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अफ़ग़ानिस्तान में महिला अधिकारों के लिए, निरन्तर बिगड़ती स्थिति

यूएन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएँ अपनी गिरफ़्तारी के डर का सामना कर रही हैं.
UNAMA
यूएन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएँ अपनी गिरफ़्तारी के डर का सामना कर रही हैं.

अफ़ग़ानिस्तान में महिला अधिकारों के लिए, निरन्तर बिगड़ती स्थिति

महिलाएँ

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान की किसी नए आदेश की घोषणा के साथ ही, महिलाओं के लिए गिरफ़्तारी, उत्पीड़न और दंड का जोखिम भी बढ़ जाता है.

महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था (UN Women), अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) और अफ़ग़ानिस्तान में यूएन सहायता मिशन (UNAMA) द्वारा, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर कराए गए एक सर्वेक्षण मे यह बात सामने आई है.

सर्वेक्षण के नतीजे दर्शाते हैं कि स्थानीय पुलिस की सख़्ती के बाद, सार्वजनिक स्थलों पर उत्पीड़न की घटनाएँ बढ़ी हैं, और महिलाओं के लिए अपना घर छोड़कर बाहर निकल पाना कठिन हुआ है. 

इस सर्वेक्षण में 745 अफ़ग़ान महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए हैं.

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हाल के दिनों में हिजाब की अनिवार्यता सम्बन्धी एक आधिकारिक आदेश को, काबुल समेत अन्य शहरों में सख़्ती से लागू किया गया था.

इसके बाद से अब तक, तालेबान प्रशासन ने क़रीब 50 अन्य आदेश जारी किए हैं, जिनमें सीधे तौर पर महिलाओं के अधिकारों और गरिमा पर असर होता है.

यूएन एजेंसियों ने बताया कि इस सर्वेक्षण के लिए, अफ़ग़ान महिलाओं के साथ 27 जनवरी से 8 फ़रवरी तक, ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से बातचीत की गई. इसके अलावा समूह सत्र व टेलीसर्वेक्षण भी हुआ. 

यूएन एजेंसियों ने इस सर्वेक्षण के लिए अफ़ग़ानिस्तान के 34 प्रान्तों में महिलाओं से सम्पर्क साधा, जिनसे अक्टूबर से दिसम्बर 2023 की अवधि के दौरान की स्थिति और अपने विचार साझा करने के लिए कहा गया.

महिलाओं के लिए बढ़ता जोखिम

सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार, महिलाओं को अपनी गिरफ़्तारी, और पुलिस हिरासत में रहने के बाद लम्बे समय तक लगने वाले कथित कलंक व बदनामी का डर है. 

इसके अलावा, क़रीब 57 फ़ीसदी महिलाओं को बिना किसी पुरुष संगी के, अपना घर छोड़कर बाहर जाने में भय महसूस होता है. 

महिलाओं पर लक्षित किसी भी नए आधिकारिक आदेश के सामने आने के बाद उनकी सुरक्षा व बेचैनी का स्तर बढ़ जाते हैं.

केवल एक प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि सामुदायिक स्तर पर निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया में उनकी अच्छी या पूरी पकड़ है, जबकि पिछले साल जनवरी में यह आँकड़ा 17 प्रतिशत था.

स्व-निर्णय की कमी

रिपोर्ट के अनुसार, अफ़ग़ान महिलाओं के लिए किसी स्थान पर एकत्र होने और अपने अनुभवों या विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए कोई सार्वजनिक स्थल उपलब्ध नहीं है.

वे ना तो महत्वपूर्ण विषयों पर सामुदायिक स्तर पर बातचीत कर सकती हैं और ना ही निर्णय निर्धारण प्रक्रिया को किसी तरह से प्रभावित किया जा सकता है. 

जनवरी 2023 में क़रीब 90 फ़ीसदी महिलाओं की अपने घर-परिवार में निर्णयों में अच्छी भागेदारी थी, मगर अब यह घटकर 32 प्रतिशत तक पहुँच गई है. 

महिलाओं का मानना है कि अधिकारों, शिक्षा सम्भावनाओं और रोज़गार अवसरों के अभाव में उनका घर-परिवार में प्रभाव भी कम हो रहा है

अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के लिए बिना किसी पुरुष संगी के अपना घर छोड़कर बाहर निकल पाना कठिन हुआ है
© WFP/Mohammad Hasib Hazinyar
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के लिए बिना किसी पुरुष संगी के अपना घर छोड़कर बाहर निकल पाना कठिन हुआ है

लैंगिक भूमिका

महिलाओं ने चिन्ता जताई कि तालेबान प्रशासन की पाबन्दियों व सख़्तियों से, सामाजिक रवैयों और बच्चों में भी बदलाव आ रहे हैं. 

उदाहरणस्वरूप, कुछ महिलाओं के अनुसार लड़के अब महिलाओं व बहनों को सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर कमतर आँक रहे हैं, और इस धारणा को बल मिल रहा है कि महिलाओं को अपने घर में पराधीनता में रहना होगा. 

32 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि तालेबान प्रशासन को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता, महिलाओं पर सभी पाबन्दियों को वापिस लिए जाने की स्थिति में ही दी जानी चाहिए.

सर्वोत्तम उपाय

सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाली कुछ महिलाओं ने निराशा जताई कि यूएन के कुछ सदस्य देश, तालेबान के साथ सम्पर्क व बातचीत में जुटे हैं, और इन प्रयासों में महिला अधिकारों के अभूतपूर्व संकट को नज़रअन्दाज़ कर रहे हैं. 

मौजूदा हालात में अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों और अफ़ग़ान सरकारों द्वारा अनुमोदित अन्तरराष्ट्रीय सन्धियों का उल्लंघन हो रहा है.

महिलाओं का मानना है कि उनकी स्थिति में बेहतरी लाने का एक रास्ता, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मानवीय राहत को महिलाओं की स्थिति से जोड़ना है.

साथ ही, महिलाओं को सीधे तालेबान प्रशासन से बातचीत करने के अवसर भी मुहैया कराए जाने होंगे.