ग़ाज़ा पट्टी: 'आम नागरिकों, मानवीय सहायताकर्मियों के लिए कोई सुरक्षा नहीं'
संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता अधिकारियों ने सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि ग़ाज़ा में जारी संहार पर विराम लगाने के लिए क़दम उठाए जाने होंगे. ग़ाज़ा पट्टी में निरन्तर इसराइली बमबारी, राहतकर्मियों व फ़लस्तीनी आबादी पर हमलों, और मानव-जनित अकाल की दस्तक के बीच युद्ध को छह महीने पूरे हो रहे हैं, जबकि दोषियों की जवाबदेही तय नहीं हुई है.
यूएन मानवतावादी कार्यालय (UNOCHA) में समन्वय निदेशक रमेश राजासिंहम और ग़ैर-सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ की मुख्य कार्यकारी अधिकारी यान्ति सिरोप्तो ने शुक्रवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को ग़ाज़ा में जमीनी हालात से अवगत कराया.
7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास के नेतृत्व में आतंकी हमलों में कम से कम 1,200 लोगों की मौत हो गई थी और 240 से अधिक को बंधक बना लिया गया था.
यूएन मानवीय सहायता एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारी राजासिंहम ने कहा कि इसके बाद शुरू हुई इसराइली सैन्य कार्रवाई में अब तक 32 हज़ार फ़लस्तीनियों की जान गई है, 75 हज़ार घायल हुए हैं और 17 लाख लोग, यानि ग़ाज़ा पट्टी को दो-तिहाई आबादी, दक्षिण में स्थित शहर रफ़ाह में जबरन विस्थापन के लिए मजबूर हुई है.
भीषण इसराइली बमबारी और लड़ाई जारी है, और इसराइल की मंशा रफ़ाह में सैन्य कार्रवाई के ज़रिये हमास लड़ाकों से निपटने की है.
रमेश राजासिंहम के अनुसार, इसराइल की घेराबन्दी के बाद अल-शिफ़ा अस्पताल पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है और सहायताकर्मियों की सुरक्षा का अभाव है.
इस क्रम में, उन्होंने सोमवार को इसराइली हमले का उल्लेख किया जिसमें ‘वर्ल्ड सैंट्रल किचन’ के सात कर्मचारियों की मौत हो गई थी.
अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन
उन्होंने क्षोभ व्यक्त किया कि ऐसे आचरण से, युद्धरत पक्षों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुपालन की मंशा पर सवाल खड़ा होता है. अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के हनन के सभी मामलों की जाँच कराए जाने और संदिग्धों पर मुक़दमा चलाए जाने पर बल दिया गया है.
समन्वय निदेशक ने बताया कि राहत अभियानों के लिए सुरक्षा आश्वासन के अभाव में ‘वर्ल्ड सैंट्रल किचन’ और एक अन्य संगठन को अपना अभियान स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है.
ये दोनों संगठन ग़ाज़ा पट्टी में हर सप्ताह लाखों लोगों को भोजन मुहैया कराने में जुटे थे, मगर अब यह स्पष्ट नहीं है कि वे फिर अपना कामकाज कब शुरू करेंगे.
यूएन अधिकारी ने सचेत किया कि यह भी स्पष्ट है कि ग़ाज़ा में आम लोगों को संरक्षण हासिल नहीं है, और इसलिए उन्हें कहीं और सुरक्षित स्थान पर शरण लेने की अनुमति दी जानी होगी.
साथ ही, ग़ाज़ा से विस्थापित होने वाले किसी भी व्यक्ति को स्वैच्छिक वापसी का अधिकार दिया जाना होगा, जैसाकि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून में उल्लिखित है.
UNRWA पर सख़्ती
उत्तरी ग़ाज़ा में हर छह में एक बच्चा गम्भीर कुपोषण का शिकार है और अब तक 30 से अधिक बच्चों की भूख से मौत हो चुकी है, जिसके कारण वहाँ जल्द से जल्द सहायता पहुँचाई जानी ज़रूरी है.
रमेश राजासिंहम ने कहा कि मुख्य समस्या राहत सामग्री को वितरित करना है. फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) स्थानीय स्तर पर मानवीय सहायता अभियान की रीढ़ है, मगर उत्तरी ग़ाज़ा में उसे कामकाज की अनुमति नहीं दी गई है.
OCHA समन्वय निदेशक ने आगाह किया कि ग़ाज़ा में अकाल और विनाशकारी मानवीय स्थिति को टालने के लिए यह ज़रूरी है कि सभी ज़रूरतमन्द आम नागरिकों तक सुरक्षित, त्वरित ढंग से मानवीय सहायता पहुँचाई जाए.
और UNRWA द्वारा प्रदान की जाने वाली इन सेवाओं का कोई अन्य विकल्प नहीं है.
युवा ज़िन्दगियों पर जोखिम
‘सेव द चिल्ड्रन’ की मुख्य कार्यकारी अधिकारी यान्ति सिरोप्तो ने अपने सम्बोधन में ग़ाज़ा में अपनी जान गँवाने वाले 200 से अधिक मानवीय सहायताकर्मियों को श्रृद्धांजलि दी, जिनमें से लगभग सभी फ़लस्तीनी हैं.
उन्होंने कहा कि मृतकों में उनके सहकर्मी सामेह ऐवाइदा भी हैं, जो 12 दिसम्बर को इसराइली हवाई कार्रवाई में अपनी पत्नी व चार बच्चों के साथ मारे गए थे.
यान्ति सिरोप्तो ने सुरक्षा परिषद को बताया कि पिछले चार वर्षों में, विश्व भर में सशस्त्र टकरावों में जितने बच्चों की मौत हुई है, ग़ाज़ा में अब तक उससे कहीं अधिक संख्या में बच्चों की जान गई है.
इस हिंसक टकराव में 14 हज़ार बच्चे मारे जा चुके हैं, हज़ारों अन्य लापता हैं, जिनके मलबे में दबे होने की आशंका है.
‘सेव द चिल्ड्रन’ की प्रमुख ने कहा कि यदि 7 अक्टूबर के बाद अपनी जान गँवाने वाले इसराइली व फ़लस्तीनी बच्चों के यदि नाम व आयु को पढ़ा जाए तो उसे पूरा करने में 18 घंटे का समय लगेगा.