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महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा का ख़ात्मा ज़रूरी

दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र के शान्तिरक्षा मिशन में तैनात इरीन लासू जो रेडियो मिराया में कार्यक्रम पेश करती हैं और लोगों को विभिन्न मुद्दों पर जागरूक बनाने अहम भूमिका निभा रही हैं.
UNMISS/Isaac Billy
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र के शान्तिरक्षा मिशन में तैनात इरीन लासू जो रेडियो मिराया में कार्यक्रम पेश करती हैं और लोगों को विभिन्न मुद्दों पर जागरूक बनाने अहम भूमिका निभा रही हैं.

महिला पत्रकारों के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा का ख़ात्मा ज़रूरी

महिलाएँ

महिला पत्रकारों को अपने कामकाज के दौरान विशेष ख़तरों का सामना करना पड़ता है, संयुक्त राष्ट्र की एक विशेषज्ञ ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को बताया है कि सरकारों को महिला पत्रकारों की सुरक्षा के लिए और अधिक क़दम उठाने की ज़रूरत है. 

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा पर विशेष दूत दुबरावका सिमोनोविक ने बुधवार को सदस्य देशों से की गई एक अपील में कहा कि "उभरते कट्टरपंथी भाषण" और "महिलाओं के अधिकारों के ख़िलाफ़ वैश्विक प्रतिक्रिया" का मुक़ाबला करने के लिए तुरन्त कार्रवाई की आवश्यकता है.

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उन्होंने सरकारों से “महिलाओं के प्रति भेदभाव और लैंगिक हिंसा ख़त्म करने के लिए मानव अधिकार तन्त्रों को पूरी तरह लागू करके,” महिलाओं को सुरक्षित रखने की पुकार लगाई है. 

जोखिम बहुत हैं

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ ने कोविड-19 संकट के दौरान महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के अतिरिक्त ख़तरों पर प्रकाश डालते हुए सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली रणनीति का समर्थन करने और लैंगिक उत्पीड़न को रोकने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा, "महिलाओं को अपने घरों में सुरक्षित रहने का अधिकार है. महामारी से निपटने के कोई भी उपाय मानवाधिकारों के अनुकूल और महिलाओं की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए “घरों में शान्ति” रखने की संयुक्त राष्ट्र महासचिव की अपील के अनुरूप होने चाहिए.”

संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत के मुताबिक, हालाँकि #MeToo और #NiUnaMenos जैसे अधिकार आन्दोलनों ने यौन उत्पीड़न और लैंगिक हिंसा के अन्य रूपों पर प्रकाश डाला है, और साथ ही महिला पत्रकारों को दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ बोलने के लिए एक मंच की पेशकश की है, फिर भी अब भी अनेक महिलाएँ खुलकर बोलने में संकोच करती हैं. 

उन्होंने कहा कि 1992 के बाद से, 96 महिला पत्रकारों की उनके अपना काम करने के दौरान हत्या कर दी गई. यद्यपि मारे जाने वाले पुरुष पत्रकारों की संख्या अधिक है लेकिन ख़ास बात ये है कि महिला पत्रकार विशेषकर लैंगिक हिंसा का शिकार हुई हैं. 

दुबरावका सिमोनोविक ने बताया कि इसमें "यौन उत्पीड़न व बलात्कार और विशेष रूप से बलात्कार की धमकी ... उनकी विश्वसनीयता कम करने और उन्हें काम करने से हतोत्साहित करना" शामिल हैं.

'दुधारी तलवार'

इसके अलावा, डिजिटल स्पेस महिलाओं के लिए वो दुधारी तलवार हैं, जिसमें साइबर स्पेस के ज़रिये भी महिलाओं का उत्पीड़न फैल रहा है.

हालाँकि इससे समाज में बदलाव आ रहा है और उसे नया आयाम मिल रहा है, लेकिन इससे ऑनलाइन हिंसा के नए रूप भी सामने आ रहे हैं.

दुबरावका सिमोनोविक ने कहा, "महिला पत्रकारों को महिलाओं के अधिकारों की मुखर प्रतिनिधि होने के कारण तेज़ी से निशाना बनाया जा रहा है."

"पत्रकारों को इससे भी बुरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है अगर वो महिला होने के साथ-साथ क़बायली, अल्पसंख्यक, समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रान्सजैंडर या इंटरसैक्स समुदाय से भी हों."

उन्होंने 2019 में पाँच देशों के दर्जनों समाचार पत्रों में छपे एक अध्ययन का उदाहरण दिया, जिसमें ये इशारा था कि महिला और अल्पसंख्यक पत्रकारों को न केवल ऑनलाइन निशाना बनाया जाता है, बल्कि उन पर हुए हमले बेहद दुर्भावनापूर्ण और अक्सर यौन सम्बन्धी होते थे.

दुबरावका सिमोनोविक ने महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा में "ख़तरनाक बढ़ोत्तरी" की निन्दा करते हुए ब्रिटेन के ‘द गार्डियन’ मीडिया ग्रुप के एक सर्वेक्षण का हवाला दिया, जिसने अपनी वेबसाइट पर लाखों टिप्पणियाँ प्रकाशित कीं. इनमें सबसे ज़्यादा दुर्व्यवहार का शिकार हुए 10 लेखकों में आठ महिलाएँ थीं.

बहुत-कुछ करना बाक़ी है

संयुक्त राष्ट्र की स्वतन्त्र दूत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि थोड़ी प्रगति के बावजूद, कोविड-19 महामारी के दौरान, "महिला पत्रकारों सहित दुनिया भर की महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा में हुई ख़तरनाक वृद्धि" से निपटने के लिए अभी, "बहुत कुछ किये जाने की ज़रूरत है." 

उन्होंने सभी देशों को "संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के व्यापक समन्वित दृष्टिकोण व महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा से निपटने और उसपर एक वैश्विक कार्यान्वयन योजना" के लिए रणनीति का समर्थन करने का दोबारा आहवान किया.

विशेष रैपोट्रेयर मानवाधिकार परिषद द्वारा विशेष मानवाधिकार मुद्दों या किसी देश की स्थिति पर जाँच के लिए नियुक्त किये जाते हैं. ये पद मानद होते हैं और ये विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते, न ही उनके काम के लिए संयुक्त राष्ट्र  की तरफ़ से  उन्हें कोई वित्तीय भुगतान किया जाता है.