सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन से उपजते ख़तरों पर चर्चा

सोमालिया के पन्टलैंड में पानी न मिलने से पशु मर रहे हैं.
UNDP Somalia/Said Isse
सोमालिया के पन्टलैंड में पानी न मिलने से पशु मर रहे हैं.

सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन से उपजते ख़तरों पर चर्चा

शांति और सुरक्षा

जलवायु परिवर्तन से वैश्विक शांति और सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने और तापमान में वृद्धि से पैदा वाले संकट से निपटने के रास्ते तलाशने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को चर्चा हो रही है. 

अपने शुरुआती संबोधन में राजनीतिक और शांति निर्माण मामलों की यूएन उपमहासचिव रोज़मैरी डीकार्लो ने कहा, "जलवायु से जुड़े ख़तरों और संघर्ष के बीच जटिल रिश्ता है और यह कई बार राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय कारणों से भी प्रभावित होता है. जलवायु से होने वाली आपदाओं की आशंका किसी सुदूर भविष्य में नहीं है. लाखों लोग अभी से जलवायु चुनौतियों से जूझ रहे हैं."

सुरक्षा परिषद में यह चर्चा पोलैंड के कैटोविच में हुए जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन के दो महीने बाद हो रही है. कैटोविच सम्मेलन में 2015 में हुए पेरिस समझौते के प्रभावी अमलीकरण की रूपरेखा तय करने में सफलता मिली थी. पेरिस समझौते का लक्ष्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है. 

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने की रणनीति को और मज़बूत बनाने के लिए यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश इस साल 23  सितंबर को जलवायु शिखर वार्ता का आयोजन कर रहे हैं. 

सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र का वह अंग है जो मुख्य तौर पर शांति और सुरक्षा के मामलों को परखता है. ऐसे में सुरक्षा परिषद में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा होना विवादित भी है. कुछ सदस्य देशों का मानना है कि जिन यूएन संस्थाओं पर सामाजिक और आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण की ज़िम्मेदारी है उन्हें ही इसका भार उठाना चाहिए. 

लेकिन हाल के सालों में इस मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में विचार विमर्श हुआ है. जलवायु परिवर्तन और असुरक्षा में संबंध पर सुरक्षा परिषद में पहली बैठक अप्रैल 2007 में हुई थी. तब से सुरक्षा परिषद ने कई कदम उठाए हैं जिससे यह साबित होता है कि दोनों विषय आपस में जुड़े हैं.

जुलाई 2011 में एक और बहस हुई और फिर मार्च 2017 में प्रस्ताव संख्या 2349 पारित हुआ. इस प्रस्ताव में चाड झील बेसिन में संघर्ष को सुलझाने के लिए जलवायु परिर्वतन के ख़तरो से निपटने की ज़रूरत समझी गई. जुलाई 2018 की बैठक में जलवायु संबंधी सुरक्षा ख़तरों को पहचानने और उनसे निपटने के लिए फिर चर्चा हुई.

शुक्रवार को हो रही चर्चा की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि 70 से ज़्यादा सदस्य देशों ने इसमें हिस्सा लिया और कुवैत, बेल्जियम, इंडोनेशिया और जर्मनी के मंत्रियों के वक्तव्य रखे गए.

जलवायु चुनौती का सामना

उपमहासचिव डी कार्लो ने तीन अहम बिंदुओं पर ध्यान देने का अनुरोध किया है:

- एकीकृत ढंग से ख़तरों की समीक्षा के लिए बेहतर विश्लेषण क्षमता का विकास करना

- दुष्प्रभावों की रोकथाम और उनके प्रबंधन के लिए साक्ष्यों को एकत्र करना

-  मौजूदा क्षमताओं का फ़ायदा लेने के लिए यूएन के भीतर और बाहर साझेदारी बनाना

"हमारे लिए सबसे अहम यह है कि शब्दों के साथ साथ हमें कार्रवाई भी करनी चाहिए. दुनिया में कई देशों की सेना और उद्यमी मानते हैं कि जलवायु से जुड़े ख़तरों के प्रति तैयारी ज़रूरी है. हम पीछे नहीं रह सकते. हमें अभी कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि ज़रूरतमंदों को ध्यान में रखकर हम तत्काल कदम उठा सकें."

पहली बार ऐसा हुआ कि मौसम विज्ञान पर यूएन संस्था (WMO) के प्रतिनिधि को सुरक्षा परिषद के सदस्यों को जलवायु से जुड़ी जानकारी देने के लिए बुलाया गया. प्रमुख वैज्ञानिक पावेल काबत ने वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अपनी बात रखी.

"कई प्रकार से जलवायु परिवर्तन सुरक्षा पर असर डाल सकती है. खाने और पौष्टिक भोजन में हुई प्रगति में बाधक बन कर; जंगलों में आग से और वायु की गुणवत्ता पर असर डाल कर; जल सकंट के ज़रिए और प्रवासन और आंतरिक विस्थापन से. इसे अब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ख़तरे के तौर पर देखा जाता है."