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वैश्विक अर्थव्यवस्था की मिलीजुली तस्वीर, प्रगति की रफ़्तार में ठहराव की आशंका

दक्षिण अफ़्रीका के जोहानेसबर्ग शहर में स्थित एक बस्ती का दृश्य.
© UNICEF/Karin Schermbrucker
दक्षिण अफ़्रीका के जोहानेसबर्ग शहर में स्थित एक बस्ती का दृश्य.

वैश्विक अर्थव्यवस्था की मिलीजुली तस्वीर, प्रगति की रफ़्तार में ठहराव की आशंका

आर्थिक विकास

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में वैश्विक अर्थव्यवस्था के ठहराव पर आने की आशंका व्यक्त की गई है, जिसकी वजह दुनिया के अनेक क्षेत्रों में पिछले वर्ष से दर्ज की जा रही आर्थिक सुस्ती है और केवल कुछ ही देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने इस रुझान के विपरीत प्रदर्शन किया है.

व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार, विश्व में आर्थिक प्रगति पिछले वर्ष तीन फ़ीसदी थी, जोकि 2023 में घटकर 2.4 प्रतिशत तक रह जाने की आशंका है. 

अगले वर्ष 2024 में भी इसमें सुधार के सीमित संकेत ही हैं. 

इसके मद्देनज़र, UNCTAD ने अपने नए विश्लेषण में नीतिगत उपायों की दिशा बदलने और संस्थागत सुधारों को लागू करने का आग्रह किया है. 

यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि नवीनतम आँकड़े व पूर्वानुमान वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार, मुद्रास्फीति, विषमता और कर्ज़ समेत अन्य चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्काल व्यावहारिक नीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं.

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इसके समानान्तर, महत्वपूर्ण बाज़ारों की निरीक्षण व्यवस्था को भी मज़बूती प्रदान की जानी होगी.

यूएन एजेंसी की महासचिव रेबेका ग्रीनस्पैन ने अतीत की नीतिगत ग़लतियों को ना दोहराए जाने की अहमियत रेखांकित की है.

“हमें वित्तीय सततता हासिल करने के लिए राजकोषीय, मौद्रिक और आपूर्ति सम्बन्धी उपायों के नीतिगत उपायों में सन्तुलन साधने, उत्पादक निवेश को मज़बूती देने और बेहतर रोज़गार सृजित करने की आवश्यकता है.”

उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय व्यापारिक और वित्तीय प्रणालियों में गहराती विषमताओं से निपटने के लिए नियामन उपायों का सहारा लिया जाना होगा.

आर्थिक बहाली के मार्ग में चुनौतियाँ

UNCTAD के अनुसार, वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था बहाल होने की प्रक्रिया में बड़ी भिन्नताएँ देखी गई हैं, और नीति उपायों में आपसी समन्वय की कमी चिन्ता की एक वजह है.

यूएन एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती ब्याज़ दरों के बावजूद, अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने निराशाजनक पूर्वानुमानों को ध्वस्त किया है और यह फ़िलहाल एक नियंत्रित ढंग से आर्थिक सुस्ती आ रही है.

इसकी एक बड़ी वजह, अमेरिका में उपभोक्ताओं व्यय का ऊँचा स्तर है, और राजकोषीय स्तर पर भी मितव्ययिता बरते जाने से बचा गया है. इसके अलावा, मौद्रिक स्तर पर भी इस वर्ष की शुरुआत में हस्तक्षेप किया गया था.

मगर, निवेश से जुड़ी चिन्ताएँ बरक़रार हैं, जिसका एक कारण ऊँची ब्याज़ दरें बताई गई हैं.

मिलीजुली तस्वीर 

अमेरिकी में स्थिति के उलट, योरोप एक सम्भावित मन्दी के कगार पर है, और यहाँ देशों को तेज़ी से सख़्त हो रही मौद्रिक नीतियों व आर्थिक चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है.

योरोपीय क्षेत्र की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती दर्ज की गई है और जर्मनी पहले से ही आर्थिक संकुचन के चरण में है.

वास्तविक कमाई या तो उसी स्तर पर है या फिर उसमें गिरावट दर्ज की गई है, जिनका असर वित्तीय मितव्ययिता उपायों के कारण और गहरा हुआ है.

वहीं, चीन में पिछले वर्ष की तुलना में बेहतरी के संकेत नज़र आए हैं, लेकिन वहाँ घरेलू उपभोक्ता मांग और निजी निवेश अब भी कमज़ोर है. 

रिपोर्ट के अनुसार, अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले चीन के पास राजकोषीय नीति उपायों के लिए ज़्यादा विकल्प हैं, जिनके ज़रिये मौजूदा चुनौतियों से निपटा जा सकता है. 

मुख्य चिन्ताएँ

यूएन विश्लेषण के अनुसार, आर्थिक विषमताएँ अब भी बरक़रार है, जोकि एक बड़ी चिन्ता है, विशेष रूप से विकासशील देशों में, चूँकि वे अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में सख़्त मौद्रिक नीति अपनाए जाने से विषमतापूर्ण ढंग से प्रभावित हुए हैं.

इस वजह से सम्पन्नता की खाई और चौड़ी हो रही है, और यह आर्थिक पुनर्बहाली की नाज़ुक प्रक्रिया और टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के रास्ते में अवरोध हैं.

इसके साथ-साथ, अनेक विकासशील देशों पर कर्ज़ का बोझ मंडरा रहा है.

बढ़ती ब्याज़ दरें, कमज़ोर होती मुद्राएँ और निर्यात में सुस्ती के कारण अति आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए राजकोषीय विकल्पों के लिए स्थान सिकुड़ा है. 

UNCTAD ने चेतावनी जारी की है कि इन चुनौतियों की पृष्ठभूमि में कर्ज़ की क़िस्तें चुकाने का बोझ, विकास प्रक्रिया के लिए एक संकट का रूप ले रहा है.