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तालेबान के साथ संवाद व 'संयम' ही एकमात्र रास्ता: अफ़ग़ान मिशन प्रमुख

अफ़ग़ानिस्तान के लिए यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और यूएन मिशन की प्रमुख, रोज़ा ओटुनबायेवा.
UN News
अफ़ग़ानिस्तान के लिए यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और यूएन मिशन की प्रमुख, रोज़ा ओटुनबायेवा.

तालेबान के साथ संवाद व 'संयम' ही एकमात्र रास्ता: अफ़ग़ान मिशन प्रमुख

शान्ति और सुरक्षा

अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष राजनैतिक अधिकारी ने आशा व्यक्त की है कि तालेबान नेता, महिला अधिकारों पर अपने रुख़ में बदलाव लाएंगे. इस क्रम में उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से देश के लिए अपने प्रयास जारी रखने का आग्रह किया है.

किर्गिज़स्तान की पूर्व राष्ट्रपति व विदेश मंत्री, रोज़ा ओटुनबायेवा, अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि और यूएन सहायता मिशन (UNAMA) की प्रमुख के तौर पर सेवारत हैं.

उन्हें एक देश में रहना और काम करना है जहाँ सत्तारूढ़ प्रशासन ने महिलाओं पर हर प्रकार से पाबन्दियाँ थोप दी हैं. उनके काम करने, पढ़ने और सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रतिबन्ध है.

मगर, तालेबान ने नियमित रूप से विशेष प्रतिनिधि के साथ मुलाक़ात की हैं और उन्हें सम्मान दिया है. 

‘एक सामान्य कामकाजी नाता’

रोज़ा ओटुनबायेवा ने हाल ही में न्यूयॉर्क में यूएन मुख्यालय की यात्रा के दौरान यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत में बताया, “मुझे कोई भेदभाव महसूस नहीं होता. मेरी सोच में हमारा एक सामान्य कामकाजी रिश्ता है.”

विशेष प्रतिनिधि ने, सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा हालात से अवगत कराया. उन्होंने तालेबान नेताओं के साथ सम्पर्क व बातचीत के दौरान, महिला अधिकारों का हनन करने वाली नीतियों को त्यागने की पैरवी की है.

“मेरी तालेबान मंत्रियों के साथ निरन्तर बातचीत होती है, और वे संवाद में हिस्सा लेते हैं. हर कोई अन्तरराष्ट्रीय सम्पर्कों के मूल्य को समझता है.”

“वे सभी अतीत में मुजाहिदीन थे, उन्होंने लड़ाई की. हर तीन में से एक को ग्वांटानमो में हिरासत में रखा गया था. उनका ऐसा ही जीवन परिचय है.”

उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक टकराव के कारण बड़ी संख्या में महिलाएँ व बच्चे विस्थापित हुए हैं.
© OCHA/Charlotte Cans
उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक टकराव के कारण बड़ी संख्या में महिलाएँ व बच्चे विस्थापित हुए हैं.

“और इसके बावजूद, हम सभी मोर्चों पर काम कर रहे हैं. मैं उन्हें बताती हूँ कि सुनिए, महिलाएँ कुछ भी कर सकती हैं. वे मिशन का नेतृत्व कर सकती हैं, और मुस्लिम देशों में भी दर्जनों व सैकड़ों महिला मंत्री, महिला राष्ट्रपति होने की बात हैं.”

विशेष प्रतिनिधि ओटुनबायेवा ने बताया कि तालेबान को राज़ी करना अभी सम्भव नहीं हुआ है, मगर उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है.

“इसमें धीरज, धीरज और फिर धीरज की आवश्यकता होगी.”

चुनौतियों का अम्बार

उन्होंने सितम्बर महीने के अन्त में सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को अफ़ग़ानिस्तान में मौजूदा हालात के बावजूद, वहाँ से अपने क़दम वापिस खींचने से बचना होगा.

विशेष प्रतिनिधि के अनुसार, देश फ़िलहाल अनेक बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है.

एक बड़ी चुनौती आगामी सर्दी के महीनों के दौरान पर्याप्त भोजन की व्यवस्था करना है. अफ़ग़ानिस्तान में सर्दी के महीने बेहद कठिन होते हैं, और जीवन निर्धनता, भूख, बीमारी में जीवन गुज़ार रहे हैं. 

देश पिछले चार दशकों से युद्ध से पीड़ित है और लगभग हर परिवार ने कुछ ना कुछ खोया है. चार करोड़ की आबादी वाले अफ़ग़ानिस्तान में 50 से 80 लाख लोग मादक पदार्थों (ड्रग) की लत से पीड़ित हैं.

अफ़ग़ानिस्तान के कालीन बाफ़न इलाक़े में कालीन बुनती महिलाएँ.
© UNHCR/Caroline Gluck
अफ़ग़ानिस्तान के कालीन बाफ़न इलाक़े में कालीन बुनती महिलाएँ.

इनमें से 10 लाख महिलाएँ व बच्चे हैं. बड़ी संख्या में महिलाएँ कालीन बुनते हुए मादक पदार्थ लेने की आदी हो जाती हैं. यह बेहद थकाऊ व उबाऊ काम है और नींद से बचने और काम करते रहने के लिए अक्सर वे ड्रग का सहारा लेती हैं.

वहीं पुरुष भी स्फूर्ति पाने के लिए अफ़ीम का इस्तेमाल करते हैं, ताकि लंबे समय के लिए काम कर सकें, और फिर धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत पड़ जाती है.

“एक अन्य समस्या, दवाओं का अभाव है, और इसलिए अफ़ग़ान अक्सर पारम्परिक चिकित्सा का सहारा लेते हैं, जोकि फिर अफ़ीम ही है. यह दर्द के लिए, किसी भी चीज़ के लिए इस्तेमाल में लाई जात है.”

सहायता धनराशि की क़िल्लत

रोज़ा ओटुनबायेवा नियमित रूप से उन स्वास्थ्य केन्द्रों का दौरा करती हैं, जहाँ कुपोषण का शिकार बच्चों का उपचार किया जाता है और जिन पुनर्वास केन्द्रों पर ड्रग-पीड़ित अफ़ग़ान बेहतर होने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि हर ओर निर्धनता व्याप्त है और पर्याप्त सहायता प्रदान करने के लिए धनराशि नहीं है.

विशेष प्रतिनिधि के अनुसार सहायता के लिए रक़म के अभाव की एक बड़ी वजह, वर्तमान सरकार द्वारा उठाए गए क़दम हैं, जोकि अफ़ग़ान महिलाओं को पूरी तरह से मिटा देने की कोशिश हैं.

छठी कक्षा के बाद लड़कियों के पढ़ने पर पाबन्दियाँ थोपी गई हैं और उनके युनिवर्सिटी जाने पर भी मनाही है. महिलाएँ पार्क, जिम या स्नानघर नहीं जा सकती हैं.

रोज़ा ओटुनबायेवा ने जिन महिलाओं से मुलाक़ात की, उन्होंने बताया कि जब घर पर गर्म पानी नहीं होता है, वे अपने बच्चों को स्नानघर नहीं ले जा सकती हैं. इस पर भी अब पाबन्दी लागू हो गई है.

“महिलाओं के प्रति इसी रवैये की वजह से दानदाता, मुख्यत: पश्चिमी देश, सहायता देने से मना कर रहे हैं.”

यूएन प्रतिनिधि ने कहा कि और यह ऐसे समय में हो रहा है जब तालेबान की अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से मान्यता और प्रतिबन्धों को वापिस लेने की अपेक्षा है.

अफ़ग़ानिस्तान में, अगस्त 2021 में तालेबान की सत्ता वापसी के बाद, महिलाओं और लड़कियों की ज़िन्दगी में तूफ़ान आ गया है.
Sayed Habib Bidel/UNWomen
अफ़ग़ानिस्तान में, अगस्त 2021 में तालेबान की सत्ता वापसी के बाद, महिलाओं और लड़कियों की ज़िन्दगी में तूफ़ान आ गया है.

अतीत से सबक़

यूएन प्रतिनिधि ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को पहले भी तालेबान का अनुभव है जब देश को उसी के भरोसे छोड़ गिया गया था, और अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद के लिए उर्वर ज़मीन बन गया.  “और फिर 9/11 हमले [11 सितम्बर, 2001] हुए.”

“अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने उन घटनाओं से एक सबक़ सीखा है. आज, निश्चित रूप से, हमारा संवाद में हिस्सेदारी रखना जारी है.”

“हम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और वे, अपने तौर पर, अपनी पीड़ा हमारे सम्मुख रखते हैं.”

उन्होंने कहा कि अन्तत:, हमें एक साझा प्लैटफ़ॉर्म ढूंढना है ताकि देश सामान्य ढंग से विकसित हो सके. इसका अर्थ है कि सबसे पहले, महिलाओं को छिपा कर रखने के बजाय, उन्हें बाहर आने दिया जाए.

सदैव सतर्क

रोज़ा ओटुनबायेवा ने अफ़ग़ानिस्तान में यूएन कर्मचारियों की ज़िन्दगी की भी एक झलक प्रदान की, जो राजधानी काबुल के बाहरी इलाक़े में कड़ी सुरक्षा में स्थित एक परिसर में रहते हैं. “आतंकवादी हमलों का ख़तरा अब भी है.”

पिछले वर्ष रूसी दूतावास और चीनी नागरिकों द्वार इस्तेमाल किए जाने वाले एक होटल पर धमाके हुए, जबकि पाकिस्तान राजदूत बाल-बाल बचे थे.  

उन्होंने कहा कि इसके पीछे दाएश चरमपंथी हो सकते हैं, जो ये साबित करना चाहते हैं कि तालेबान इस देश में शासन करने में सक्षम नहीं है.

“इसलिए, हम सभी बहुत सतर्क हैं; हम एक मिनट भी इत्मीनान से नहीं बैठ सकते हैं.” 

उन्होंने बताया कि यहाँ कोई मनोरंजन का साधन नहीं है. “क्या आप जानते हैं कि तालेबान ने संगीत पर पाबन्दी लगा दी है? यहाँ कोई संगीत समारोह नहीं है, कुछ भी नहीं.”

विशेष प्रतिनिधि रोज़ा ओटुनबायेवा ने मुस्कुराते हुए कहा कि “उदाहरणस्वरूप, हममें से कोई भी अपने आप बार दुकान तक नहीं जा सकता. ना संगीत है, ना ऐल्कॉहॉल है, इसलिए हमारा जीवन कठिन है.”