भारत: यौनकर्मियों के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत

एचआईवी/एड्स के विरुद्ध लड़ाई का नेतृत्व करने वाली संयुक्त राष्ट्र एजेंसी – यूएनएड्स (UNAIDS) ने भारत में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की सराहना की है, जिसमें यौनकर्मियों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिये निर्देश जारी किये गए हैं. इनमें जीवन जीने का अधिकार और व्यक्ति की गरिमा के प्रति सम्मान समेत अन्य अधिकार हैं.
इस मुक़दमे की सुनवाई वर्ष 2010 की आपराधिक अपील संख्या 135 के अन्तर्गत भारत के पश्चिम बंगाल राज्य की सरकार बनाम बुद्धदेव करमास्कर के मामले में हुई.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी करते हुए पुलिस और अन्य प्रशासनिक एजेंसियों को उपयुक्त प्रशिक्षण मुहैया कराने का आदेश दिया है, ताकि उनमें यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता विकसित हो और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके.
UNAIDS welcomes #India’s Supreme Court order that the constitutional right of sex workers to life, liberty and dignity must be respected. Read press statement - https://t.co/d7FGPOxy57 pic.twitter.com/U2SiBpWle3
UNAIDS
उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में यौन हिंसा का सामना करने वाले यौनकर्मियों के लिये संरक्षण व समर्थन सेवाओं की पूर्ण सुलभता प्रदान करने, और पीड़ितों की सहायता के लिये स्थापित प्रक्रियाओं को कमज़ोर बनाने वाले तौर-तरीक़ों का अन्त करने पर बल दिया है.
भारत के लिये यूएनएड्स के देशीय निदेशक डेविड ब्रिजर ने कहा, “इस ऐतिहासिक आदेश से ज़िन्दगियाँ बचाई जाएंगी और भारत को, एड्स का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य ख़तरे के रूप में वर्ष 2030 तक अन्त करने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी.”
उन्होंने कहा कि तथ्य स्पष्टता से दर्शाते हैं कि हाशिये पर रहने वाले लोगों की देखभाल और मानवाधिकारों की रक्षा के ज़रिये एचआईवी सेवाओं की सुलभता में विस्तार सम्भव है.
साथ ही, एचआईवी से निपटने के उपायों के तहत, उपचार पाने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने और नए संक्रमणों में कमी लाने में त्वरित प्रगति भी सम्भव है.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक एजेंसियों को उन यौनकर्मियों के लिये आधार कार्ड जारी करने का आदेश दिया गया है, जिनके पास निवास स्थान होने का सबूत नहीं है.
निर्धनता से पीड़ित लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उपायों की सुलभता के लिये ये कार्ड ज़रूरी है.
उच्चतम न्यायालय ने मीडिया के लिये दिशानिर्देश भी विकसित किये जाने का आग्रह किया है, ताकि यौनकर्मियों की निजता और गोपनीयता की रक्षा की जा सके, और यौनकर्मियों को उनके क़ानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने में मदद मिले.
हाशिये पर रहने वाले अन्य समुदायों के साथ-साथ, यौनकर्मियों के लिये स्वास्थ्य समेत अति-आवश्यक सेवाओं को पाना कठिन होता है, जिसकी वजह आपराधिकरण, कथित रूप से कलंकित किये जाने का भय और भेदभावपूर्ण बर्ताव बताया गया है.
यूएनएड्स ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय का आदेश एक बानगी प्रस्तुत करता है कि किस तरह व्यक्ति-केन्द्रित तौर-तरीक़ों और तथ्यों के आधार पर लिये गए निर्णयों के ज़रिये, एचआईवी उपचार, रोकथाम व देखभाल सेवाओं की सुलभता बढ़ाई जा सकती है.
यूएन एजेंसी ने कहा कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने पिछले एक दशक में हाशिये पर धकेले जाने का शिकार समुदायों की रक्षा करने और उनके अधिकारों को बरक़रार रखने में एक अहम भूमिका निभाई है.
इस क्रम में, किन्नर समुदाय व अन्य ट्रांसजैण्डर व्यक्तियों को ‘थर्ड जैण्डर’ के रूप में मान्यता देने का अधिकार, एचआईवी-सम्बन्धी भेदभाव को ग़ैरक़ानूनी क़रार देना और दण्ड संहिता में उस प्रावधान का अन्त करना है, जिससे आपसी सहमति से समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध के रूप में देखा जाता था.