लगभग असंभव होगा कि राजनैतिक नेता किन्हीं ठोस सुधारों पर काम करने के लिए वास्तविकता में गंभीर हैं.
प्रधानमंत्री आदिल अब्दल माहदी के इस्तीफ़े के बारे में ताज़ा जानकारी देते हुए उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि राष्ट्रपति बरहाम सालिह के पास नया प्रधानमंत्री चुनने के लिए 15 दिन का समय है.
चौराहे पर ख़ड़ा है इराक़
विशेष दूत नैे सुरक्षा परिषद को संबोधन की समाप्ति करते हुए कहा कि इराक़ इस समय चौराहे पर खड़ा है और इस संकट का हल छोटी-छोटी सी पट्टियाँ बाँधकर या लोगों को सबक़ सिखाने के तरीक़े अपनाकर नहीं किया जा सकता.
उन्होंने तमाम इराक़ियों का आहवान करते हुए कहा कि एक संप्रभु, स्थिर, समावेशी और समृद्ध देश का निर्माण करें. यही समय है सही और ठोस कार्रवाई करने का. इतने सारे इराक़ियों की महान आशाएं साहसिक व प्रगतिशील सोच की माँग कर रही हैं.