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अफ़ग़ानिस्तान के लिए त्रासदी भरा रहा साल 2018

 काबुल में हमले की चपेट में आया एक पत्रकार दल.
Reuters/Omar Sobhani
काबुल में हमले की चपेट में आया एक पत्रकार दल.

अफ़ग़ानिस्तान के लिए त्रासदी भरा रहा साल 2018

शान्ति और सुरक्षा

महिलाओं और बच्चों सहित 3,800 से ज़्यादा आम नागरिकों की ज़िंदगियां लील जाने वाला पिछला साल बेहद ‘व्यथित कर देने वाला और अस्वीकार्य’ साबित हुआ. अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNAMA) और मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) की नई रिपोर्ट दर्शाती है कि 2017 की तुलना में मृतकों की संख्या में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 

लड़ाई और 'क्रूर हिंसा' के चलते साल 2018 में 3,800 से ज़्यादा आम लोगों की मौत हो गई. इनमें 927 बच्चे शामिल हैं.   

हिंसक घटनाओं में सात हज़ार से अधिक लोग घायल हुए और पिछले साल के मुक़ाबले घायलों की संख्या में भी 5 फ़ीसदी की वृद्धि देखी गई. दो तिहाई से ज़्यादा मामलों में आम लोग विरोधी हथियारबंद गुटों – तालिबान, इस्लामिक स्टेट सहित अन्य गुट – की ओर से हुई हिंसा में मारे गए. 

लेकिन सरकारी सुरक्षा बलों और अंतरराष्ट्रीय सेना द्वारा की जाने वाली कार्रवाई की वजह से भी लगभग 25 फ़ीसदी की मौत हुई. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियारबंद गुटों की ओर से होने वाले आत्मघाती हमलों में तेज़ी आई है और उसके साथ ही सरकार समर्थित सैनिकों की ओर से होने वाले हवाई और तलाशी अभियान के दौरान भी जान माल का नुक़सान हो रहा है. 

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि और मिशन प्रमुख तादामिची यामामोतो ने बताया कि, “गहराई तक जाकर आंकड़े जुटाने वाली ये रिपोर्ट दिखाती है कि जिस तरह से आम नागरिकों को पीड़ा झेलनी पड़ रही है वह बेहद परेशान करने वाली और अस्वीकार्य है. हर पक्ष को तत्काल ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है ताकि और लोगों के जीवन को बर्बाद होने से रोका जा सके.”

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की दसवीं वार्षिक रिपोर्ट है जिसमें अफ़ग़ान संघर्ष के चलते आम नागरिकों की मुश्किलों की पड़ताल की जाती है. पिछले एक दशक में 32 हज़ार से ज़्यादा नागरिक मारे जा चुके हैं जबकि 60 हज़ार से ज़्यादा घायल हुए हैं. 

यह संघर्ष पिछले चार दशकों से चला आ रहा है जिसमें हज़ारों ज़िंदगियों को अपना निवाला बनाया है.

“समय आ गया है कि इस त्रासदी और विपदा का अंत किया जाए. लोगों के जीवन को बचाने का सबसे अच्छा तरीक़ा लड़ाई को रोकना है. इसलिए शांति को लाने के लिए हमें और ज़्यादा प्रयास करने होंगे. मैं सभी पक्षों से आग्रह करता हूं कि जो भी अवसर मिले उसका इस्तेमाल किया जाए.” 

2018 में चुनावी हिंसा ख़ास तौर पर आम नागरिकों के लिए मुश्किल समय था. 20 अक्टूबर को मतदान के दौरान यूएन मिशन के मुताबिक़ पूरे साल में इसी दिन सबसे बड़ी संख्या में लोग मारे गए.