कथित न्यायेतर हत्याओं के मामलों पर यूएन विशेषज्ञ चिंतित
संयुक्त राष्ट्र के चार मानवाधिकार विशेषज्ञोें ने भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मार्च 2017 से पुलिस द्वारा 59 लोगों की 'न्यायेतर हत्या' किए जाने के आरोपों पर गहरी चिंता ज़ाहिर की है. 14 जनवरी को इनमें से कईं मामलों पर भारत की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.
यूएन विशेषज्ञों ने भारत सरकार को 15 मामलों में विस्तृत जानकारी भेजी है जिसमें अधिकतर मामले ग़रीब मुस्लिम परिवारों से संबंधित हैं. सरकार की ओर से अभी कोई जवाब नहीं दिया गया है.
कुछ सबूतों से संकेत मिलता है कि ये मौतें पुलिस हिरासत में हुईं. उधर पुलिस के मुताबिक़ ये मौतें मुठभेड़ के दौरान हुईं या फिर पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई के दौरान हुईं.
"जिस तरह ये घटनाएं हुई हैं उससे हम बहुत चिंतित हैं. लोगों को कथित रूप से अगवा या गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर बाद में उनके शवों पर चोट के निशान मिले."
चिंता इस बात पर भी ज़ाहिर की गई है कि जांच प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है. जैसे पुलिस ने मौत के बारे में परिवारजनों को सूचित नहीं किया या घटनास्थल की जांच नहीं हुई, परिवार वालों को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं दी गईं और स्वतंत्र रूप से काम करने वाली जांच एजेंसी को काम नहीं सौंपा गया.
"हमें भ्रष्टाचार के आरोपों की सूचना मिली है जिसमें पुलिस हिरासत में लोगों की रिहाई के बदले पैसे की मांग की गई."
मामले की जांच बेहतर ढंग से कराए जाने की मांग कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पीड़ितों के परिवारजनों के उत्पीड़न की भी ख़बरें आई हैं और ये दावे भी किए गए हैं कि पुलिस उन्हें जान से मारने की धमकी दे रही है. यूएन अधिकारियों ने इन्हें गंभीर आरोप बताते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है.
"पीड़ितों के परिवारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की पूरी सुरक्षा होनी चाहिए और उनके उत्पीड़न और धमकियों की जांच होनी चाहिए." वरिष्ठ पुलिस और राज्य सरकार के अधिकारियों की ओर से इन घटनाओं को सही ठहराए जाने और स्वीकृति दिए जाने पर चिंता व्यक्त की गई है.
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 9 मई 2018 को 18 मौतों के मामलों में जांच शुरू की थी जो अभी चल रही है. सुप्रीम कोर्ट की निग़रानी में जांच कराए जाने संंबधी आवेदन पर सुनवाई होनी है.