समानता और सशक्तिकरण से आसान होगा टिकाऊ विकास का रास्ता

थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र सामाजिक एवं आर्थिक आयोग (UNESCAP) के वार्षिक सत्र की शुरुआत हुई है जहां टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडे को पूरा करने के लिए वंचित और हाशिए पर जी रहे समुदायों के सशक्तिकरण पर ज़ोर दिया गया है. टिकाऊ विकास प्रक्रिया में किसी को भी पीछे न छूटने देने के लिए इसे अहम बताया गया है.
एशिया-प्रशांत के देशों में दुनिया की कुल आबादी का करीब दो तिहाई हिस्सा – 4 अरब से ज़्यादा लोग - रहता है. संयुक्त राष्ट्र सामाजिक एवं आर्थिक आयोग क्षेत्रीय देशों के लिए एक मंच है जहां सरकार अन्य पक्षकार टिकाऊ और समावेशी विकास से जुड़े विषयों पर चर्चा के लिए एकत्र होते हैं. अनौपचारिक रूप से इसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की संसद के रूप में भी देखा जाता है.
आयोग की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचा है और विकलांगों और महिलाओं को भी मदद मिली है, लेकिन ग़रीबी और अमीरी के बीच की खाई गहरी होने पर चिंता भी व्यक्त की गई है.
बैंकॉक में उद्घाटन सत्र के लिए अपने वीडियो संदेश में महासचिव अंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि “हाल के दशकों में, क्षेत्र में अधिकांश लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता बेहतर हुई है, फिर भी बढ़ती असमानता भविष्य में प्रगति के लिए ख़तरा है. पीछे छूट गए लोगों तक सामाजिक-आर्थिक प्रगति को पहुंचाना एक चुनौती है.”
यूएन प्रमुख ने बताया कि हाल के दिनों में वह दक्षिण प्रशांत के देशों की यात्रा से लौटे हैं जहां उन्होंने वैश्विक जलवायु आपदा के क्रूर प्रभावों को देखा है. एशिया-प्रशांत क्षेत्रों में स्थित देशों से उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने की लड़ाई में प्रयासों को दोगुना करने की अपील की है. “यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हम जीत सकते हैं और जिसे हमें जीतना है.”
A call to action❗️At the current pace of progress, #AsiaPacific will not achieve any of the 17 #SDG’s according to our new SDG Progress Report. https://t.co/Xe6E4FxCgK pic.twitter.com/0EzyTG1ePS
UNESCAP
आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की स्थापना 1947 में हुई और इसके 53 सदस्य देश और 9 सहभागी सदस्य हैं – पूर्व में तुवालु से लेकर पश्चिम में तुर्की तक, और उत्तर में रूस से लेकर दक्षिण में न्यूज़ीलैंड तक.
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए आयोग की कार्यकारी सचिव अर्मिदा अलिसझबना ने भविष्य की प्राथमिकतों का खाका तैयार करने और अब तक हासिल की सफलताओं की नींव पर आगे का रास्ता तैयार करने का आग्रह किया.
“1947 में आयोग की पहली मुलाक़ात के बाद से, हमारे देशों ने एक लंबा सफ़र तय किया है.” उन्होंने ध्यान दिलाया कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई देशों को विश्व अर्थव्यवस्था के इंजन के तौर पर देखा जाता है.
“हमारे पास देने के लिए अब भी बहुत कुछ है. इस क्षेत्र में रूपान्तरित और सहनशील समाजों को हासिल करने में हम नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने में आने वाली चुनौतियों से सीमाओं से परे जाकर निपट सकते हैं.”
अपने वक्तव्य में कार्यकारी सचिव अलिसझबना ने नए बदलाव लाने के लिए पांच अहम क्षेत्रों का उल्लेख किया है: सामाजिक संरक्षण को मज़बूत बनाना; अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक तनाव के प्रति सहनशीलता बढ़ाना; पर्यावरण क्षरण का मुक़ाबला करना; आपदाओं के विरूद्ध सुदृढ़ता कायम करना; और बेहतरी के लिए नई तकनीकों से उपजती संभावनाओं के सही उपयोग को बढ़ावा देना.
“मैं सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करने और हमारे क्षेत्र में रूपान्तरित और सहनशील समाजों को हासिल करे के लिए संकल्पबद्ध हूं. तथ्य दर्शाते हैं कि कायापलट करने के लिए हमें नागरिकों को और सशक्त बनाना होगा.”
बैठक के पहले दिन कार्यकारी सचिव अर्मिदा अलिसझबना ने क्षेत्रीय और वैश्विक संगठनों के साथ चार सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं जिनके ज़रिए आपदा सहनशीलता, पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणालियों, नवीकरणीय ऊर्जा, और शोध और तथ्य आधारित नीति निर्माण के लिए आपसी सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा.
आयोग के 75वें सत्र का समापन 31 मई को होना है. सत्र के दौरान लोगों को सशक्त बनाने और समावेशिता और समानता को सुनिश्चित करने के विषय पर उच्चस्तरीय चर्चा होगी. साथ ही यूएन के सदस्य देशों और साझेदार संगठनों की ओर से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा.