दक्षिण सूडान: भुखमरी का युद्ध के औज़ार के रूप में इस्तेमाल

संयुक्त राष्ट्र समर्थित मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि दक्षिण सूडान में बर्बर हिंसक संघर्ष में भुखमरी को जानबूझकर एक युद्ध के एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया गया जिससे खाद्य असुरक्षा व कुपोषण की स्थिति और भी ज़्यादा गम्भीर हुई है. देश में मानवाधिकारों की हालत पर नज़र रखने के लिये गठित मानवाधिकार आयोग ने मंगलवार को अपनी ताज़ा रिपोर्ट जारी की है.
दक्षिण सूडान ने जुलाई 2011 में स्वाधीनता हासिल की थी लेकिन उसके ढाई वर्ष बाद देश हिंसक संघर्ष की लपटों में घिर गया. इसकी वजह राष्ट्रपति सलवा किएर और उपराष्ट्रपति रीक मशार के बीच ना सुलझ पाने वाले तनावों को बताया गया है.
Today, the @UNCHRSS released two conference room papers as part of the 45th session of the @UN_HRC. The first on starvation as a method of warfare, and the second on transitional justice and accountability in South Sudan:➡️ https://t.co/QsyFyOz3NG➡️ https://t.co/dXsn1M6BuN pic.twitter.com/2GpbWGnJx1
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दक्षिण सूडान में मानवाधिकारों पर गठित आयोग ने कहा है कि क्रूर लड़ाई के कारण आम नागरिकों को बेहिसाब पीड़ा का सामना करना पड़ा है जिसके परिणामस्वरूप देश बुरी तरह खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से पीड़ित है.
मानवाधिकार आयोग की प्रमुख यासमीन सूका ने बताया, “दक्षिण सूडान के 75 लाख लोगों को वर्तमान में मानवीय राहत की ज़रूरत है, हमने पाया कि पश्चिमी बाहर एल ग़ज़ल, जोन्गलेई और मध्य इक्वेटोरिया प्रान्तों में खाद्य असुरक्षा सीधे तौर पर हिंसक सन्घर्ष से जुड़ी है और इसलिये लगभग पूरी तरह मानव जनित है.”
“यह बिलकुल स्पष्ट है कि सरकार और विपक्षी ताक़तों ने जानबूझकर आम नागरिकों की भुखमरी को इन प्रान्तों में युद्ध के तरीक़े के रूप में इस्तेमाल किया है, कभी-कभी एक औज़ार के रूप में ताकि उनसे सहमति ना रखने वाले समुदायों को दण्डित किया जा सके, जैसाकि जोन्गलेई में हुआ.”
संयुक्त राष्ट्र आयोग की ओर से जारी यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने मार्च 2016 में इस कमीशन का गठन किया था. इसके सदस्य यूएन कर्मचारी नहीं है और ना ही उन्हें संगठन से वेतन मिलता है.
आयोग के दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि जनवरी 2017 से लेकर दिसम्बर 2018 तक, सरकारी सुरक्षा बलों ने किस तरह जानबूझक पश्चिमी बाहर एल ग़ज़ल में विपक्षियों के नियन्त्रण में रह रहे फ़रतीत और लुओ समुदायों को महत्वपूर्ण संसाधनों से वंचित रखा.
कमीशन के मुताबिक इस प्रकार के कृत्य सामूहिक दण्ड और भुखमरी को युद्ध के औज़ार के रूप में इस्तेमाल किये जाने के समान हैं.
इसके अलावा सरकारी कमाण्डरों ने अपने सैनिकों को इन समुदायों से उन वस्तुओं को लूट लेने की अनुमति दी जो स्थानीय लोगों के जीवित रहने के लिये ज़रूरी थीं.
कमिश्नर एण्ड्रयू क्लैफ़ैम ने बताया, “पिछले कई वर्षों में पश्चिमी बाहर एल ग़ज़ल प्रान्त के अनेक नगरों व गाँवों में निरन्तर हमले किये गए जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों की जान गई, बलात्कार हुए, और सम्पत्तियों की लूटपाट, आगज़नी व बर्बादी हुई.”
उन्होंने कहा कि इसके नतीजे में इलाक़े में खाद्य असुरक्षा फैल गई जिससे शारीरिक असुरक्षा और ज़्यादा गहरा गई और आम लोगों के पास जान बचाकर भागने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा.
कमिश्नर क्लैफ़ैम के मुताबिक पश्चिमी बाहर एल ग़ज़ल में आम लोगों के ख़िलाफ़ व्यवस्थित ढँग से किये गए इन हमलों को मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है.
कमीशन को प्रदत्त अधिकारों में दक्षिण सूडान में तथ्य-निर्धारण और मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन व दुर्व्यवहार के मामलों व सम्बन्धित अपराधों में हालात की जाँच करना शामिल है.
साथ ही आयोग के सदस्यों की ज़िम्मेदारी सबूतों को एकत्र करना, सुरक्षित रखना और दुर्व्यवहारों के लिये ज़िम्मेदारी स्पष्ट करना, दण्डमुक्ति की भावना का अन्त करते हुए जवाबदेही क़ायम करना है.
मानवाधिकार हनन के मामलों से निपटने के लिये कमीशन ने अन्तरिम न्याय व जवाबदेही पर एक रिपोर्ट भी जारी की है जिसे नए सिरे से हुए शान्ति समझौते में लिये गए मुख्य संकल्पों को लागू करने का रोडमैप बताया गया है.
वर्ष 2018 के समझौते में एक अन्तरिम एकता सरकार पर सहमति बनी है थी जिसका गठन हो चुका है.
इस समझौते में अन्तरिम न्याय का उल्लेख है जिसमें सत्य, मेल-मिलाप व ज़ख़्मों पर मरहम लगाने के लिये आयोग सहित अन्य संस्थाओं की स्थापना की जानी है.
कमिश्नर बार्नी अफ़ाको के मुताबिक हिंसक संघर्ष के अन्तर्निहित कारणों को दूर नहीं किया जा सका है जिससे दक्षिण सूडान के संसाधनों के लिये राजनैतिक वर्ग में प्रतिस्पर्धा व भ्रष्टाचार बढ़ रहा है.
इससे जातीय विभाजन व हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है और देश में दण्डमुक्ति की भावना बलवती हो रही है.
उन्होंने आगाह किया कि अगर एक समावेशी व समग्र अन्तरिम न्याय प्रक्रिया सामयिक ढँग से लागू नहीं की गई तो दक्षिण सूडान में टिकाऊ शान्ति के प्रयास भटकाव का शिकार होते रहेंगे.