बचपन बदल रहा है, 'हमें भी बदलना होगा'

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है कि बाल अधिकारों पर संधि से बच्चों के अधिकारों के लिए अभूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का सृजन हुआ है और बच्चों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करने के प्रयासों को मज़बूती मिली है. यूएन प्रमुख ने बाल अधिकार संधि के पारित होने की 30वीं वर्षगांठ पर बुधवार को यूएन मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में ये बात कही.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों से जुड़ी बाल अधिकार संधि को अन्य किसी संधि की तुलना में सबसे बड़ी संख्या में देशों से मान्यता मिली है.
इस संधि के ज़रिए “पहली बार सरकारों ने माना कि बच्चों के पास भी वयस्कों की तरह मानवाधिकार हैं.”
Being inspired by youth activism is not enough. As we mark 30 years of the Convention on the Rights of the Child, let us also commit not only to listening to children & young people.Let’s support them.Let’s take action with them.Let’s follow their lead. #UNGA #ChildRights pic.twitter.com/yXLcRnNXh3
unicefchief
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र के दौरान आयोजित इस उच्च स्तरीय बैठक में संधि के ज़रिए स्वस्थ जीवन और टिकाऊ आजीविका की दिशा में हुई प्रगति को रेखांकित किया गया.
लेकिन 26 करोड़ से ज़्यादा बच्चे और युवा अब भी स्कूलों में पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, 65 करोड़ से ज़्यादा लड़कियों और महिलाओं की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही कर दी जाती है, और हर चार में से एक बच्चा ऐसे इलाक़ों में रहने को मजबूर है जहां वर्ष 2040 तक सीमित जल संसाधन होंगे.
ऐसे में सदस्य देशों से अपील की गई है कि नई चुनौतियों को देखते हुए सदस्य देशों को अपने संकल्पों और मज़बूत बनाने होंगे.
यूएन प्रमुख के मुताबिक़ यह दस्तावेज़ उन विशिष्ट अतिरिक्त अधिकारों को दर्शाता है जिसमें आश्रितों के उनके विशेष दर्जे को पहचाना गया है.
अमेरिका को छोड़ कर अब तक 196 देश इस संधि पर मुहर लगा चुके हैं हालांकि उसने भी इसे स्वीकृति देने की मंशा ज़ाहिर की है.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि सरकार की ओर से प्रयास होने या ना होने का समाज में अन्य समूहों के मुक़ाबले बच्चों पर ज़्यादा असर पड़ता है.
उन्होंने सभी सदस्य देशों से आग्रह किया कि बच्चों को पूर्ण रूप से समर्थन दिया जाना चाहिए.
बाल अधिकार संधि के पारित होने के बाद, पहले से कहीं ज़्यादा बच्चों को ज़रूरी संरक्षण और सहारा मिल रहा है और पांच से कम उम्र के बच्चों की मौतों के मामले पचास फ़ीसदी की कमी आई है. साथ ही कुपोषण से पीड़ित बच्चों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है.
आधुनिक दुनिया में बच्चों और युवाओं को पेश आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए उनके अनुरूप कार्रवाई में बदलाव की बात कही गई है.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की प्रमुख हेनरीएटा फ़ोर ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आज बच्चे जिन बदलावों का सामना कर रहे हैं, 1989 में बच्चे उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते थे.
उनका इशारा बदलती जलवायु, बढ़ती असमानता और लंबे समय तक चलने वाले हिंसक संघर्षों से था जिनके ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए युवा पैरोकार आगे आ रहे हैं.
“बचपन बदल रहा है और हमें भी बदलना होगा. आपके पास स्वास्थ, शिक्षा और सुरक्षा का अधिकार है, आपके पास अपनी आवाज़ सुनाने का अधिकार है, आपके पास एक भविष्य का अधिकार है."
उन्होंने कहा कि आगे बढ़ने के लिए देशों को उनमें निवेश करना चाहिए जो भविष्य को आगे ले जा सकें. इसके लिए बच्चों व युवाओं को सिर्फ़ सुनने के बजाय उनके साथ मिलकर काम करना होगा ताकि वो बदलाव हासिल किया जा सके जिसे वे देखना चाहते हैं.
“आइए हम उन्हें समर्थन दें, उनके साथ मिलकर काम करें, और 30 साल बाद पलटकर फिर इस समय को देखें जब विश्व ने संकल्प लेते हुए ठोस कार्यक्रम अपनाए ताकि बच्चों और युवाओं के साथ किए गए वादे निभाए जा सकें.”
बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति पर यह समीक्षा करने की ज़िम्मेदारी है कि सरकारें संधि में तय मानकों का किस तरह पालन कर रही हैं.
इस प्रक्रिया के तहत संधि को स्वीकृति मिलने के दो साल के भीतर और उसके बाद हर पांच साल पर हर सदस्य देश एक रिपोर्ट साझा करता है जिसके बाद चिन्हित देश को बेहतरी के लिए अनुशंसाओं के बारे में बताया जाता है.