बढ़ती असमानता से निपटने के लिए निरंतर प्रयासरत यूएन
टिकाऊ विकास का 2030 एजेंडा, संयुक्त राष्ट्र की एक ऐसी महत्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा है जिसके ज़रिए पहले से बेहतर और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके तहत दुनिया में व्याप्त असमानता को भी कम किए जाने की अपील की गई है लेकिन वैश्विक असमानता बढ़ती जा रही है. इसे कैसे रोका जा सकता है?
जनवरी महीने में असमानता का सवाल संयुक्त राष्ट्र ने कईं बार उठाया: दावोस में विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में, यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ध्यान दिलाया कि तकनीकी प्रगति और वैश्वीकरण से बहुत से क्षेत्रों में बेहतरी आई है लेकिन इससे असमानता बढ़ी है और लाख़ों लोग हाशिए पर धकेले गए हैं.
अपने वार्षिक पत्र में, यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट के लिसे किन्गो ने कहा कि कुछ लोगों का एक छोटा समूह अमीर होता चला जा रहा है जबकि अरबों लोग ग़रीबी में जीवन गुज़ार रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की व्यापार और विकास के लिए एजेंसी (UNCTAD) में निदेशक रिचर्ड कोज़ुल राइट ने बताया, "असमानता न सिर्फ़ बढ़ रही है बल्कि यह जड़ जमाकर बैठ गई है,"
संयुक्त राष्ट्र समाचार के साथ एक इंटरव्यू में राइट ने कहा कि कईं अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार की ऊंची दर इस बात को छिपाती है कि पारिश्रमिक और कार्यस्थल पर वातावरण बेहतर नहीं हो रहा है. वेतन में पिछले एक दशक में कोई ख़ास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है लेकिन शेयरधारकों को फ़ायदा हो रहा है.
जनवरी में प्रकाशित विश्व अर्थव्यवस्था पर एक रिपोर्ट में सामने आया कि विकास की गति असमान है और उन लोगों तक उसकी पहुंच नहीं है जिन्हें इसकी ज़रूरत है.
तकनीकी आधुनिकीकरण कैसे बदलेगा रोज़गार
ज़रूरत 2019 के शुरू में कार्यस्थलों पर तकनीक की बढ़ती भूमिका और असमानता पर उसके प्रभाव पर भी ध्यान केंद्रित रहा. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने काम के भविष्य पर अपनी एक रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया गया है कि अभिनव तकनीकों से काम करने के अनगिनत अवसर पैदा हो रहे हैं लेकिन अगर मानव-आधारित एजेंडे के तहत लोगों को बदलते समय के अनुरूप तैयार नहीं किया गया तो हम ऐसी दुनिया में पहुंच सकते हैं जहां असमानताएं और अनिश्चितताएं होंगी.
मीडिया में जिस बात की सबसे अधिक चर्चा हुई वह ऑर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस/एआई (कृत्रिम बौद्धिकता) थी. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की एक नई रिपोर्ट में सामने आया है कि एआई से जुड़े पेटेंट की संख्या में ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है और इससे तकनीकी दुनिया के बाहर रोज़मर्रा के जीवन में भी क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं.
एआई भय और रोमांच दोनों पैदा करती है. यह एक ऐसी दुनिया का दृश्य दिखाती है जिसमें धीरे धीरे सारा काम मशीनों से लिया जा रहा हैऔर जहां दुनिया बेहद अमीर लोगों के एक छोटे से समूह और बाक़ी सब बेरोज़गार लोगों में बंटी है जिन्हें काम मिलने की संभावना नहीं है.
लेकिन कृति शर्मा इसे नहीं मानती. टिकाऊ विकास लक्ष्यों के लिए यूएन ने उन्हें युवा नेता के रूप में पहचना है. कृति एआई के ज़रिए एक बेहतर और न्यायोचित दुनिया के निर्माण की दिशा में प्रयास कर रही हैं.
यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में कृति शर्मा ने माना कि जो लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां उन्हें डिजिटल तकनीक का फ़ायदा नहीं मिल रहा तो उन्हें नुक़सान होगा. कृति ने ऐसी रिपोर्टों का हवाला दिया जिनके अनुसार लैंगिक असमानता के भी बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि स्वचालन (ऑटोमेशन) के चलते नौकरी जाने की संभावना महिलाओं के लिए ज़्यादा होगी.
"हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कौशल को विकसित करने के लिए लोगों के पास पर्याप्त अवसर उपलब्ध हों नहीं तो पहले कहीं ज़्यादा असमानता पैदा हो जाएगी." लेकिन उनके हिसाब से सबसे बड़ा ख़तरा एआई तकनीक का उपयोग न करना होगा क्योंकि वैश्विक चुनौतियों को सुलझाने में ये कारगर साबित हो सकती हैं.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना प्रगति नहीं
जड़ जमा कर बैठी असमानता को उखाड़ने का रास्ता क्या है? समाधान ढूंढने के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बेहद अहम मानता है. विश्व आर्थिक स्थिति एवं संभावना 2019 रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि वैश्विक स्तर पर, सहयोगपूर्ण और दीर्घकालीन रणनीति के तहत नीति तैयार करनी होगी ताकि आय असमानता को कम करने की दिशा में प्रगति हो सके.
बहुपक्षवाद से मुंह मोड़ लेने पर सबसे ज़्यादा नुक़सान उन्हीं लोगों को होगा जो पहले से ही असमानता में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं.
दावोस में यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि एक समन्वित और वैश्विक कार्रवाई ही असमानता से लड़ने का एकमात्र रास्ता है क्योंकि हमें साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है. अलग-थलग रहकर हम इन चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते क्योंकि ये सारे मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं.