आंग सान सू ची ने जनसंहार के आरोपों में किया म्याँमार का बचाव
म्याँमार की राजनैतिक नेता आँग सान सू ची ने संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पेश होते हुए कहा है कि उनका देश राख़ीन प्रांत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को क़तई बर्दाश्त नहीं करेगा और अगर युद्धापराध हुए हैं तो सेना पर मुक़दमा चलाया जाएगा. ग़ौरतलब है कि गांबिया ने म्याँमार की सेना पर रोहिंज्या लोगों पर बड़े पैमाने पर अत्याचार करने और युद्धापराधों के आरोपों में आईसीजे में मुक़दमा दायर किया है.
हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख क़ानूनी अंग है जहाँ देशों के बीच विवादों का निपटारा किया जाता है.
म्याँमार की स्टेट काउंसिलर आँग सान सू ची ने बुधवार को न्यायालय में पेश होकर अपने देश म्याँमार का बचाव किया. इस्लामिक देशों के सहयोग संगठन (ओआईसी) की तरफ़ से गांबिया द्वारा दायर इस मुक़दमे में म्याँमार की सेना और वहाँ के सुरक्षा बलों पर मुस्लिम बहुल रोहिंज्या समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ जनसंहारक कार्रवाई करने के आरोप लगाए गए हैं.
MULTIMEDIA: photos and videos of today's public hearings in the case concerning Application of the Convention on the Prevention and Punishment of the Crime of Genocide (#TheGambia v. #Myanmar) before the #ICJ are available here https://t.co/VCPBkFJ7ht pic.twitter.com/jBgCxZfTDX
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ध्यान रहे कि ख़ुद आंग सान सू ची पर इस न्यायालय में कोई मुक़दमा नहीं चल रहा है. आंग सान सू ची को म्याँमार के सैन्य शासकों ने पिछले दशकों में 20 वर्षों से भी ज़्यादा समय तक नज़रबन्द रखा था और वो कुछ ही वर्ष पहले देश की काउंसिलर बनी थीं.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची ने बुधवार को आईसीजे की आरंभिक कार्रवाई शुरू होने के दूसरे दिन कहा, "अगर युद्धापराध हुए हैं तो उनके लिए देश की सैन्य न्याय व्यवस्था के तहत मुक़दमा चलाया जाएगा. "
हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के जजों के सामने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में आंग सान सू ची ने राख़ीन प्रांत में रहने वाले मुस्लिम बहुल रोहिंज्या समुदाय के लोगों और बौद्धों के बीच कई दशकों से चले आ रहे तनाव का ज़िक्र किया.
ये तनाव 25 अगस्त 2017 को उस समय विस्फोट हो कर भड़क उठा जब म्याँमार की सेना ने रोहिंज्या लोगों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर दमनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी. म्याँमार की सेना को ततमादाव भी कहा जाता है. सेना का कहना है कि उसने ये दमनात्मक कार्रवाई अराकान रोहिंज्या साल्वेशन आर्मी के पृथकतावादियों द्वारा एक पुलिस और सुरक्षा चौकी पर किए गए घातक हमले के जवाब में शुरू की थी.
इस हिंसक कार्रवाई का नतीजा ये हुआ कि लगभग सात लाख रोहिंज्या लोग सुरक्षा के लिए बांग्लादेश पहुँच गए. उनमें से अनेक लोगों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र जाँचकर्ताओँ को बताया था कि उनके साथ बहुत क्रूर हिंसा और ज़ुल्म हुआ है.
रोहिंज्या लोगों के मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ था और उस समय के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ज़ायद राआद अल हुसैन ने कहा था कि म्याँमार की सेना और सुरक्षा बलों की उस हिंसक कार्रवाई में जनसंहार के सारे सबूतों के निशान नज़र आते हैं.
'जनसंहारक नीयत'
आंग सान सू ची ने कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि म्याँमार की सेना यानी तातमादेव ने ज़रूरत से ज़्यादा ताक़त का इस्तेमाल किया. "निश्चित रूप से उन परिस्थितियों में केवल जनसंहारक इरादे ही एक मात्र परिकल्पना भर ही नहीं हो सकते."
ध्यान रहे कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त स्वतंत्र मानवधिकार विशेषज्ञों व जाँचकर्ताओं ने भी अगस्त 2019 में पेश की गई अपनी एक रिपोर्ट में उन हालात के बारे में कुछ इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया था जिनकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में रोहिंज्या लोगों को बांग्लादेश भागना पड़ा.
म्याँमार पर संयुक्त राष्ट्र के जाँच मिशन की रिपोर्ट के अनुसार "महिलाओं और लड़कियों की व्यवस्थित तरीक़े से हत्याएं करने, प्रजनन आयु की लड़कियों और महिलाओं को चुनकर उनका बलात्कार करने, गर्भवती महिलाओं और बच्चों पर हमले करने, उनके प्रजनन अंग भंग करने और उन्हें ज़ख़्मी बनाने, उनके गालों, गर्दनों, छातियों और जाँघों पर जबड़े से काटने के निशान बनाने, महिलाओं और लड़कियों को इस तरह गंभीर रूप से घायल कर देने कि वो अपने पतियों के साथ यौन संबंध बनाने या गर्भ धारण करने लायक़ ना रह जाएँ और उन्हें इस चिंता में दाख़िल कर देना कि अब वो बच्चे पैदा करने के योग्य नहीं बचेंगी, इन सभी अपराधों के लिए देश की सेना ज़िम्मेदार है."
आँग सान सू ची ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि उनके देश की सैन्य न्यायाक प्रणाली को ही राखीन प्रांत में सैनिकों या सैन्य अधिकारियों द्वारा इन संभावित युद्धापराधों की जाँच करने का मौक़ा मिलना चाहिए. उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा कि गांबिया ने म्याँमार के ख़िलाऱ़ जो इस न्यायालय में ये मुक़दमा दायर किया है वो म्याँमार और राख़ीन प्रांत की अधूरी और तथ्यात्मक रूप से भटाकाने वाली तस्वीर पेश करता है.
'सेना होगी न्याय के कटघरे में'
आँग सान सू ची ने कहा कि म्याँमार के रक्षा सेवाओं के सदस्यों ने युद्धापराध किए हैं तो "उन पर देश के संविधान के अनुसार सैनिक न्याय प्रणाली के तहत मुक़दमा चलाया जाएगा."
इसके अलावा उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनी व्यवस्था के लिए ये धारणा बनना मददगार नहीं होगा कि सिर्फ़ संसाधनों वाले और धनी देश ही अपने देश में समुचित जाँच करके मुक़दमे चला सकते हैं.
म्याँमार की दूत ने ज़ोर देकर ये भी कहा कि ये बहुत महत्वूपूर्ण है कि आईसीजे राखीन प्रान्त में ज़मीनी स्थिति का निष्पक्ष व तथ्यात्मक आकलन करे.
क्या है मुक़दमा
गांबिया को ये मुक़दमा दायर करने में इस्लामिक सहयोग संगठन के 57 सदस्य देशों का समर्थन हासिल है. इस मुक़दमे में कहा गया है... "रोहिंज्या समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव और उत्पीड़न की पृष्ठभूमि के साथ, म्याँमार की सेना (तातमादाव) और सुरक्षा बलों ने लगभग अक्तूबर 2016 में बड़े पैमाने पर और व्यवस्थित ढंग से जातीय सफ़ाया अभियान चलाया था. यही शब्द ख़ुद म्याँमार भी इस्तेमाल करता है."
म्याँमार की सेना और सुरक्षा बलों द्वार फिर जो जनसंहारक गतिविधियाँ की गईं उनका उद्देश्य रोहिंज्या समुदाय के वजूद को तबाह कर देना था, चाहे बिल्कुल या आंशिक रूप में.
गांबिया दायर इस मुक़दमे में रोहिंज्या लोगों की सामूहिक हत्याओं, बलात्कार और अन्य यौन हिंसा की गतिविधियों और उनके गाँवों को व्यवस्थित तरीक़े से आग लगाकर तबाह करने देने का ब्यौरा दिया गया है. रोहिंग्या के घरों और गाँवों को अक्सर तब आग लगाई गई जब उनके अंदर लोग मौजूद थे और वो जलते हुए घरों के भीतर ही फँस गए.
गांबिया के मुक़दमे में आगे कहा गया है कि अगस्त 2017 के बाद से से तो म्याँमार ने बड़े भौगोलिक दायरे में और बड़े पैमाने पर सफ़ाई अभियान चलाया जिसमें जनसंहारक गतिविधियाँ और इरादे शामिल थे.