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बांग्लादेश: रोहिंज्या शरणार्थियों की रसद में दूसरी कटौती, यूएन विशेषज्ञों ने की निन्दा

बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों को धन की कमी के बाद कम खाद्य सहायता मिलने की उम्मीद है.
IOM/Mashrif Abdullah Al
बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों को धन की कमी के बाद कम खाद्य सहायता मिलने की उम्मीद है.

बांग्लादेश: रोहिंज्या शरणार्थियों की रसद में दूसरी कटौती, यूएन विशेषज्ञों ने की निन्दा

मानवीय सहायता

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने, बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों को मुहैया कराए जाने वाली खाद्य सहायता में दूसरी बार कटौती किए जाने की निन्दा की है. विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) को लगभग साढ़े पाँच करोड़ डॉलर की सहायता धनराशि के अभाव में यह निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जोकि गुरूवार से लागू हो गया.

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इस कटौती की वजह से रोहिंज्या शरणार्थियों को दिए जाने वाले रसद का मूल्य घटकर प्रति माह आठ डॉलर, यानि प्रति दिन 27 सेंट्स, हो जाएगा.

विशेषज्ञों ने चेतावनी जारी की है कि रसद में हुई कटौती के बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों पर विनाशकारी नतीजे होंगे और उनके लिए शरणार्थी शिविरों में जीवन और भी कठिन हो जाएगा.

जीवन रक्षक राशन पर निर्भरता

यूएन विशेषज्ञों ने सदस्य देशों से आग्रह किया है कि बांग्लादेश में मानवीय राहत प्रयासों के लिए तत्काल सहायता धनराशि प्रदान की जानी होगी, ताकि शरणार्थियों के लिए पूर्ण खाद्य सामग्री की व्यवस्था की जा सके.

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि तीन महीनों के भीतर, रोहिंज्या शरणार्थियों को मिलने वाली खाद्य सहायता में एक-तिहाई कटौती हो चुकी है. इस वजह से, पहले से ही गम्भीर अभाव और सदमे से पीड़ित आबादी के स्वास्थ्य व उनकी सुरक्षा को और अधिक नुक़सान हुआ है.

इससे पहले, मार्च 2023 में मासिक राशन को प्रति माह 12 डॉलर से घटाकर 10 डॉलर कर दिया गया था.

राशन में कटौती से लगभग 10 लाख रोहिंज्या शरणार्थियों पर असर हुआ है, जो पूरी तरह से सहायता पर निर्भर हैं और अपनी गुज़र-बसर के लिए उनके पास रोज़गार या आजीविका के साधन नहीं हैं.

अधिकाँश रोहिंज्या शरणार्थियों ने वर्ष 2016 और 2017 के दौरान, म्याँमार सैन्य बलों के अभियान के दौरान हमलों और कथित उत्पीड़न से बचने के लिए भागकर बांग्लादेश में शरण ली थी.

कठिन हालात 

यूएन विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि खाद्य सहायता में इन कटौतियों के नतीजे पहले से ही देखे जा सकते हैं: कुपोषण की दर में वृद्धि, नवजात शिशुओं की मृत्यु, हिंसा और मौत.

इन परिस्थितियों में क्षेत्रीय अस्थिरता भी बढ़ेगी और कुछ रोहिंज्या शरणार्थी, शिविर में भूख या मौत से बचने के लिए मानव तस्करों पर भरोसा करके, ख़तरनाक समुद्री यात्राएँ करने के लिए मजबूर हो सकते हैं.

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि रोहिंज्या समुदाय पर इन कटौतियों के नतीजे गम्भीर और दीर्घकालिक होंगे, जिससे बच्चों का विकास अवरुद्ध होगा और भावी पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य की आशाएँ धूमिल हो जाएंगी.

संवेदनशील परिस्थितियों का सामना करने वाली आबादी, गर्भवती व स्तनपान करा रही महिलाओं, किशोर लड़कियों और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इन कटौतियों का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ेगा.

खाद्ध सहायता में कटौतियों से पहले भी, बांग्लादेश में शरणार्थियों के लिए स्वास्थ्य संकेतकों की स्थिति गम्भीर थी. 45 प्रतिशत रोहिंज्या परिवारों को पर्याप्त आहार नहीं मिल रहा था. 40 प्रतिशत रोहिंज्या बच्चे नाटेपन के शिकार थे और 50 फ़ीसदी से अधिक रक्त की कमी (anemia) से पीड़ित थे.

चक्रवाती तूफ़ान से बढ़ी मुश्किलें

पश्चिमी म्याँमार के तट पर 14 मई को आए चक्रवाती तूफ़ान मोका से बांग्लादेश में भी 40 हज़ार से अधिक शरणार्थियों के आश्रयस्थलों को क्षति पहुँची है, जिससे उनकी पीड़ा बढ़ी है और बजट सम्बन्धी आवश्यकताएँ बढ़ी हैं.

यूएन विशेषज्ञों ने ज़ोर देकर कहा कि सदस्य देशों को खाद्य सहायता के लिए साढ़े पाँच करोड़ डॉलर की कमी को दूर करना होगा और जिन देशों ने अभी तक वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की है, उन्हें तत्काल यह मुहैया करानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि अनेक देशों की सरकारों ने अपने बयानों में रोहिंज्या के लिए मज़बूत समर्थन प्रदान करने की पेशकश की है, मगर इससे बांग्लादेश में मानवीय राहत के लिए एक पाई का भी प्रबन्ध नहीं हो पाया. रोहिंज्या शरणार्थियों की सहायता के लिए 87 करोड़ डॉलर की अपील की बुरी तरह उपेक्षा की गई है और प्रस्तावित धनराशि का केवल 24 प्रतिशत हिस्सा ही जुटाया जा सका है.

विशेष रैपोर्टेयर ने कहा कि इन देशों को अपनी चैक बुक अभी निकालनी होगी और स्थाई समाधानों के लिए काम करना होगा. ये समय कथनी के साथ-साथ करनी पर ध्यान देने का है.