अमेरिका और उत्तर कोरिया में बातचीत की संभावनाओं का स्वागत

कैमरे से तस्वीरें खिंचने की आवाज़ और फ़्लैश लाइट के बीच रविवार को पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल के दौरान उत्तर कोरिया की ज़मीन पर कदम रखा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने नए सिरे से रिश्ते स्थापित करने के इस प्रयास को पूर्ण समर्थन देने की बात कही है जिससे कोरियाई प्रायद्वीप में निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि वह “पानमुनजम में उत्तर कोरिया और अमेरिका के नेताओं के बीच हुई मुलाक़ात का स्वागत करते हैं.” इस मुलाक़ात के बाद अमेरिका और उत्तर कोरिया ने आपसी संवाद शुरू करने की घोषणा की है.
इससे पहले वियतनाम की राजधानी हनोई में फ़रवरी 2019 में दोनों नेताओं की बातचीत टूट गई थी. उसके बाद यह पहली बार है जब दोनों देश परमाणु मुद्दे पर बातचीत फिर शुरू करने पर सहमत हो गए हैं.
“कोरियाई प्रायद्वीप पर शांति, सुरक्षा और पूर्ण और सत्यापन योग्य निरस्त्रीकरण के लिए दोनों पक्षों की ओर से जो प्रयास जारी हैं, यूएन महासचिव उनका पूरा समर्थन करते हैं.”
ज़बरदस्त सुरक्षा व्यवस्था वाले डिमिलिट्रीज़ाइड ज़ोन को पार करते समय राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन ने हाथ मिलाते हुए फ़ोटो खिंचवाए. कोरिया युद्ध के बाद से ही यह ज़ोन दोनों देशों के बीच एक 'बफ़र एरिया' के रूप में स्थापित है जो दोनों देशों को अलग करता है.
अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु मुद्दे पर वार्ता में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं और यह प्रक्रिया कई दशकों से जारी है. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद अभी तक उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने में सफलता नहीं मिल पाई है.
साल 2017 में उत्तर कोरिया ने अपना छठा और सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण किया जिससे अमेरिका और उत्तर कोरिया के रिश्तों में और तल्ख़ी आ गई. डोनल्ड ट्रंप ने उसी साल अमेरिका की बागडोर संभाली थी.
2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति और उत्तर कोरिया के नेता की मुलाक़ात सिंगापुर में हुई जहां एक साझा वक्तव्य पर दोनों ने हस्ताक्षर कर शांति स्थापित करने और कोरियाई प्रायद्वीप पर पूर्ण रूप से परमाणु निरस्त्रीकरण करने का संकल्प लिया.
हालांकि उस घोषणा में विस्तार से जानकारी नहीं दी गई थी कि इस उद्देश्य को कैसे पूरा किया जाएगा.
इसके बाद दोनों नेताओं की मुलाक़ात फ़रवरी 2019 में फिर हुई लेकिन प्रतिबंधों और परमाणु निरस्त्रीकरण पर क़ायम असहमतियों की वजह से शिखर वार्ता जल्द ही निपट गई और कोई समझौता नहीं हो पाया.