तीसरी कमेटी: मानवाधिकार संरक्षण की ज़िम्मेदारी
मादक पदार्थों पर नियंत्रण से लेकर, इंडीजिनस यानी आदिवासी लोगों के अधिकारों और आतंकवाद निरोधक उपायों तक, इन सभी हालात में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी है - संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति पर. तीसरी समिति को सामाजिक, मानवीय सहायता और सांस्कृतिक मामलों की समिति भी कहा जाता है. इसके सामने जटिल समस्याओं और चुनौतियों की एक लंबी सूची है जिन पर ये समिति नीतियाँ व कार्यक्रम बनाती है. हर साल सितंबर में जब विश्व नेता यूएन मुख्यालय में एकत्र होते हैं तो उनके विचारों और संकल्पों को हक़ीक़त में बदलने के लिए क्या-क्या किया जाता है, इस बारे में हमारी श्रंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है महासभा की तीसरी समिति के बारे में...
पिछले कुछ वर्षों के दौरान महिलाओं की प्रगति; भेदभाव और नस्लवाद का ख़ात्मा करके बुनियादी स्वतंत्रताओं को बढ़ावा देने; और युवावस्था, वृद्धावस्था और विकलांगजन के सामाजिक विकास से संबंधित सवालों के जवाब तलाश करने जैसे मुद्दे तीसरी समिति में प्रमुख रहे हैं.
इन ज्वलंत मुद्दों पर विचार-विमर्श आयोजित कराना कोई आसान काम नहीं है. महासभा के 73वें सत्र के दौरान तीसरी कमेटी के चेयरपर्सन रहे महमूद साइकल ने ये ज़िम्मेदारी निभाई थी. महमूद साइकल संयुक्त राष्ट्र में अफ़ग़ानिस्तान के स्थाई प्रतिनिधि भी रह चुके हैं.
यूएन न्यूज़ के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने विस्तार से बताया कि प्राथमिकताओं वाले मुद्दों पर नवंबर में शुरू होने वाले विस्तृत विचार विमर्श के लिए रूप-रेखा तैयार करने के वास्ते किस तरह से अक्टूबर में बातचीत शुरू हो जाती है.
प्रस्ताव बहुत अहम होते हैं
महमूद साइकल ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि तीसरी कमेटी के तमाम कामकाज का लगभग 50 फ़ीसदी हिस्सा मानवाधिकारों के इर्द-गिर्द रहता है, “अंततः तीसरी कमेटी से जो सबसे महत्वपूर्ण सामग्री निकलकर सामने आती है वो हैं विभिन्न प्रस्ताव”.
इस बारे में विश्व भर में कम ही लोग जानते हैं, जबकि ये बहुत ऐतिहासिक महत्व वाली बात है कि लगभग 70 वर्ष पहले यानी 1948 में मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा-पत्र तैयार करने में महासभा की तीसरी समिति ने ही निर्णायक भूमिका निभाई थी.
इस घोषणा-पत्र के मसौदे पर विचार करने के लिए कुल मिलाकर 81 बैठकें हुई थीं, तब जाकर इसे एक प्रस्ताव के रूप में पारित किया गया.
ये जानना दिलचस्प होगा कि दुनिया भर में सबसे ज़्यादा इसी घोषणा-पत्र का अनुवाद हुआ है. अगर कोई ये जानने के लिए उत्सुक हो कि 1948 में किस तरह का माहौल रहा होगा तो उस दौर में तीसरी समिति के कुछ मूल दस्तावेज़ों की झलक यहाँ देखी जा सकती है.
कमेटी के सदस्यों द्वारा यूएन मानवाधिकार आयोग और आर्थिक व सामाजिक परिषद के साथ विभिन्न बैठकें करने और मसौदों पर काम करने के बाद जो दस्तावेज़ उभर कर सामने आया, एक मील के पत्थर के रूप में उसकी जानी-पहचानी ऐतिहासिक महत्ता है. इस दस्तावेज़ में तमाम लोगों के अविच्छेद्य यानी अपरिहार्य अधिकारों व सम्मान को दुनिया में स्वतंत्रता, शांति और न्याय की बुनियाद क़रार दिया गया है.
शरणार्थियों के लिए बेहतर हालात बनाना
आज के दौर में, मानवाधिकारों के सिलसिले में तीसरी कमेटी का एक प्रमुख काम शरणार्थियों की स्थिति पर भी ग़ौर करना है. पिछले कई वर्षों के दौरान तीसरी समिति ने उन लोगों के लिए समर्थन जुटाने का काम किया है जिन्हें अपने देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. साथ ही उन देशों और समुदायों के लिए भी सोचना, जो इन शरणार्थियों को अपने यहाँ पनाह देते हैं. इस मुहिम के तहत शरणार्थियों के लिए ग्लोबल कॉम्पैक्ट (Global Compact on Refugees) दस्तावेज़ तैयार किया गया है.
महमूद साइकल ने बताया कि महासभा ने इस ग़ैर-बाध्यकारी समझौते की 17 दिसंबर 2018 को पुष्टि की थी. इस समझौते में शरणार्थी संकट को परंपरागत तरीक़े से हटकर एक नई नज़र से देखने का प्रावधान किया गया है. इसमें ग़ैर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी से अपील की गई है कि संघर्षों के मूल कारणों को समझकर उनसे निपटने के तरीक़े निकालें. हम इस नज़रिए से जुदा हो कर नहीं सोच सकते.
महमूद साइकल को भी 19 वर्ष की आयु में अफ़ग़ानिस्तान में उत्पीड़न से बचने के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा था. उनका कहना है कि उन्होंने भी विश्व भर में लगभग सात करोड़ शरणार्थियों की अवस्था का अनुभव किया था इसलिए उन्हें अपनी आपबीती से तीसरी कमेटी की ज़िम्मेदारियाँ निभाने में बड़ी मदद मिली है.
उनका कहना था, “मैं ख़ुद भी इन तकलीफ़ों से गुज़रा हूँ. इसलिए मेरे लिए हालात बेहतर करने का सबसे बड़ा कारक ख़ुद अपने पैरों पर खड़े होना था.”
“मैंने ख़ुद से कहा था कि मैं अपना दिमाग़ और अपने हुनर इस्तेमाल करूंगा. मैंने तय किया कि मैं लोगों को मुझे एक शरणार्थी भर नहीं समझने दूँगा.”
बाद में उन्होंने अपने राजनयिक सफ़र के दौरान शरणार्थियों के लिए एक चैंपियन बनकर अपना वो संकल्प निभाया, साथ ही शरणार्थियों को सशक्त बनाने के प्रयास करके भी.
उनके नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान को पहली बार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सीट मिली. और तीसरी कमेटी के चैयरमैन की हैसियत, अफ़ग़ानिस्तान के साथ उनके संबंध व संयुक्त राष्ट्र में कामकाज का उनका अनुभव, सारे पहलू भविष्य के लिए उनमें आशा और ऊर्जा जगाए रखते हैं.
आतंकवाद का मुक़ाबला – शीर्ष प्राथमिकता
महमूद साइकल के अनुसार आतंकवाद निरोधक प्रस्तावों को क़ाग़ज़ मात्र से आगे बढ़कर उन्हें असल रूप में लागू होते देखना शीर्ष प्राथमिकता है. इस संदर्भ में जब हम ज़मीन पर गतिविधियों की बात करते हैं – आतंकवादियों की गतिविधियाँ, उनके वित्तीय संसाधन व गतिविधियाँ और आतंकवादियों तक हथियार पहुँचने जैसे मुद्दे ऐसे मामले हैं जिनमें बदलाव के सबूत देखना भी शीर्ष वरीयता का मुद्दा है.
तीसरी कमेटी के सामने ये मुद्दे प्रमुखता से छाए हुए हैः महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा, बाल अधिकारों के संरक्षण का मुद्दा, अपराध की रोकथाम व आपराधिक न्याय व्यवस्था, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मादक पदार्थों की नियंत्रण व्यवस्था को और ज़्यादा मज़बूत करना.
ज़ाहिर सी बात है कि ज़मीनी स्तर से मिलने वाली रिपोर्टों के आधार पर विषय और मुद्दों की प्राथमिकता तय की जाती है. फ़ील्ड्स से मिलने वाली ये रिपोर्टें तीसरी कमेटी के कामकाज का बेहद अहम हिस्सा होती हैं.
महमूद साइकल का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र का वजूद ही अपने आप में इंसानों की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है, हालाँकि अब भी इस विश्व संस्था को उन लोगों के लिए और भी ज़्यादा प्रासंगिक बनाया जाना लगातार एक चुनौती बना हुआ है जिन्हें वाक़ई इस विश्व संगठन की मदद की बहुत ज़रूरत है.