वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां
यूएन महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस, 78वें सत्र की उच्च स्तरीय जनरल डिबेट की समापन बैठक को सम्बोधित करते हुए (26 सितम्बर 2023).

साक्षात्कार: महासभा के प्रस्ताव में झलकती है - 'मानवता की अन्तरात्मा', डेनिस फ़्रांसिस

UN Photo/Cia Pak
यूएन महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस, 78वें सत्र की उच्च स्तरीय जनरल डिबेट की समापन बैठक को सम्बोधित करते हुए (26 सितम्बर 2023).

साक्षात्कार: महासभा के प्रस्ताव में झलकती है - 'मानवता की अन्तरात्मा', डेनिस फ़्रांसिस

यूएन मामले

ग़ाज़ा में मानवीय युद्धविराम का आहवान करने वाला, हाल ही का महासभा प्रस्ताव, इस बात का उदाहरण है कि सभी 193 देशों की सदस्यता वाला संयुक्त राष्ट्र का यह अहम निकाय, किस तरह वैश्विक विवेक का दर्पण है.

यूएन महासभा के अध्यक्ष, डेनिस फ़्रांसिस ने पिछले महीने पारित हुए प्रस्ताव पर बात करते हुए कहा, "हमें कभी भी प्रस्तावों पर सर्वसम्मति प्राप्त नहीं होती, लेकिन जब आप सदन में दो-तिहाई से अधिक वोट हासिल करते हैं, तो यह एक शक्तिशाली प्रतीक, एक शक्तिशाली सन्देश होता है, सभी की सहमति का." 

समान मताधिकार

संयुक्त राष्ट्र की मुख्य नीति-निर्माण संस्था, महासभा वो जगह है, जहाँ शान्ति एवं सुरक्षा से सम्बन्धित मामलों सहित, उसके समक्ष रखे गए मुद्दों पर, सभी सदस्य देशों को समान मताधिकार प्राप्त है.

उन्होंने बताया कि हालाँकि इसके प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, "वे अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के अधिकांश सदस्यों की ओर से एक राजनैतिक घोषणा जारी करते हैं." 

डेनिस फ़्रांसिस ने सितम्बर 2023 में महासभा अध्यक्ष का पद ग्रहण किया और वो इस पद पर एक वर्ष तक रहेंगे. तब से, वह उन विषयों पर बैठकों का नेतृत्व करते रहे हैं जिनमें सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को बचाना, अगली वैश्विक महामारी का मुक़ाबला करने की तैयारी करना, सर्वजन के लिए स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करना और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार करना शामिल हैं. 

त्रिनिदाद और टोबैगो के इस अनुभवी राजनयिक ने हाल ही में यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत के दौरान, अपनी प्राथमिकताओं, महासभा की महत्वपूर्ण भूमिका और आलोचकों को संयुक्त राष्ट्र के साथ जोड़ने की वजहों पर अपने विचार व्यक्त किए. 

यह साक्षात्कार सटीकता एवं स्पष्टता के लिए सम्पादित किया गया है.

यूएन न्यूज़: आपने, संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने पहले भाषण में, विश्व नेताओं को चार क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करने पर ज़ोर दिया था: शान्ति, समृद्धि, प्रगति और स्थिरता. ये सभी कुछ हद तक ख़तरे में हैं, और कभी-कभी अतिव्यापी कारणों से भी. आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि देश, इनसे निपटने के लिए एकजुट हों? 

डेनिस फ़्रांसिस: वे मुख्यत: सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और एजेंडा 2030 के लिए एकजुट हैं, क्योंकि यह एक व्यापक एकीकृत विकास एजेंडा है जो संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों को मिलकर कार्रवाई करने के लिए एक साथ लाता है. इनमें ग़रीबी, अभाव, भुखमरी, कुपोषण और विश्व के संचालन के लिए अधिक टिकाऊ तरीक़े की ओर बदलाव के लिए, परिस्थितियाँ सृजित करना शामिल है. तो, यह जितना लोगों के बारे में है, उतना ही ग्रह के बारे में भी है.

लेकिन हम अन्य मायनों में भी एकजुट हैं क्योंकि जब शान्ति और सुरक्षा बाधित होती है, तो इससे सभी पर असर पड़ता है, जैसाकि ख़ासतौर पर पिछले दो या तीन वर्षों में हुआ भी है.

शान्ति को प्रोत्साहन देना और सुरक्षा क़ायम रखना हमारे हित में है क्योंकि शान्ति एवं व्यवस्था में सामंजस्य की कमी से, व्यवस्था कमज़ोर होती है और हमारे अन्य सभी महान लक्ष्य एवं उद्देश्य हासिल करना कठिन हो जाता है.

यूएन न्यूज़: आपने शान्ति और सुरक्षा में व्यवधान का उल्लेख किया, तो हम जानना चाहेंगे कि मध्य पूर्व में वर्तमान में जो कुछ हो रहा है, क्या महासभा इस स्थिति पर कोई प्रभाव डालने में सक्षम है?

डेनिस फ़्रांसिस: हाँ, प्रभाव डालना सम्भव है क्योंकि ढाई सप्ताह पहले महासभा ने ग़ाज़ा की स्थिति पर, प्रथम प्रस्ताव को सफलतापूर्वक पारित किया, जिसमें मानवीय सहायता के प्रावधान के लिए, युद्धविराम लागू करने व सभी बन्धकों की बिना शर्त रिहाई का आहवान किया गया था.  

अब, यह भी समझना होगा कि उस समय, सुरक्षा परिषद ने बैठक करके, चार अलग-अलग अवसरों पर एक प्रस्ताव पर सहमति बनाने की कोशिश की थी, लेकिन उसमें असफलता हाथ लगी थी. इसलिए, महासभा वास्तव में एक ऐसा प्रस्ताव ला सकी, जिसके लिए व्यापक सहमति थी: वो भी 121 देशों के समर्थन के साथ, यह बड़ी उपलब्धि है.

मेरे विचार से यह संयुक्त राष्ट्र का एक बड़ा योगदान है क्योंकि हम, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के, मानवता को युद्ध के संकट से बचाने लक्ष्य के अनुरूप, युद्ध को रोकने के एक उपाय के रूप में इस प्रस्ताव को लाने में सक्षम रहे. हमने उस प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से कहा है कि महासभा, मानव जीवन बचाने के लिए युद्धविराम को आवश्यक व ज़रूरी मानती है. 

ग़ाज़ा में युद्ध के कारण 11 हज़ार लोगों की मौत हद से ज़्यादा है. यह अकथनीय है व अस्वीकार्य है. और इसलिए, हमने यह आहवान किया है, लेकिन साथ ही हमास द्वारा बन्धकों को उनके परिवारों को बिना शर्त लौटाने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया है.

यूएन महासभा के 78वें सत्र के अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस (मध्य), किसी विषय पर महासभा को सम्बोधित करते हुए.
UN Photo/Paulo Filgueiras

यूएन न्यूज़: जैसा कि आपने हमें याद दिलाया है, महासभा सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों को एक मंच पर लाती है. हालाँकि आपके प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन इनका अत्यधिक नैतिक महत्व होता है.

डेनिस फ़्रांसिस: बिल्कुल. इसमें अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के अधिकांश सदस्यों की ओर से एक राजनैतिक घोषणा जारी किया जाता है. और यह एक मायने में, एक प्रकार का नरम क़ानून बनाता है, क्योंकि महासभा के प्रस्ताव किसी हद तक, मानवता की अन्तरात्मा व प्रमुख दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें कभी भी प्रस्तावों पर सर्वसम्मति नहीं मिलती है. लेकिन जब सदन में दो-तिहाई से अधिक वोटों से प्रस्ताव पास हुआ हो, तो यह सर्वसम्मति का एक शक्तिशाली प्रतीक, एक शक्तिशाली सन्देश है. और हम यह करने में सक्षम रहे हैं. 

सभी सम्बन्धित पक्षों से हमारा आहवान है कि वे उस प्रस्ताव का सम्मान करें और उस प्रस्ताव के साथ-साथ, सुरक्षा परिषद में बुधवार को अपनाए प्रस्ताव को भी लागू करें.

यूएन न्यूज़: आपने कहा है कि यह संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश सदस्य देशों की अन्तरात्मा का प्रतीक है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? हालाँकि कुछ लोगों कह सकते हैं कि "यह विचार ही अपने-आप में महत्वपूर्ण है." 

डेनिस फ़्रांसिस: लेकिन यह विचार वाक़ई मायने रखता है! यदि आप इसके ज़रिए, स्पष्ट होती स्थिति एवं विचारों पर ध्यान दें, तो पाएंगे कि असल बहस सिद्धान्तों व मूल्यों को लेकर है, इसलिए यह विचार मायने रखता है. राजनीति केवल अलग-अलग दृष्टिकोणों तक सीमित होती है, लेकिन विचार मायने रखते हैं और शक्तिशाली होते हैं. इसीलिए महासभा में पारित प्रस्ताव बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें शक्तिशाली राजनैतिक सन्देश होते हैं. यही कारण है कि देश इन प्रस्तावों पर इतनी ऊर्जा व समर्पण के साथ विचार-विमर्श करते हैं, क्योंकि वो इसके सार्वजनिक प्रभाव की क्षमता पहचानते हैं.

जिन देशों के बारे में मैं जानता हूँ, उनमें से अधिकांश, ख़ुद को राजनैतिक रूप से अलग-थलग करना पसन्द नहीं करेंगे. देश इनसानों की तरह होते हैं. इनसानों को सराहना, प्यार पाना पसन्द होता है. वो अपने दोस्तों का सम्मान व समर्थन पाना चाहते हैं, संवाद के इच्छुक होते हैं, बातचीत करना चाहते हैं. हमारी फ़ितरत ऐसी ही है.

देश भी इससे अलग नहीं हैं क्योंकि जब आप रिश्तों के पुल बनाते हैं, तो इससे वो दायरा बढ़ता है, जिसके तहत आप एक देश के रूप में, सम्प्रभुता से कार्य कर सकते हैं. जब आपके पास वे सहायक रिश्ते नहीं होते हैं, तो आपको विकल्पों की कमी हो जाती है. और यही महासभा के प्रस्ताव का मतलब है. इससे वो सन्देश प्रसारित होता है, जो बड़ा राजनैतिक बदलाव ला सकता है. और चूँकि इन मामलों में जनता की राय हमेशा अहम होती है, इसलिए हमें उसपर ज़रूर ध्यान देना चाहिए.

यूएन न्यूज़: आप तथाकथित अल्प विकसित देशों की स्थिति को लेकर भी चिन्ता जताते रहे हैं. मौजूदा वित्तीय ढाँचे की वजह से बहुत से लोग क़र्ज़ में डूबे हैं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव भी कई बार कह चुके हैं कि यह ढाँचा अब पुराना हो चुका है. क्या आप हमें बता सकते हैं कि महासभा इसे लेकर क्या क़दम उठा सकती है? 

डेनिस फ़्रांसिस: वैश्विक वित्तीय ढाँचा पुराना हो चुका है. इसकी स्थापना 1940 के दशक के अन्त में उस समय की गई थी, जब अधिकांश मौजूदा देशों का अस्तित्व भी नहीं था. तथाकथित वैश्विक दक्षिण और 77 के समूह और चीन उस समय अस्तित्व में नहीं थे, जबकि इनमें लगभग 140 देश शामिल हैं. तो, आपके पास एक ऐसा वैश्विक वित्तीय ढाँचा है जिसे किसी दूसरे ही समय के लक्ष्यों व उद्देश्यों के लिए निर्मित किया गया था, जिसमें न तो विकास सम्बन्धी ज़रूरतों एवं प्राथमिकताओं का ध्यान रखा गया था, और न ही विकासशील देशों की विशिष्टताओं का.

उदाहरण के लिए, भूमि से घिरे देशों की बात करें, जो बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. किसी ज़मीन से घिरे देश में हर चीज़ की क़ीमत, औसत तटीय देशों की तुलना में दोगुनी होती है क्योंकि वे समुद्र से दूर होते हैं. उस देश में रहने वाले उपभोक्ताओं को तटीय देशों के औसत उपभोक्ता की तुलना में, दोगुना क़ीमत चुकानी पड़ती है. यह कठिनाई का सबब बनता है. छोटे द्वीप विकासशील देशों (SIDS) में भी यही हाल है, क्योंकि इनमें से कई अलग-थलग होने के कारण वैश्विक बाज़ारों से दूर हो जाते हैं.

मैंने इस समूह को कमज़ोर परिस्थितियों वाले देशों के रूप में प्राथमिकता दी है, क्योंकि वे विकास की दृष्टि से दवाब में हैं.

इस व्यवस्था को, उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, स्थाई तरीक़े से विकास की सीढ़ी पर आगे बढ़ने में मदद करने और समर्थन करने के लिए नहीं बनाया गया है.

यूएन महासभा के 78वें सत्र के लिए अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस ने जनरल डिबेट की औपचारिक शुरुआत की.
UN Photo/Laura Jarriel

यूएन न्यूज़: सितम्बर में महासभा के उच्च-स्तरीय सप्ताह की बात करें तो अध्यक्ष के रूप में यह आपका पहला कार्यकाल था. लेकिन आप संयुक्त राष्ट्र के लिए अजनबी नहीं हैं. क्या इसमें कुछ ख़ास या कुछ अलग रहा?

डेनिस फ़्रांसिस: यह बहुत अलग था क्योंकि उच्च-स्तरीय सप्ताह में कई विभिन्न महत्वपूर्ण घटक शामिल थे, जिनमें से एक एसडीजी शिखर सम्मेलन था, जो काफ़ी सफल रहा था, और इसके लिए मैं महासचिव को बधाई देता हूँ. इसके अलावा उस सप्ताह हमने स्वास्थ्य मुद्दों पर तीन महत्वपूर्ण घोषणाएँ भी अपनाईं. जैसा कि आप जानते हैं, महामारी ने यह उजागर किया है कि वर्तमान में हम किस तरह संगठित हैं और हमारे लिए इस पर विचार करना महत्वपूर्ण था कि भविष्य में महामारियों के ख़िलाफ़ वैश्विक तैयारियों को लेकर क्या सबक़ सीखे गए हैं. संयोग से, जलवायु वैज्ञानिक हमें चेतावनी देते रहे हैं कि जलवायु तापमान वृद्धि के कारण ऐसी महामारियों के बार-बार आने की सम्भावना बढ़ जाती है और वो अधिक संक्रामक हो सकती हैं.

इसलिए, व्यावहारिकता इसी में है कि हम भविष्य की महामारियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए ख़ुद को संगठनात्मक रूप से तैयार करें. राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने महामारी की तैयारी, रोकथाम एवं प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में एक घोषणा पर सहमति व्यक्त है. उन्होंने सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल पर एक दस्तावेज़ और दोबारा सर उठाने वाली तपेदिक की बीमारी पर एक घोषणा-पत्र भी जारी किया था. 

यूएन न्यूज़: कुछ लोग यह आलोचना भी कर रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र पुराना व निष्प्रभावी हो चुका है, और महासभा की भी आलोचना की जा रही हैं. आप ऐसी आलोचना पर, क्या कहना चाहेगें?

डेनिस फ़्रांसिस: सबसे पहले तो, लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार है. हालाँकि, मैं उन्हें हमारे साथ थोड़ा अधिक जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करूगा क्योंकि लोग एक मिनट की ख़बर में जो देखते हैं वह संयुक्त राष्ट्र के सम्पूर्ण कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता. साथ ही, मैं यह भी कहूँगा कि संयुक्त राष्ट्र स्वयं इस तथ्य से अनजान नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र के हाल के प्रदर्शन से, बाहर निराशा व्याप्त है. 

लेकिन मुझे यह कहने दीजिए: संयुक्त राष्ट्र अपने आप अस्तित्व में नहीं है. इसमें 193 सम्प्रभु सरकारें शामिल हैं. सम्प्रभु' शब्द बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब है कि सरकारें अपने राष्ट्रीय हितों एवं प्राथमिकताओं के आधार पर निर्णय ले सकती हैं और लेती भी हैं.

वास्तव में संयुक्त राष्ट्र का काम एक ऐसा मंच प्रदान करना है, जिसपर विभिन्न वैश्विक समस्याओं के लिए आम दृष्टिकोण पर सहमति बनाने की कोशिश की जा सके. तो, मैं यह जानना चाहूँगा: यदि संयुक्त राष्ट्र अप्रासंगिक है, तो आप इसके स्थान पर क्या लाना चाहेंगे? और इसलिए, मैं लोगों से कहता हूँ, शुक्र है कि संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में है क्योंकि यह उन 193 देशों के बीच समन्वय, परामर्श व सहयोग हेतु एक बहुत ज़रूरी मंच पेश करता है, जिसके पास अन्यथा मिलने, समन्वय करने, वैश्विक समस्याएँ हल करने का कोई साधन या अवसर नहीं होता.  

यह एक शक्तिशाली और सम्भावित रूप से अभूतपूर्व, उपलब्धि है जो संयुक्त राष्ट्र ने इतने वर्षों में हासिल की है. इसके अलावा, तीसरे विश्व युद्ध को भी रोकने में कामयाब रहा है.