कोविड-19 से निपटने की कार्रवाई में मानवाधिकारों का ध्यान रखने पर ज़ोर
संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सभी देशों से आग्रह किया है कि विश्वव्यापी महामारी कोरोनावायरस यानि कोविड-19 पर क़ाबू पाने के प्रयासों में आपात अधिकारों के ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल से बचना होगा. आपात अधिकारों का इस्तेमाल असहमतियों को कुचलने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस बीमारी पर क़ाबू पाने के लिए ऐसे तरीक़े अपनाने होंगे जिनके मूल में मानवाधिकार हैं.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा, “हम मौजूदा स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को समझते हैं और मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों में बड़े ख़तरों से निपटने के लिए आपात शक्तियों के इस्तेमाल की अनुमति है. लेकिन हम सदस्य देशों को ध्यान दिलाना चाहेंगे कि कोरोनावायरस पर आपात कार्रवाई आवश्यकता के अनुपात में, ज़रूरत के अनुरूप और बिना भेदभाव के होनी चाहिए.”
कोरोनावायरस पोर्टल व न्यूज़ अपडेट
हमारे पाठक नॉवल कोरोनावायरस के बारे में संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन व अन्य यूएन एजेंसियों द्वारा उपलब्ध जानकारी व दिशा-निर्देश यहाँ देख सकते हैं. कोविड-19 के बारे में यूएन न्यूज़ हिंदी के दैनिक अपडेट के लिए यहाँ क्लिक करें.संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट भी इससे पहले आगाह कर चुकी हैं कि मानवाधिकारों को कोरोनावायरस महामारी से निपटने के प्रयासों के केंद्र में रखना होगा.
यूएन विशेषज्ञों ने बताया कि स्वास्थ्य या सुरक्षा कारणों से आपात हालात घोषित किए जाने के लिए अंतरराष्ट्रीय क़ानून में स्पष्ट दिशानिर्देश हैं.
“आपात शक्तियों के इस्तेमाल की सार्वजनिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए और इसकी सूचना प्रासंगिक संधि संगठनों को दी जानी चाहिए, जब आवागमन, पारिवारिक जीवन, एकत्रित होने के अधिकार सहित अन्य बुनियादी अधिकारों को काफ़ी हद तक सीमित किया जा रहा हो.”
स्वतंत्र विशेषज्ञों ने आगाह किया कि कुछ ख़ास समूहों, अल्पसंख्यकों या लोगों को निशाना बनाने के लिए आपात घोषणाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य रक्षा की आड़ लेकर दमनकारी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए और ना ही इनका इस्तेमाल मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को की आवाज़ ख़ामोश कराने के लिए होना चाहिए.
“वायरस से निपटने के लिए लगाई गई पाबंदियों का असली उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े लक्ष्य ही होने चाहिए और असहमतियों को कुचलने में उनका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.”
मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि कुछ देशों और सुरक्षा संस्थाओं को आपात शक्तियों का इस्तेमाल आकर्षक लगता है क्योंकि उनके लिए यह एक शॉर्टकट हो सकता है.
“अत्यधिक शक्तियों के क़ानूनी और राजनैतिक प्रणाली में रचने-बसने की रोकथाम करने के लिए पाबंदियाँ कम से कम परिस्थितियों में लागू करनी होंगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कम से कम हस्तक्षेप वाले साधनों का इस्तेमाल करना होगा.”
जिन देशों में वायरस संक्रमणों की संख्या में कमी आ रही हैं वहां स्थानीय प्रशासन को प्रयास करने होंगे कि जीवन जल्द पटरी पर लौट आए.
उन्होंने कहा है कि दैनिक जीवन में अनिश्चितकाल के लिए आपात शक्तियों के इस्तेमाल से परहेज़ करना होगा.
विशेषज्ञों ने सदस्य देशों को महामारी पर क़ाबू पाने के लिए मानवाधिकारों पर आधारित तरीक़े अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है ताकि विधि के शासन व मानवाधिकार संरक्षण के साथ स्वस्थ समाजों का निर्माण हो सके.
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है. ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है. स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं.