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'विद्वेषपूर्ण अभिव्यक्तियों को बल देने वाला राजनैतिक अवसरवाद समाप्त हो'

संयुक्त राष्ट्र विशेष सलाहकार एडमा डिआंग.
UN Photo/Amanda Voisard
संयुक्त राष्ट्र विशेष सलाहकार एडमा डिआंग.

'विद्वेषपूर्ण अभिव्यक्तियों को बल देने वाला राजनैतिक अवसरवाद समाप्त हो'

मानवाधिकार

जनसंहार की रोकथाम पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष सलाहकार एडमा डिआंग ने, धार्मिक संस्थाओं के ख़िलाफ़ जानलेवा हमलों के मद्देनजर विश्व के नेताओं को उस ‘राजनैतिक अवसरवाद’ और नीतियों को समाप्त करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, जिनके कारण नफ़रत भरी अभिव्यक्तियों और हिंसक अतिवाद को बढ़ावा मिलता है.

जिनिवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बुधवार को धर्म, शांति और सुरक्षा पर द्वितीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया. एडमा डिआंग ने इसके समापन पर कहा कि श्रीलंका में गिरजाघर में अनेक लोगों की मौतों, कैलीफोर्निया में सिनेगॉग हमले और बुर्किना फ़ासो में गिरजाघर में हत्याओं के बाद यह आशंका बढ़ गई है कि ऐसे हमले अन्य स्थानों पर भी हो सकते हैं.   

“हम शांति की बात कर रहे हैं, हम न्याय की बात कर रहे हैं, हम मजबूत संस्थाओं की बात कर रहे हैं.” उन्होंने तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत पर बल दिया और पूछा कि “दक्षिणपंथी नेताओं को दोष देना बहुत आसान है लेकिन बाकी लोग क्या कर रहे हैं?”

उन्होंने कहा कि अधिक उदार राजनेताओं को इसके ख़िलाफ़ ‘बोलने’ और ‘बेहतर तरीके से लोगों को एकजुट करने की जरूरत है लेकिन कई बार हम पाते हैं कि इस समूह में भी राजनैतिक अवसरवादी मौजूद हैं.’

उन्होंने कहा कि इस पर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए, विशेष रूप से यूरोप में. वर्तमान दौर में वहां से सैन्य राष्ट्रवाद के वही संकेत मिल रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप 1930 के दशक में नस्लीय विचारधारा पर आधारित हिंसक शासन का उदय हुआ था.  

डिआंग ने कहा, ‘हमें उस कुटिल राजनैतिक संवाद पर विराम लगाना होगा. छिटपुट कार्य और एकाध शब्द ही बड़े जनसंहार को जन्म देते हैं.’

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि नाज़ियों द्वारा यहूदियों के ख़िलाफ़ विद्वेष की शुरुआत घृणास्पद भाषणों और अपराधों से हुई थी जिसके कारण यहूदियों के बुनियादी मानवाधिकार भी छीन लिए गए. 

‘1994 में रवांडा में तुत्सियों और दूसरों समूहों के ख़िलाफ़ भी इसी तरह से नफ़रत फैलाई गई थी. वहाँ तुत्सियों को ‘साँप’ कहा जाता था. यह नफ़रत, शब्दों से शुरू हुई थी और आज भी हम ऐसे ही दृश्य देख रहे हैं.’

21 अप्रैल को श्रीलंका के गिरजाघरों और होटलों पर घातक हमले में 250 से अधिक लोगों की मौत हुई. इसके मद्देनजर यूएन अलायंस ऑफ सिविलाइजेशन (UNAOC) के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्च प्रतिनिधि मिगेल मोराटिनोस ने मंगलवार को श्रीलंका का दौरा किया. हमले के बाद यह किसी संयुक्त राष्ट्र उच्चाधिकारी का पहला दौरा था. मोराटिनोस ने आतंकवाद और हिंसक अतिवाद को क़ाबू करने के लिए सरकार के प्रयासों का समर्थन किया.   

यूएनएओसी के बयान के अनुसार, श्रीलंका में श्री मोराटिनोस मुख्य राजनीतिज्ञों, धार्मिक नेताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों, तथा संयुक्त राष्ट्र स्थानीय समन्वयक एवं संयुक्त राष्ट्र की देएडमा डिआंग देशीय टीम से मिले. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना से भेंट के दौरान मोराटिनोस ने ‘व्यक्तिगत सहानुभूति तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव की ओर से हार्दिक संवेदना प्रकट की.’ 

मोराटिनोस ने राष्ट्रपति से कहा, ‘आप अकेले नहीं हैं.’ राष्ट्रपति सिरीसेना ने कहा कि वह अपने देश को ‘आगे बढ़ाने और सुरक्षा बहाल करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.’ 

मोराटिनोस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ‘सौहाद्र, एकता और सामाजिक समरसता बरक़रार रखने के उनके प्रयासों को पूर्ण सहयोग देगा.’

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि श्रीलंका में शरण के इच्छुक लोगों और शरणार्थियों की समस्या का दीर्घकालीन समाधान निकालने की ज़रूरत है ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

श्रीलंका में, ईस्टर हमले के बाद लगभग 1,600 शरणार्थियों और शरण के इच्छुक लोगों, विशेष रूप से अहमदिया मुसलमानों पर हिंसक हमले किए गए हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने मोराटोनिस को आधिकारिक तौर पर धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से जुड़ी एक पहल का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी है.

श्रीलंका दौरे के दौरान मोराटिनोस ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे से भी मुलाक़ात की. इस मुलाक़ात में दोनों ने श्रीलंका के समाज में एकता और शांतिपूर्ण तरीके से सह-अस्तित्व को बहाल करने के मौजूदा प्रयासों पर परस्पर विचारों का आदान-प्रदान किया.