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ऊर्जा कम्पनियों की मीथेन उत्सर्जन कटौती में प्रगति, मगर आँकड़े स्पष्ट नहीं - यूनेप

कच्चे तेल के शोधन से निकलने वाले उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के कुल उत्सर्जनों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
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कच्चे तेल के शोधन से निकलने वाले उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के कुल उत्सर्जनों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

ऊर्जा कम्पनियों की मीथेन उत्सर्जन कटौती में प्रगति, मगर आँकड़े स्पष्ट नहीं - यूनेप

जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण एजेंसी (UNEP) की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर की 80 से ज़्यादा तेल व गैस कम्पनियों ने अपने मीथेन उत्सर्जन को कम करने और उसे मापने के लिये संकल्प व्यक्त किया है. ध्यान रहे कि मीथेन गैस वैश्विक तापमान वृद्धि में दूसरे सबसे बड़ा कारक है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का कहना है कि लघु अवधि में जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये, मीथेन के उत्सर्जन में कटोती सबसे तेज़ रास्ता है, क्योंकि ग्रीन हाउस समूह की ये गैस, कार्बन डाइ ऑक्साइड की तुलना में, बहुत कम वर्षों तक वातावरण में मौजूद रहती है.

यह रिपोर्ट अन्तरराष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन प्रयोगशाला ने तैयार की है जोकि एक स्वतंत्र संस्था है और 2021 में गठित की गई थी.

रिपोर्ट में संकेत मिलता है कि मीथेन में कमी लाने के प्रयासों में अब और ज़्यादा कम्पनियाँ शामिल हैं, मगर उद्योग जगत के उत्सर्जनों का निर्धारण करने के लिये, और ज़्यादा प्रगति की ज़रूरत है.

बर्फ़ में मीथेन के बुलबुले
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बर्फ़ में मीथेन के बुलबुले

यूनेप की कार्यकारी निदेशिका इंगेर ऐंडर्सन ने कहा है कि जैसाकि संगठन की हाल में जारी कार्बन उत्सर्जन अन्तर रिपोर्ट में दिखाया गया है, दुनिया तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के रास्ते पर अभी बहुत पीछे है.

उन्होंने कहा, “कम्पनियाँ प्रगति तो कर रही हैं, मगर उन्हें तेज़ी से और ज़्यादा प्रयास करने होंगे. और ज़्यादा कम्पनियों को कार्रवाई करने की ज़रूरत है, और उन्हें साहसिक बनना पड़ेगा.”

तेल और गैस मीथेन साझेदारी

इस रिपोर्ट में तेल व गैस मीथेन साझेदारी 2.0 (OGMP 2.0) के दूसरे वर्ष की प्रगति का जायज़ा लिया गया है. कम्पनियों को जलवायु सहनशीलता की कार्रवाई करने और पूंजी संसाधनों के कुशलतापूर्णक आबंटन में मदद करने के लिये, यूनेप की ये अति महत्वपूर्ण प्रणाली है.

यूएन पर्यावरण के इस “स्वर्णिम मानक” मार्ग में 60 सदस्य हैं जिन्होंने दाख़िल किये जाने वाले अपने आँकड़ों की गुणवत्ता सुधारने के लिये योजनाएँ लागू करने के लिये संकल्प व्यक्त किया है. ये सदस्य मीथेन उत्सर्जन के मापन आधारित आकलन की तरफ़ बढ़त में प्रगति कर रहे हैं.

जीवाश्म ईंधन से निकलने वाला पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये बहुत हानिकारक है.
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जीवाश्म ईंधन से निकलने वाला पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये बहुत हानिकारक है.

अलबत्ता 12 सदस्य कम्पनियाँ सही रफ़्तार पर नहीं हैं: दो कम्पनियों ने, गत वर्ष की तुलना में, अपना स्वर्णिम मानक स्तर गँवा दिया है, सात कम्पनियों ने किसी भी वर्ष ये दर्जा हासिल नहीं किया, और 2022 में सदस्य बनने वाली कम्पनियों ने भी ये दर्जा हासिल नहीं किया है.

इस बीच, हाल के अध्ययनों में ऊर्जा कम्पनियों की तरफ़ से मीथेन उत्सर्जन में वैश्विक कमी करने के लिये, प्रतिवर्ष 8 करोड़ से, से 14 करोड़ टन कटौती के आकलन पेश किये गए हैं. जबकि अन्तरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मीथेन निगरानी प्रणालियों के अनुसार, उत्सर्जनों की मात्रा न्यूनतम स्तर पर नज़र आती है.

मीथेन उत्सर्जनों में कटौती की महत्ता

जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी पैनल (IPCC) की अप्रैल 2022 में प्रकाशित आकलन रिपोर्ट के अनुसार, तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये, दुनिया को मीथेन के उत्सर्जन में कम से कम एक तिहाई कटौती करनी ज़रूरी है.

मगर मीथेन गैस के उत्सर्जन में कटौती करने से, जीवाश्म ईंधन से दूर हटने की तात्कालिकता व महत्ता कम नहीं हो जाती है.

पवन ऊर्जा जैसी शुद्ध ऊर्जा भी शून्य उत्सर्जन हासिल करने का एक प्रमुख साधन है.
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पवन ऊर्जा जैसी शुद्ध ऊर्जा भी शून्य उत्सर्जन हासिल करने का एक प्रमुख साधन है.

यूनेप ने बताया है कि वैसे तो जीवाश्म ईंधन से तेज़ गति से हटना एक अन्तिम लक्ष्य है, मगर इस परिवर्तन यात्रा के दौरान, मीथेन उत्सर्जन में कटौती करना भी अति महत्वपूर्ण है.

संगठन के अनुसार, “वृहद तस्वीर देखी जाए तो तेल व गैस उद्योग के लिये मीथेन उत्सर्जन और तमाम तरह के अन्य उत्सर्जनों को ख़त्म करने का सर्वश्रेष्ठ रास्ता, उन्हें ऊर्जा कम्पनियों के रूप में अपनी भूमिकाओं की पूर्ण समीक्षा करना है.”

यूनेप की कार्यकारी निदेशिका इंगेर एंडर्सन का कहना है, “अगर ये उद्योग, नैट-शून्य भविष्य के बारे में गम्भीर है तो यही उसका दीर्घकालीन लक्ष्य होना चाहिये, जैसा कि उसे सर्वजन को स्वास्थ्य, सम्पदा और समृद्धि की उपलब्धता में गम्भीर होना चाहिये.”