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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लैंगिक समानता से सभी को लाभ

केनया में एक इंजानियरिंग वर्कशॉप में एक महिला प्रशिक्षण हासिल करते हुए, महिलाएं अनेक क्षेत्रों में अपने हुनर का इस्तेमाल कर सकती हैं, बशर्ते कि उन्हें सही अवसर मिलें.
Lin Qi
केनया में एक इंजानियरिंग वर्कशॉप में एक महिला प्रशिक्षण हासिल करते हुए, महिलाएं अनेक क्षेत्रों में अपने हुनर का इस्तेमाल कर सकती हैं, बशर्ते कि उन्हें सही अवसर मिलें.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लैंगिक समानता से सभी को लाभ

महिलाएँ

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यूएन वीमैन की अध्यक्ष ने कहा है कि लैंगिक समानता के लाभ केवल महिलाओं या लड़कियों के लिए ही नहीं हैं, बल्कि एक न्यायपूर्ण दुनिया बनाने से जिनका भी जीवन बदलेगा, उन सभी को फ़ायदा होने वाला है. इस दिवस के अवसर पर न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में शुक्रवार को आयोजित  एक कार्यक्रम में यूएन वीमैन प्रमुख ने ये बात कही. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है.

यूएन वीमैन की कार्यकारी निदेशक फ़ूमज़िली म्लाम्बो न्गक्यूका ने कहा कि वर्ष 2020 लैंगिक समानता के लिए एक अति महत्वपूर्ण साल होने के नाते Generation Equality यानी समानता वाली पीढ़ी के इर्दगिर्द सक्रिय रहेगा. 

इस वर्ष के दौरान हम महिलाओं के अधिकारों को वास्तविक बनाने के लिए माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही 1995 में हुए बीजिंग प्लैटफ़ॉर्म फ़ॉर एक्शन की भी 25वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही है. लैंगिक समानता के लिए बीजिंग घोषणा-पत्र को ऐतिहासिक और मील का पत्थर कहा गया है.

जैनरेशन इक्वैलिटी मुहिम ऐसे मुद्दों पर ज़ोर दे रही है जिनका सामना महिलाएँ कई पीढ़ियों से करती रही हैं, और उनमें युवा महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई हैं.

यूएन वीमैन प्रमुख का कहना था, "इस समय हम जिस दुनिया में रहते हैं, वो समानता वाली दुनिया नहीं हैं और महिलाएँ अपने भविष्य के प्रति क्रोधित व चिंतित हैं. वो आक्रामक तरीक़े से परिवर्तन के लिए बेचैन हैं. ये ऐसी बेसब्री है जो बहुत गहराई तक जाती है, और ये अनेक वर्षों से उबल रही है."

सुश्री म्लाम्बो न्गक्यूका ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि हमारे दौर की लड़कियाँ आज की दुनिया में नेतृत्व के मुद्दे, लड़कियों के ख़िलाफ़ नहीं रुकने वाली हिंसा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में बदलाव की धीमी रफ़्तार पर बहुत निराश हैं.

"मेरी सबसे बड़ी बेचैनी आर्थिक असमानता पर जो बदलने का नाम ही नहीं ले रही है. इसी कारण से ग़रीबी डेरा जमाए बैठी रहती है."

यूएन वीमैन प्रमुख ने कहा कि बच्चों की देखभाल जैसे क्षेत्रों में समानता को बढ़ावा देने के लिए ठोस नीतियों की ज़रूरत है. साथ ही परिवारों की देखरेख करने वालों और असंगठित अर्थव्यवस्थाओं में काम करने वालों को सरकारी सहायता भी मिलनी चाहिए.

"आक्रामक तरीक़े से बेचैन होने के बावजूद हम हिम्मत नहीं हार रहे हैं."

'महिला भर'

लाइबेरिया की एक शांति कार्यकर्ता लेमाह ग्बोवी ने महासभा में हुए समारोह में प्रतिनिधियों से तालियों भरा स्वागत देखा. उन्होंने लाइबेरिया में पूर्व बाल सैनिकों के साथ काम किया है. लेमाह ग्बोवी ने 14 वर्ष के एक ऐसे विकलांग के साथ हुई अपनी बातचीत सुनाई जिसे तब बाल सैनिक के रूप में भर्ती किया गया था जब उसकी उम्र केवल 9 वर्ष थी.

भारत के भाताझारी गॉंव में एक स्वयं सहायता समूह की बैठक.
© UNICEF/Ashima Narain
भारत के भाताझारी गॉंव में एक स्वयं सहायता समूह की बैठक.

महिलाओं को अक्सर किस रूप में देखा और समझा जाता है, उसकी एक बानगी उस विकलांग से हुई बातचीत में मिलती है. उसने स्वीकार किया था कि उसने कई बार लड़कियों और महिलाओं का बलात्कार किया क्योंकि उसकी नज़र में, "क्योंकि महिलाएँ इसीलिए तो बनी हैं."

शांति कार्यकर्ता लेमाह ग्बोवी का कहना था कि जब किसी संदर्भ में 'केवल महिला' शब्द इस्तेमाल किया जाता है तो इससे महिलाओं के कामकाज की महत्ता और मूल्य कम होता है और दैनिक जीवन में उनके वजूद की महत्ता कम होती है.

"यहाँ तक कि हमारी मानवीय सुरक्षा की ज़रूरतों के बारे में भी कोई बातचीत शुरू नहीं कर सकते क्योंकि हमसे हमारा महत्वपूर्ण होना छीन लिया गया है."

ये अवधारणा समानता के बारे में कोई बातचीत शुरू करने के विचार के लिए शुरू से ही दरवाज़े बंद कर देती है, मगर फिर भी बातचीत तो होनी ही होगी.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमारी अन्यायपूर्ण व असमान दुनिया में, लैंगिक समानता केवल आँकड़ों भर होने से कहीं ज़्यादा है, "समानता हमारी सामूहिक इंसानियत... शांति और न्याय से जुड़ी हुई है."

लेमाह ग्बोवी ने कहा कि महिलाधिकारों के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति, वित्ताय संसाधनों और ज़िम्मेदारी संभावना वाले रुख़ के ज़रिए क्रांतिकारी बदलाव की ज़रूरत है.

अग्रिम मोर्चों पर महिलाएँ

विश्व की सबसे कम उम्र की महिला प्रधानमंत्री - नॉर्वे की सन्ना मैरीन ने भी मंच पर आकर अपनी बात कही और कहा कि उनका देश लैंगिक समानता को समाज की बुनियाद के रूप में प्रोत्साहित करता है.

श्रम बाज़ार में व्याप्त असमानताओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि डिजिटल दुनिया में लैंगिक खाई ने महिलाओं और लड़कियों की प्रगति के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर दिया है. और इससे निपटने एक तरीक़ा यही है कि ज़्यादा से ज़्यादा लड़कियाँ कोडिंग सीखें और अधिक से अधिक महिलाएँ टैक्नॉलॉजी की दुनिया में दाख़िल हों.

साथ ही ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को ऐसे कार्यालयों में भी प्रविष्ट होना होगा जहाँ वो अपना प्रभाव छोड़ सकें.

महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के समर्थन में उन्होंने कहा कि जो प्रगति अभी तक हो चुकी है, उसे बेकार नहीं जाने दिया जा सकता... "और मैं किसी के भी इन दावों को सख़्ती से नकार दूँगी कि महिलाओं को मौजूदा समय में सरकार या बोर्डरूम्स में मौजूद नहीं होना चाहिए."

केनया में एक महिला एक फ़ैक्टरी में काम करते हुए
Lin Qi
केनया में एक महिला एक फ़ैक्टरी में काम करते हुए

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि बीजिंग सम्मेलन के बाद 25 वर्षों के दौरान बाद महिलाओं के अधिकार हासिल करने में हुई प्रगति थम सी गई है, यहाँ तक कि कुछ मामलों में तो पलट गई है.

महासचिव ने कहा, "कुछ देशों ने तो महिलाओं की हिफ़ाज़त करने वाले क़ानून ख़त्म कर दिए हैं, कुछ अन्य देश महिलाओं के लिए सक्रियता का नागरिक स्थान कम कर रहे हैं, जबकि कुछ देशों में ऐसी आर्थिक व आप्रवासन नीतियाँ लागू हैं जिनके कारण परोक्ष रूप से महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव होता है."

"कुछ देशों में लैंगिक समानता के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह में बढ़ोत्तरी हो रही है."

यूएन प्रमुख ने कहा, "मैं एक गौर्वान्वित महिलाधिकार समर्थक हूँ. केवल समान भागीदारी के ज़रिए ही महिलाएँ तमाम मानवता की बुद्धिमत्ता, अनुभव और ज्ञान से लाभान्वित हो सकती हैं."

एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, "पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि पुरुष अब महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता के लिए उठ खड़े हों." इसीलिए महासचिव पूरे संयुक्त राष्ट्र संगठन में महिलाओं के अधिकारों को समर्थन बढ़ाने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रतिबद्ध हैं.

उन्होंने कहा कि अगले दो वर्षों के दौरान वो अपने अधिकार क्षेत्र में मौजूद सभी प्रयासों के ज़रिए ये सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि संयुक्त राष्ट्र में तमाम निर्णयकारी मामलों और पदों में महिलाओं का ठोस प्रतिनिधित्व हो, और इनमें शांति प्रक्रियाएँ भी शामिल हैं.

मंज़िल अभी दूर है

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद बाँडे ने लैंगिक समानता को वास्तकिता बनाने के लिए सभी का आहवान करते हुए कहा कि मानवाधिकार बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाना एक आवश्यकता है.

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा कि अभी किसी भी देश में पूरी तरह से लैंगिक समानता हासिल नहीं की गई है, "अभी हमें बहुत काम करना है."

महासभा अध्यक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसे में जबकि हम सभी टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कार्रवाई दशक में दाख़िल हो रहे हैं तो बहुत ज़रूरी है कि टिकाऊ विकास लक्ष्य-5 को अपने कामकाज के तमाम क्षेत्रों में मुख्य धारा में लाया जाए. ध्यान रहे कि इस लक्ष्य में लैंगिक समानता पर ज़ोर दिया गया है.

"टिकाऊ विकास लक्ष्य संख्या-5 ज़ोर देता है कि महिलाओं और लड़कियों को तमाम निर्णयों में समान पूर से भागीदारी करने का मौक़ा सुनिश्चित हो."

यूएन वीमैन संस्था के वजूद में आने के 10 वर्ष पूरे होने के मौक़े पर उन्होंने जैनरेशन इक्वैलिटी नामक अभियान के लिए समर्थन का आहवान किया. उन्होंने कहा कि ऐसा करना इसलिए ज़रूरी है ताकि समानता हर किसी के लिए रोज़मर्रा का अनुभव बन जाए, जिसमें लैंगिक भेदभाव ना रहे.

महासभा अध्यक्ष ने कहा कि हम एकजुट होकर काम करके... तमाम महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों को वास्तविक रूप देने में बहुपक्षीय कार्रवाई सुनिश्चित कर सकते हैं.