वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के बारे में पाँच अहम बातें

समुद्र -  वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों द्वारा समााहित अत्यधिक गर्मी को सोख़कर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कुछ टाल रहे हैं.
WMO/Olga Khoroshunova
समुद्र - वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों द्वारा समााहित अत्यधिक गर्मी को सोख़कर, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कुछ टाल रहे हैं.

पृथ्वी का तापमान बढ़ाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के बारे में पाँच अहम बातें

जलवायु और पर्यावरण

किसी ग्रीनहाउस में सूर्य का प्रकाश दाख़िल होता है, और गर्मी वहीं ठहर जाती है. ग्रीनहाउस प्रभाव इसी तरह का परिदृश्य पृथ्वी के स्तर पर भी परिभाषित होता है, मगर किसी ग्रीनहाउस में लगे शीशे के बजाय, कुछ तरह की गैसें, वैश्विक तापमान को लगातार बढ़ा रही हैं.

1. ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

किसी ग्रीनहाउस में सूर्य का प्रकाश दाख़िल होता है, और गर्मी वहीं ठहर जाती है. ग्रीनहाउस प्रभाव इसी तरह का परिदृश्य पृथ्वी के स्तर पर भी परिभाषित होता है, मगर किसी ग्रीनहाउस में लगे शीशे के बजाय, कुछ तरह की गैसें, वैश्विक तापमान को लगातार बढ़ा रही हैं.

पृथ्वी की सतह, सौर ऊर्जी के लगभग आधे हिस्सा को जज़्ब कर लेती है, जबकि 23 प्रतिशत गर्मी वातावरण में समा जाती है, और बाक़ी गर्मी या तापमान, वापिस अन्तरिक्ष में लौटा दिया जाता है. प्राकृतिक प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करती हैं कि सूरज से पृथ्वी की तरफ़ आने वाली और वापिस जाने वाली उर्जा की मात्रा समान हो, जिससे पृथ्वी का तापमान स्थिर रह सके. 

मगर, मानव गतिविधियों के कारण कथाकथित ग्रीनहाउस गैसों (CHGs) का ज़्यादा उत्सर्जन हो रहा है. वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसों के उलट, ग्रीनहाउस गैसें, वातावरण में ही ठहर जाती हैं और पृथ्वी से दूर नहीं जातीं. परिणामस्वरूप ये ऊर्जा पृथ्वी की सतह पर लौट आती है जहाँ ये जज़्ब हो जाती है.

चूँकि पृथ्वी में दाख़िल होने वाली ऊर्जा की मात्रा, वापिस लौटने वाली ऊर्जी की मात्रा से ज़्यादा होती है, इसलिये, पृथ्वी की सतह का तापमान तब तक बढ़ता है जब तक कि नया सन्तुलन हासिल नहीं होता.

दो महिलाएँ, सूखा से बुरी तरह प्रभावित ज़मीन में, अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिये, जल तलाश करते हुए.
© Apratim Pal
दो महिलाएँ, सूखा से बुरी तरह प्रभावित ज़मीन में, अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिये, जल तलाश करते हुए.

2. बढ़ता तापमान चिन्ताजनक क्यों?

इस तापमान वृद्धि के जलवायु पर दीर्घकालीन और प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, और इससे बेशुमार प्राकृतिक प्रणालियाँ भी प्रभावित होती हैं. 

इन प्रभावों में चरम मौसम की आवृत्ति (बारम्बारता) और सघनता में बढ़ोत्तरी होना भी शामिल है जिनमें बाढ़ आना, सूखा पड़ना, जंगलों में भीषण आग लगना और तूफ़ान शामिल हैं. इनके कारण करोड़ों लोग प्रभावित होते हैं और ख़रबों डॉलर का नुक़सान होता है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की ऊर्जा व जलवायु शाखा के प्रमुख मार्क राडका का कहना है, “मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, इनसानों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को ख़तरे में डालते हैं. और मज़बूत व ठोस जलवायु कार्रवाई नहीं की गई तो, प्रभाव और भी ज़्यादा व्यापक व गम्भीर होंगे.”

ग्रीनहाउस गैसें का उत्सर्जन जलवायु संकट को समझने व इसका सामना करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है: यूएन पर्यावरण कार्यक्रम की ताज़ातरीन रिपोर्ट में दिखाया गया है कि कोविड-19 के कारण तापमान वृद्धि में मामूली गिरावट हुई है लेकिन, अगर देशों ने उत्सर्जन में कमी करने के लिये, कहीं ज़्यादा व्यापक प्रयास नहीं किये तो, वैश्विक तापमान में इस सदी के अन्त तक 2.7 डिग्री सेल्सियस की ख़तरनाक वृद्धि होने का अनुमान है.

रिपोर्ट में पाया गया है कि अगर इस सदी के अन्त तक, तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक काल के स्तर से, 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है तो, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक आधा किये जाने की ज़रूरत है.

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक मन्दी के बावजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्तरों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो रही है.
Unsplash/Johannes Plenio
दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक मन्दी के बावजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड के स्तरों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हो रही है.

3. मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कौन सी हैं?

पानी से बनने वाली भाप, कुल मिलाकर ग्रीनहाउस प्रभाव में सबसे बड़ा योगदान करने वाला तत्व है. अलबत्ता वातावरण में, लगभग सारा जल भाप, प्राकृतिक प्रक्रियाओं से आती है.
कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2), मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं जिनके बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत है. 

कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) वातावरण में लगभग 1000 वर्षों तक बनी रहती है, मीथेन लगभग एक दशक तक, और नाइट्रस ऑक्साइड लगभग 120 वर्षों तक वातावरण में मौजूद रहती है.

4. मानव गतिविधि से किस तरह ये गैसें उत्पन्न हो रही हैं?

कोयला, तेल, और प्राकृतिक गैस, आज भी दुनिया के अनेक हिस्सों में ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं. इन जीवाश्म ईंधनों में कार्बन मुख्य तत्व है और, जब बिजली या ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जी प्रेषण, व गर्मी उत्पन्न करने के लिये इनमें से किसी भी तरह के जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है, तो उनसे कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) उत्पन्न होती है.

मानव गतिविधियों के कारण मीथेन गैस का जितना उत्सर्जन होता है, उसमें लगभग 55 हिस्से के लिये, तेल और गैस निकासी, कोयला खुदाई, और कूड़ा घर ज़िम्मेदार हैं. 

मानव गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाले मीथेन उत्सर्जन की लगभग 32 प्रतिशत मात्रा के लिये, गायों, भेड़ों और ऐसे अन्य मवेशियों को ज़िम्मेदार माना जाता है, जो अपने पेटों में भोजन की सिरका या ख़मीर प्रक्रिया करते हैं. 

खाद को गलाना या उसका अपघटन करना, और धान की खेती भी, मीथेन गैसे उत्सर्जन के अन्य महत्वपूर्ण कारण हैं.

मानव गतिविधियों द्वारा निर्मित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन मुख्य रूप से कृषि सम्बन्धी गतिविधियों के कारण होता है. भूमि और जल में मौजूद बैक्टीरिया, नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से नाइट्रस ऑक्साइड में तब्दील करते हैं, मगर उर्वरकों का प्रयोग करने के कारण इस प्रक्रिया में बढ़ोत्तरी होती है जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण में और ज़्यादा नाइट्रोजन एकत्र हो जाती है.

पवन चक्कियाँ नवीनीकृत ऊर्जा का उत्पादन करती हैं और कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम करती हैं.
Unsplash/TJK
पवन चक्कियाँ नवीनीकृत ऊर्जा का उत्पादन करती हैं और कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम करती हैं.

5. ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?

नवीनीकृत ऊर्जा का प्रयोग करने, कार्बन की क़ीमत निश्चित करना, और कोयला प्रयोग को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म करने, जैसे कुछ उपायों से, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है. 
लम्बी अवधि के लिये मानव और पर्यावरण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिये, अन्ततः उत्सर्जन में कमी के लिये उच्च व मज़बूत लक्ष्य ज़रूरी हैं.

मार्क राडका का कहना है, “हमें ऐसी ठोस नीतियाँ लागू करनी होंगी जिनसे, बढ़े हुए उत्सर्जन पलट सकें. हम इसी रास्ते पर चलते हुए, बेहतर नतीजों की अपेक्षा नहीं कर सकते. कार्रवाई अभी करनी होगी.”

यूएन जलवायु सम्मेलन कॉप-26 के दौरान, योरोपीय संघ और अमेरिका ने वैश्विक मीथेन संकल्प शुरू किया था जिसके तहत 100 से ज़्यादा देश, वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन, कृषि और कूड़ा प्रबन्धन क्षेत्रों में, मीथेन उत्सर्जन में 30 प्रतिशत कमी करने के लक्ष्य पर काम करेंगे.

चुनौतियों के बावजूद, सकारात्मक रुख़ अपनाने और आशान्वित रहने का भी एक कारण मौजूद है. वर्ष 2010 से 2021 तक, ऐसी नीतियाँ बनाई और लागू की गई हैं जिनके ज़रिये वर्ष 2030 तक, वार्षिक उत्सर्जन में 11 गीगाटन की कमी लाने का लक्ष्य है.

सर्वसाधारण भी, जलवायु-सकारात्मक कार्रवाई में, अपना निजी योगदान करने की ख़ातिर विचारों के लिये, संयुक्त राष्ट्र के #ActNow अभियान का हिस्सा बन सकते हैं.

पर्यावरण पर कम प्रभाव डालने वाले विकल्प चुनकर, सभी लोग, समाधान व प्रभावकारी बदलाव का हिस्सा बन सकते हैं.