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गांबिया का रोहिंग्या मामले में म्याँमार पर जनसंहार का मुक़दमा

म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
IOM/Mohammed
म्याँमार से बचकर भागे रोहिंज्या शरणार्थी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में भी अक्सर मौसम की मार जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.

गांबिया का रोहिंग्या मामले में म्याँमार पर जनसंहार का मुक़दमा

मानवाधिकार

गांबिया ने म्याँमार पर जैनोसाइड कन्वेंशन यानी जनसंहार कन्वेंशन के प्रावधानों के तहत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुक़दमा दर्ज किया है. गांबिया का आरोप है कि म्याँमार ने रोहिंग्या समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ इस तरह की कार्रवाई की है और अन्य कार्रवाइयों को समर्थन भी दिया है जो जैनोसाइड कन्वेंशन का उल्लंघन हैं. 

संयुक्त राष्ट्र के हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस न्यायालय में दायर इस मुक़दमे में गांबिया ने विशेष रूप से कहा है, "तकरीबन अक्तूबर 2016 के बाद से ही म्याँमार की सेना (ततमादाव) और देश के अन्य सुरक्षा बलों ने रोहिज्या समुदाय के ख़िलाफ़ 'सफ़ाई अभियान' चलाया जिसके लिए म्याँमार ने ख़ुद भी यही शब्द प्रयोग किया है." 

गांबिया ने कहा है, "इन सफ़ाई अभियानों के तहत जो जनसंहारक गतिविधियाँ की गईं उनका उद्देश्य रोहिंज्या लोगों को एक समुदाय के तौर पर तबाह करना था, पूरी तरह से या फिर कुछ हिस्सों में, इसके लिए सामूहिक हत्याओं, बलात्कार व यौन हिंसा के अन्य रूपों व उनके गाँवों को योजनाबद्ध तरीक़े से आग लगाकर उनका नामो-निशान मिटाने  के ज़रिए. अक्सर जलते घरों के भीतर वहाँ रहने वाले लोगों को भी बंद कर दिया गया."

गांबिया की दलील है कि इस तरह के कृत्य जैनोसाइड कन्वेंशन का उल्लंघन है और इस बारे में म्याँमार को सितंबर 2018 में ही अवगत करा दिया गया था लेकिन म्याँमार लगातार कुछ भी ग़लत नहीं करने की बात करता रहा है.

अंतरराष्ट्रीय न्यालाय में दायर इस मुक़दमे में गांबिया ने न्यायालय के अनुच्छेद 36 पैरा-1 और जैनोसाइड कन्वेंशन के अनुच्छेद 9 के प्रावधानों के तहत ये मुक़दमा दर्ज करके सुनवाई करने का निवेदन किया है.

गांबिया और म्याँमार दोनों ही जैनोसाइड कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता देश हैं. 

इस मुक़दमे की अर्ज़ी में गांबिया ने न्यायालय से गुज़ारिश की है कि वो मुक़दमे की सुनवाई करके ये घोषित करे कि,

----- "म्याँमार ने जैनोसाइड कन्वेंशन के अनेक अनुच्छेदों और इस संधि के प्रावधानों के तहत एक पक्ष होने के नाते उसकी ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन किया है और लगातार करता रहा है. "

----- "इस दायरे में किसी भी तरह के ग़लत कृत्य तुरंत बंद करे और जैनोसाइड कन्वेंशन के तहत अपनी ज़िम्मेदारियों का पूर्ण सम्मान करे."

----- "ये सुनिश्चित करे कि जनसंहारक गतिविधियों में शामिल लोगों को एक सक्षम ट्राइब्यूनल द्वारा दंडित किया जाए, इसमें एक अंतरराष्ट्रीय दंड ट्राइब्यूनल भी शामिल हो, जैसाकि जैनोसाइड कन्वेंशन के अनुच्छेद-1 और 6 में प्रावधान है."

----- "रोहिंज्या समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ किए गए जनसंहारक कृत्यों की भरपाई करते हुए जबरन विस्थापित किए गए पीड़ितों और प्रभावित लोगों की सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी निभाए, रोहिंज्या समुदाय के लोगों को पूर्ण नागरिकता के अधिकार व अन्य मानवाधिकारों का सम्मान किया जाए और उन्हें किसी भी तरह के भेदभाव, प्रताड़ना, उत्पीड़न और ऐसे ही अन्य कृत्यों के ख़िलाफ़ संरक्षा मुहैया कराई जाए. ये ज़िम्मेदारियाँ नरसंहार रोकने के लिए नरसंहार निरोधक संधि के अनुच्छेद 1 के अनुरूप होंगी. "

----- "जैनोसाइड कन्वेंशन के प्रावधानों का फिर से उल्लंघन नहीं करने का आश्वासन व गारंटी दी जाए, ख़ासतौर से अनुच्छेदों - 1, 3(ए), (बी), (सी), (डी), (ई), 4, 5 और 6 के तहत अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाए."

गांबिया द्वारा जारी अर्ज़ी में मुक़दमे का फ़ैसला आने से पहले के दौरान की अवधि के लिए मौजूद प्रावधानों का हवाला देते हुए जैनोसाइड कन्वेंशन के तहत रोहिंज्या समुदाय और  गांबिया के अधिकारों की हिफ़ाज़त करने की गुज़ारिश भी की गई है.

साथ ही न्यायालय का अंतिम निर्णय आने तक विवाद को और ज़्यादा बढ़ने से रोकने के उपाय करने का भी निवेदन किया गया है, इसलिए गांबिया ने न्यायालय से म्याँमार को ये उपाय करने का अंतरिम आदेश जारी करने का आग्रह किया है...

----- "9 दिसंबर 1948 के जैनोसाइड कन्वेंशन के प्रावधानों के अंतर्गत म्याँमार को ऐसी तमाम गतिविधियों को रोकने के लिए हर संभव उपाय करने होंगे जो नरसंहार के अपराध या इसी स्तर की गतिविधियों में गिनी जा सकती हों. साथ ही ऐसे जनसंहारक कृत्य भी अपनी पूरी ताक़त लगाकर रोकने होंगे जो रोहिंज्या समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ करने का अंदेशा हो. इनमें न्यायेतर हत्याएँ, शारीरिक शोषण, बलात्कार या अन्य रूपों में यौन हिंसा, घरों या गाँवों का जलाना, पालतू जानवरों और ज़मीन को तबाह किया जाना, लोगों को भोजन सहित ज़िंदगी की अन्य बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने से रोकना, या लोगों के जीवन को नुक़सान पहुँचाने वाली किसी भी तरह की अन्य गतिविधियाँ जिनसे रोहिंज्या समुदाय के वजूद को आंशिक या पूर्ण रूप से तबाह करने के इरादे से की जाए."

-----"म्याँमार को ये सुनिश्चित करना होगा कि सेना, अर्द्धसैनिक बल या अनियिमत सशस्त्र यूनिट, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के आदेशों और निर्देशों पर काम करते हों, उनका कोई भी सदस्य रोहिंज्या समुदाय के ख़िलाफ़ किसी भी जनसंहारक गतिविधि में शामिल ना हो, जनसंहार करने के किसी षडयंत्र में शामिल ना हों और ना ही किसी को जनसंहारक गतिविधियाँ करने के लिए उकसाने में शामिल हों. इनमें न्यायेतर हत्याएँ, शारीरिक उत्पीड़न, बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य रूप, घरों और गाँवों को जलाना, ज़मीन और पालतू जानवरों को तबाह करना, लोगों को भोजन सहित ज़िंदगी की अन्य बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने से रोकना, या लोगों के जीवन को नुक़सान पहुँचाने वाली किसी भी तरह की अन्य गतिविधियाँ जिनसे रोहिंज्या समुदाय के वजूद को आंशिक या पूर्ण रूप से तबाह करने के इरादे से की जाए."

गांबिया की अर्ज़ी में न्यायालय से ये भी अनुरोध किया है कि म्याँमार को इस मामले से संबंधित किसी भी तरह के सबूतों को मिटाने से रोका जाए. 

अर्ज़ी में ये भी कहा गया है कि गांबिया और म्याँमार ऐसी किसी भी कार्रवाई या गतिविधि से बचेंगे जिससे इस विवाद के और भड़कने या बढ़ने या इसके समाधान को और ज़्यादा मुश्किल बनने की आशंका हो.

म्याँमार और गांबिया अंतरिम उपायों की स्थिति के बारे में चार महीने के भीतर न्यायालय को रिपोर्ट मुहैया कराएंगे. 

आई सी जे

हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय  की स्थापना यूएन चार्टर के अनुसार जून 1945 में हुई थी और इसने अपना कामकाज अप्रैल 1946 में शुरू किया था. ये संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है जो ये एक तरह से संयुक्त राष्ट्र की न्यायिक संस्था है. 

इस न्यायालय में 15 जज होते हैं जिनका चुनाव संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा 9 वर्ष के लिए किया जाता है.  इस न्यायालय का मुख्यालय नैदरलैंड का शहर हेग में है.

न्यायालय मुख्य रूप से दो काम करता है - किन्हीं देशों के बीच विवादों का अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार समाधान निकालना. इस न्यायालय के निर्णय देशों पर बाध्यकारी होते हैं और उनके ख़िलाफ़ कहीं कोई अपील नहीं हो सकती. 

दूसरा ये कि संयुक्त राष्ट्र का कोई संगठन या एजेंसी अगर कोई मामला या क़ानूनी प्रश्न न्यायालय की राय जानने के लिए दाख़िल करते हैं, तो उन पर अपनी सलाहकारी राय मुहैया कराना.