श्रीलंका के तथाकथित 'युद्धापराधी' लैफ़्टिनेंट-जनरल की पदोन्नति पर 'गहरी चिंता'
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मामलों (OHCHR) की प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने श्रीलंका में लैफ़्टिनेंट-जनरल शावेन्द्र सिल्वा को सेना का कमांडर नियुक्त किए जाने को चिंताजनक क़रार दिया है. सोमवार को जारी अपने एक बयान में उन्होंने कहा कि लैफ़्टिनेंट - जनरल शवेन्द्र सिल्वा को अहम भूमिकाएं दी गई हैं जबकि उनके और उनके सैनिकों पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार व मानवीय क़ानून का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप लगे हैं.
एक दशक पहले लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (एलटीटीई) के विरुद्ध लड़ाई के अंतिम चरण में लैफ़्टिनेंट-जनरल शावेन्द्र सिल्वा श्रीलंका में 58वीं डिवीज़न की बागडोर संभाल रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी जांच में पाया है कि डिवीज़न 58 ने अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानूनों और मानवाधिकार क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन किया था.
यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव 30/1 के संदर्भ में लैफ़्टिनेंट-जनरल सिल्वा की पदोन्नति से न्याय और जवाबदेही के प्रति श्रीलंका का संकल्प कमज़ोर होता है.
इस प्रस्ताव में श्रीलंका में मेलमिलाप, जवाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है.
उन्होंने कहा है कि इस पदोन्नति की वजह से मेलमिलाप के प्रयासों को झटका लगा है, विशेषकर पीड़ितों के परिजनों की नज़र में जिन्होंने इस लड़ाई में बहुत कुछ खोया है.
साथ ही सुरक्षा सेक्टर में सुधार प्रक्रिया और यूएन शांतिरक्षा मिशनों में श्रीलंका के योगदान जारी रखने पर असर पड़ेगा.
यह पहली बार नहीं है जब मानवाधिकार उच्चायुक्त ने लैफ़्टिनेंट-जनरल सिल्वा और श्रीलंकाई सेना में उनकी भूमिका पर चिंता व्यक्त की है.
इससे पहले भी उन्होंने मानवाधिकार परिषद को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में शावेन्द्र सिल्वा को ‘आर्मी चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़’ नियुक्त किए जाने पर चिंता जताई थी.
मार्च 2019 में यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने सचेत किया था कि 2009 में एलटीटीई के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान के दौरान अपराधों के जो आरोप लगे थे उनकी सुनवाई के लिए तंत्र विकसित करने में प्रगति बेहद धीमी रही.
इसी वजह से उन्होंने स्वतंत्र रूप से सच एवं मेलमिलाप आयोग (ट्रुथ एवं रिकन्सीलिएशन कमीशन) स्थापित किए जाने और पुनरीक्षण की प्रक्रिया के ज़रिए उन अधिकारियों को हटाने का आग्रह किया था जिनका मानवाधिकार सुरक्षा का रिकॉर्ड संदेह के दायरे में है.
वर्ष 2009 के मई में श्रीलंका सरकार ने एलटीटीई के सफ़ाए की घोषणा की थी.
तीन दशकों से चले आ रहे हिंसक संघर्ष में हज़ारों लोगों की मौत हुई.
लड़ाई के आख़िरी दिनों में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और मानवीय क़ानूनों के कथित उल्लंघन के आरोप लगे जिन पर चिंता जताई गई थी.