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रोहिंज्या शरणार्थियों के खाद्य सामग्री में कटौती टालने के लिए, सहायता धनराशि का आग्रह

बांग्लादेश में रह रहे रोहिंज्या शरणार्थी परिवारों को विश्व खाद्य कार्यक्रम से महीने का राशन मिलता है.
© WFP/Sayed Asif Mahmud
बांग्लादेश में रह रहे रोहिंज्या शरणार्थी परिवारों को विश्व खाद्य कार्यक्रम से महीने का राशन मिलता है.

रोहिंज्या शरणार्थियों के खाद्य सामग्री में कटौती टालने के लिए, सहायता धनराशि का आग्रह

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने गुरूवार को चेतावनी जारी करते हुए कहा है, कि बांग्लादेश के शिविरों में रह रहे रोहिंज्या शरणार्थी परिवारों के लिए, जीवनरक्षक खाद्य सहायता और रसद में कटौती किए जाने के विनाशकारी नतीजे सामने आ सकते हैं, जिसे हर हाल में टाला जाना होगा.

मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने दुनिया भर में दानदाताओं से विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा संचालित रोहिंज्या शरणार्थी जवाबी राहत कोष के लिए उदारतापूर्वक योगदान की अपील की है.

यूएन के दो स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने अपने वक्तव्य में कहा, “राशन में कटौती किए जाने की योजना, उन सहायता कार्यक्रमों के लिए धनराशि प्रदान करने में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की विफलता का भयावह नतीजा है, जिनसे रोहिंज्या शरणार्थियों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी की जाती हैं.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, “अगले कुछ सप्ताह में ही रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए राशन में कटौती की जाएगी, पवित्र रमदान महीना शुरू होने से कुछ ही दिन पहले.”

विश्व खाद्य कार्यक्रम ने मार्च से रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए राशन में 17 प्रतिशत की कटौती किए जाने की घोषणा की है.

संगठन ने चेतावनी जारी की है कि यदि अप्रैल तक सहायता धनराशि के लिए नए संकल्प नहीं लिए गए, तो कटौती का एक नया दौर मजबूरी होगी.

यूएन एजेंसी ने सहायता धनराशि के लिए, साढ़े 12 करोड़ डॉलर राशि की सहायता अपील जारी की है.

कुपोषण का दंश

“यदि ये रसद कटौतियाँ लागू की जाती हैं, तो उन्हें ऐसे निर्बल लोगों पर थोपा जाएगा जोकि पहले से ही खाद्य असुरक्षा का शिकार हैं. हाल के दिनों में हुई कुपोषण का स्तर ऊँचा है और बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थी आबादी में कुपोषण लम्बे समय से व्याप्त है.”

बताया गया है कि एक-तिहाई से अधिक बच्चे नाटेपन और अल्प-वज़न से पीड़ित हैं.

बांग्लादेश में एक शरणार्थी शिविर में, रोहिंज्या बच्चे, एक अस्थाई शिक्षा केन्द्र में, मनोरंजक गतिविधियों व मनोवैज्ञानिक समर्थन के लिये एकत्र होते हुए.
© UNICEF/Rashad Wajahat Lateef

टॉम एंड्रयूज़ और माइकल फ़ाख़री ने कहा, “इन कटौतियों के नतीजे तात्कालिक और दीर्घकालिक होंगे, चूँकि शरणार्थी अपनी पोषण आवश्यकताओं के लिए इस सहायता पर ही पूरी तरह निर्भर हैं.”

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि सर्वाधिक निर्बलों पर विशेष रूप से असर होने की आशंका है, जिनमें पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चे, किशोर लड़कियाँ, गर्भवती व स्तनपान करा रही महिलाएँ हैं.

वर्ष 2017 में म्याँमार में सैन्य बलों के क्रूरतापूर्ण अभियान के कारण, सात लाख से अधिक रोहिंज्या शरणार्थियों ने बांग्लादेश में शरण ली थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने, इसे जनसंहार के रुप में परिभाषित किया था.

इस जातीय समुदाय के 10 लाख से अधिक सदस्य बांग्लादेश के भीड़भाड़ भरे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, जोकि विश्व में सबसे सघन आबादियों में से है.  

शरणार्थी शिविरों में असुरक्षा की आशंका

मानवाधिकार विशेषज्ञों ने कहा कि महत्वपूर्ण खाद्य सहायता में कटौती, रोहिंज्या शरणार्थियों को और अधिक हताशा भरे हालात की ओर धकेल सकती है, जिससे शिविरों में हिंसा व अशान्ति भड़कने का ख़तरा है.

“इससे विविध प्रकार की मानवाधिकार चिन्ताएँ पैदा हो सकती हैं, जैसेकि मानव तस्करी जोखिम का ऊँचा स्तर, विशेष रूप से बच्चों और लड़कियों के लिए, और नाव से जोखिम भरी यात्राएँ करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि.”

यूएन विशेषज्ञों ने बताया कि अनेक देशों ने बार-बार रोहिंज्या समुदाय के लिए न्याय और जवाबदेही की मांग की है, मगर शिविरों में रह रहे लोगों के लिए एकजुटता भरे शब्दों व वक्तव्यों से कहीं अधिक आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि रोहिंज्या शरणार्थियों की सहायता के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को तत्काल क़दम उठाने होंगे, ताकि इन कटौतियों और उनसे उपजने वाले प्रभावों को टाला जा सके.

म्याँमार में 2017 में सैन्य अभियान के दौरान जान बचाने के लिये बड़ी संख्या में रोहिंज्या समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश का रुख़ किया. (फ़ाइल)
© UNICEF/Patrick Brown

मानवाधिकार विशेषज्ञ

विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.

उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिए करती है.

ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.