वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
हॉंगकॉंग के पास एक कंटेनर जहाज़.

समुद्र में फँसे नाविकों की व्यथा - “मेरे बच्चे पूछते हैं कि मैं घर कब आ रहा हूँ”

Unsplash/Kinsey
हॉंगकॉंग के पास एक कंटेनर जहाज़.

समुद्र में फँसे नाविकों की व्यथा - “मेरे बच्चे पूछते हैं कि मैं घर कब आ रहा हूँ”

मानवाधिकार

विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के फैलाव से बचाव के लिये ऐहतियाती उपायों के मद्देनज़र यात्रा सम्बन्धी पाबन्दियाँ लागू की गई हैं जिनसे लाखों नाविक (Seafarers) भी प्रभावित हुए हैं. घर-परिवार से दूर समुद्र में फँसे नाविकों के लिये गहरी और लम्बी अनिश्चितता जल्द ख़त्म होती नज़र नहीं आती और मौजूदा हालात से उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है.

“मैं थका हुआ, शक्तिहीन और नाउम्मीद महसूस कर रहा हूँ. मुझे समुद्र में रहते हुए पहले ही 12 महीनों का समय हो चुका है और मुझे नहीं मालूम कि मैं अपने बच्चों और परिवार को कब देख पाऊँगा. यह बेहद हताश कर देने वाला है.”

फ़िलिपींस के नाविक रफ़ाएल (परिवर्तित नाम) की उम्र 33 वर्ष है और उन्हें ज़रा भी अन्दाज़ा नहीं है कि उन्हें अपने जहाज़ पर और कितने समय तक रहना होगा. रफ़ाएल के दो बच्चे हैं और उन्हें अप्रैल में अपने घर के लिए उड़ान भरनी थी लेकिन महामारी के कारण उनकी योजना पर पानी फिर गया. 

हवाई अड्डे बन्द हैं और उनकी कम्पनी ने फ़िलहाल उन्हें और आठ अन्य सहकर्मियों को अवकाश ना देने का फ़ैसला किया है. उनमें से कुछ तो पिछले 14 महीनों से जहाज़ पर सवार हैं. 

“यह चौथी बार है जब घर जाने के लिये मेरी छुट्टियाँ स्थगित की गई हैं. मुझे नहीं मालूम कि हो क्या रहा है. हम कार्गो और सामान पहुँचाते हैं लेकिन उन्होंने हमारे लिये सीमाएँ बन्द कर दी हैं.”

रफ़ाएल का कहना है कि इस अनिश्चितता के कारण जहाज़ पर माहौल तनावपूर्ण है और उन्हें डर है कि इसका सुरक्षा पर असर होगा क्योंकि नाविकों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. 

”हमारे मन दूसरी दुनियाओं में हैं, यह महीन हवा पर चलने जैसा है. हम बस घर आना चाहते हैं.” 

वैश्विक व्यापार का लगभग 90 फ़ीसदी समुद्री जलमार्गों और समुद्री परिवहन से होता है और इस कार्य में 20 लाख से ज़्यादा लोग जुटे हैं. 

रफ़ाएल की ही तरह मैट ब्रिटेन के एक चीफ़ इंजीनियर हैं जो मुख्यत: मध्य पूर्व और एशिया की यात्रा करते हैं.

उनका मानना है कि महामारियों के दौरान भी महत्वपूर्ण वस्तुओं व सामग्री की निर्बाध रूप से आपूर्ति सम्भव बनाने में नाविकों का अहम योगदान है और इसलिये उनके काम को और ज़्यादा महत्व मिलना चाहिए.

चीफ़ इंजीनियर मैट मध्य पूर्व और एशिया की यात्रा करते हैं.
IMO
चीफ़ इंजीनियर मैट मध्य पूर्व और एशिया की यात्रा करते हैं.

“मैं कहूँगा कि हमने नाविकों के रूप में महामारी के दौरान अपनी भूमिका बख़ूबी निभाई है. हमने देशों को निजी बचाव सामग्री, मेडिकल सामान, बिजली घर चलाए रखने के लिये तेल व गैस और भोजन व जल सहित ज़रूरी वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी.”

“अब हम बस घर लौटकर आराम करना चाहते हैं.”

मैट और नाविक दल के अधिकाँश अन्य सदस्यों का कॉन्ट्रैक्ट पूरा हो चुका है.

उन्होंने बताया कि आम तौर पर 10 हफ़्ते के कॉन्ट्रैक्ट के बाद अधिकारियों की अदला-बदली होती है लेकिन मौजूदा हालात में अधिकाँश सदस्यों को छह महीने से ज़्यादा समय बीत चुका है. 

“नाविक दल के लिये तो हालात और भी ख़राब हैं: वे 9 महीने के कॉन्ट्रैक्ट पर थे लेकिन एक नाविक पिछले 15 महीनों से जहाज़ पर सवार है.”

घर पर मैट के दो बच्चे उनका इन्तज़ार कर रहे हैं और उनके परिवार से दूर रहने से हालात मुश्किल होते जा रहे हैं.  

“मैंने पहले भी लम्बी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट पर काम किया है लेकिन यह अलग है. इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है क्योंकि इसका अन्त होता नज़र नहीं आता.”

“इससे मेरे परिवार पर भी ज़्यादा असर हुआ है. मेरे बच्चे हमेशा मुझसे पूछते हैं कि मैं घर कब आ रहा हूँ. उन्हें समझा पाना मेरे लिए मुश्किल है.”

समय बीतने के साथ मैट और अन्य नाविकों को अनेक प्रकार की भावनाओं से गुज़रना पड़ा है और मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ बढ़ रहा है.

“मैं सोचता हूँ कि हम बहुत सी भावनाओं से गुज़रे हैं. शुरुआत में बहुत ग़ुस्सा था क्योंकि हमें सीमाओं को बन्द होते देखना पड़ा. हम स्वास्थ्य जोखिमों को समझ गए थे लेकिन यह नहीं जानते थे कि यह क्यों हो रहा है.”

बन्दरगाह पर एक कंटेनर जहाज़ से सामान उतारा जा रहा है.
IMO
बन्दरगाह पर एक कंटेनर जहाज़ से सामान उतारा जा रहा है.

“हमने उम्मीद नहीं छोड़ने का प्रयास किया लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, ऐसा लगा कि कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया. हम अब भी टिके हुए हैं लेकिन मासनिक रूप से बुरी तरह थक चुके हैं.”

अधर में जीवन

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) में ट्रान्सपोर्ट व मैरीटाइम यूनिट के प्रमुख वैगनर ब्रैण्ट अतीत में एक जहाज़ के अधिकारी रह चुके हैं और नाविक दल के सदस्यों की चुनौती को समझते हैं. 

“समुद्र में रहना मुश्किल हो सकता है. जब मौसम ख़राब होता है तो मनोस्थिति बेहद ख़राब हो सकती है. साथ ही जहाज़ पर सवार लोग महीनों तक उसी जगह पर काम करते हैं. इन दिनों उद्योग बहुत दक्ष हैं इसलिये जहाज़ में सामान को जल्द चढ़ाया और उतारा जा सकता है.”

उन्होंने कहा कि बन्दरगाह शहर के केन्द्रीय इलाक़ों से कुछ दूर होते हैं और तेल टैंकरों के मामले में तो तट से दूर जाना पड़ता है इसलिये नाविकों के पास जहाज़ छोड़कर जाने के अवसर अतीत की अपेक्षा कम होते हैं. यह बेहद अलग-थलग महसूस कराने वाला अनुभव होता है.

वर्ष 2006 में यूएन एजेंसी के प्रयासों के फलस्वरूप ‘Maritime Labour Convention’ स्थापित की गई है जिसे अक्सर नाविकों के अधिकारों का बिल कहा जाता है. इस सन्धि में नाविकों के कामकाज के हालात, आराम के न्यूनतम घण्टे, सुरक्षा, स्वास्थ्य व बचाव जैसे विषयों का ध्यान रखा गया है.

इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी नाविक को समुद्र में 11 महीने से ज़्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता.

लेकिन मुश्किलें अब भी बरक़रार हैं – नाविकों को वेतन कम मिलता है, उनके काम के घण्टे लम्बे होते हैं और अक्सर दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है. लेकिन ऐसी ही चुनौतियों से निपटने के लिये अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मानक स्थापित और लागू करने का प्रयास किया जाता है.  

इन सन्धियों की मौजूदा महामारी के दौरान कड़ी परीक्षा हुई है. नाविकों को अपने जहाज़ों या घरों तक पहुँचने के लिये हज़ारों किलोमीटरों का सफ़र करना पड़ सकता है. यात्री विमान उड़ानों की संख्या में भारी कमी आई है, सीमाएँ बन्द हैं और कुछ देशों से होकर यात्रा करने में वीज़ा सम्बन्धी पाबन्दियाँ लागू हैं.

नाविको का अहम योगदान 

यूएन एजेंसी (International Maritime Organization) ने रफ़ाएल, मैट और उन जैसे दो लाख से ज़्यादा नाविकों की मदद के लिये अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन, अन्तरराष्ट्रीय परिवहन कर्मचारी फ़ैडरेशन और अन्तरराष्ट्रीय पोत-परिवहन चैम्बर के साथ मिलकर एक ‘नाविक संकट कार्रवाई टीम’ (Seafarer Crisis Action Team) का गठन किया है.

यूनीसेफ़ की मदद से वर्ष 2018 में यमन के हुदायदाह में राहत सामग्री का वितरण किया गया.
© UNICEF
यूनीसेफ़ की मदद से वर्ष 2018 में यमन के हुदायदाह में राहत सामग्री का वितरण किया गया.

इस टीम की मदद से अनेक मामलों में समाधान ढूँढने और नाविकों को घर लौटने में मदद सम्भव हुई है.

यूएन एजेंसी ने सभी सरकारों से नाविकों व अन्य कर्मचारियों को आवश्यक सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों के रूप में वर्गीकृत करने का आग्रह किया है ताकि नाविकों की टीमों को आसानी से बदला जाना सम्भव हो सके. 

इस सम्बन्ध में जुलाई में ब्रिटेन में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन हुआ जिसमें 13 देशों ने नाविकों को अहम कर्मचारियों के रूप में मान्यता देने का संकल्प लिया है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने भी समुद्र में व्याप्त इस मानवीय और सुरक्षा संकट पर अपनी चिन्ता व्यक्त की है. साथ ही उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था में नाविकों के अघोषित योगदान और यमन सहित अन्य हिंसाग्रस्त इलाक़ों में फँसे लोगों की मदद करने के लिये राहत सामग्री का वितरण सुनिश्चित करने के लिये उनकी प्रशंसा की है. 

मैट अब जल्द ये बदलाव देखना चाहते हैं. उनका कहना है कि हमें सरकारों से समर्थन की ज़रूरत है ताकि हमें पाबन्दियों के बिना उनके देशों से होकर गुज़रने की अनुमति मिल सके. वीज़ा के लिये समयावधि को कम करने या पूरी तरह हटाने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा कि ऐसा जल्द किया जाना होगा क्योंकि इस काम में देरी से पोत-परिवहन उद्योग पर नकारात्मक असर होगा. उनके मुताबिक बातचीत के लिये पर्याप्त समय बीत चुका है, अब वास्तविक बदलाव की ज़रूरत है.