वैश्विक परिप्रेक्ष्य मानव कहानियां

बुज़ुर्ग हो रही वैश्विक आबादी के लिए, ठोस समर्थन उपायों की दरकार

2021 में जन्म लेने वाले बच्चे की जीवन प्रत्याशा, औसतन, 1950 में पैदा होने वाले बच्चे की तुलना में, लगभग 25 वर्ष अधिक है.
© UNFPA China
2021 में जन्म लेने वाले बच्चे की जीवन प्रत्याशा, औसतन, 1950 में पैदा होने वाले बच्चे की तुलना में, लगभग 25 वर्ष अधिक है.

बुज़ुर्ग हो रही वैश्विक आबादी के लिए, ठोस समर्थन उपायों की दरकार

एसडीजी

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व भर में, 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या, वर्ष 2050 तक मौजूदा 76 करोड़ 10 लाख से बढ़कर, एक अरब 60 करोड़ तक पहुँचने, यानि दोगुनी हो जाने की सम्भावना है. इसके मद्देनज़र, यूएन विशेषज्ञों ने एक टिकाऊ भविष्य के लिए सामूहिक प्रयासों के केन्द्र में, वृद्धजन कल्याण और उनके अधिकारों को प्राथमिकता दिए जाने का आग्रह किया है.

The World Social Report: Leaving no one behind in an ageing world’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक आबादी की आयु बढ़ना, मौजूदा दौर का एक निर्धारक रुझान है.

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, लोग लम्बे समय तक जी रहे हैं, और पहले की तुलना में कहीं अधिक बुज़ुर्ग हो रहे हैं.

मगर, साथ ही पेंशन, जीवन-व्यापन और स्वास्थ्य देखभाल क़ीमतों में भी उछाल आया है.  

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रिपोर्ट बताती है कि जन्म से ही समान अवसरों को बढ़ावा देकर, हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य के साथ वृद्ध होने का अवसर दिया जा सकता है, जिसके लाभ फिर देशों को प्राप्त होंगे.

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक मामलों के विभाग में अवर महासचिव ली जुनहुआ ने कहा, “एक साथ मिलकर, हम कल की पीढ़ी के लाभ के लिए, आज की विषमताओं से निपट सकते हैं, चुनौतियों के प्रबन्धन और आबादी की आयु बढ़ने से उपजने वाले अवसरों का लाभ उठा करके.”

विश्व आबादी की बढ़ती आयु

वैश्विक स्तर पर, 2021 में जन्म लेने वाले बच्चे की जीवन प्रत्याशा, औसतन, 1950 में पैदा होने वाले बच्चे की तुलना में, लगभग 25 वर्ष अधिक यानि 71 वर्ष है.

पुरूषों की तुलना में महिलाओं की आयु, औसतन पाँच वर्ष अधिक होती है.

बताया गया है कि उत्तरी अफ़्रीका, पश्चिमी एशिया और सब-सहारा अफ़्रीका में अगले तीन दशकों में, वृद्धजन की संख्या में सबसे तेज़ गति से वृद्धि होने की सम्भावना है.

वहीं, योरोप और उत्तरी अमेरिका में साझा रूप से, बुज़ुर्ग लोगों की सबसे बड़ी संख्या है.

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य, चिकित्सा उपचार में सुधार, शिक्षा की बेहतर सुलभता और उर्वरता में गिरावट के कारण, यह बदलाव नज़र आ रहा है.

विषमतापूर्ण स्थिति

रिपोर्ट में सचेत किया गया है कि स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में प्रगति से आबादी की आयु बढ़ रही है, मगर इनमें बेहतरी का लाभ हर किसी तक समान रूप से नहीं पहुँचा है.

ऐसे वृद्धजन की बड़ी संख्या है, जिनका स्वास्थ्य अच्छा है और जो आर्थिक रूप से सक्रिय हैं, मगर अन्य लोगों को बीमारियों व निर्धनता में जीवन गुज़ारना पड़ता है.  

विकसित देशों में, पेंशन व स्वास्थ्य देखभाल समेत सार्वजनिक हस्तान्तरण व्यवस्था, वृद्धजन द्वारा कुल खपत का दो तिहाई हिस्सा प्रदान करती है.

लेकिन, कम विकसित देशों में बुज़ुर्ग आबादी को अधिक समय तक काम करना पड़ता है और उन्हें पारिवारिक सहायता या फिर अपनी जमा-पूंजी पर ही अधिक निर्भर रहना पड़ता है.

इन देशों में, दीर्घकालीन देखभाल के लिए बढ़ती मांग के अनुरूप सार्वजनिक व्यय में पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, जीवन प्रत्याशा मुख्यत: आय, शिक्षा, लिंग, जातीयता और निवास स्थान सहित अन्य कारकों से प्रभावित होती है.

इनमें से कुछ कारक अक्सर जीवन के आरम्भिक सालों में कुछ ऐसी व्यवस्थागत चुनौतियों की ओर धकेल देते हैं, जिनसे उबर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है.

रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि व्यवस्था में समाई प्रतिकूल परिस्थितियों की रोकथाम के लिए, नीतिगत उपाय ज़रूरी हैं, अन्यथा वे एक दूसरे को पोषित करती हैं, जिससे प्रभावित व्यक्तियों के बुज़ुर्ग होने तक बड़ी विषमताएँ पनप जाती हैं.

इन हालात में टिकाऊ विकास के 2030 एजेंडा के दसवें लक्ष्य, विषमताओं में कमी लाने की दिशा में प्रगति प्रभावित होगी.  

यूक्रेन में कोरोनावायरस से संक्रमित एक बुज़ुर्ग मरीज़, ऑक्सीजन मास्क के सहारे साँस ले रही है.
© UNICEF/Evgeniy Maloletka
यूक्रेन में कोरोनावायरस से संक्रमित एक बुज़ुर्ग मरीज़, ऑक्सीजन मास्क के सहारे साँस ले रही है.

ठोस उपायों पर बल

रिपोर्ट के अनुसार, जनसांख्यिकी में हो रहे इस बदलाव की पृष्ठभूमि में आजीविका और कामकाज के क्षेत्र में, लम्बे समय से अपनाई जा रही नीतियों व तौर-तरीक़ों पर पुनर्विचार करना होगा.

कुछ देशों ने पहले से ही जीवन-पर्यन्त सीखने-सिखाने के लिए, नए अवसर प्रस्तुत किए हैं, जिसके तहत अन्तर-पीढ़ीगत कार्यबलों का पूर्ण रूप से लाभ उठाने का प्रयास किया जा रहा है.

साथ ही, सेवानिवृत्ति के लिए आयु अहर्ता को लचीला बनाया गया है, ताकि विविध प्रकार की वैयक्तिक आवश्यकताओं व पसन्द-नापसन्द का ध्यान रखा जा सके.

सरकारों से पेंशन योजनाओं समेत सामाजिक संरक्षा व्यवस्था पर पुनर्विचार करने और ज़रूरी होने पर बदलाव करने की भी बात कही गई है.

इस दिशा में एक बड़ी चुनौती, सभी वृद्धजन के लिए आय सुरक्षा सुनिश्चित करते समय, सार्वजनिक पेंशन व्यवस्था की राजकोषीय सततता बनाए रखना है, उनके लिए भी जो अनौपचारिक रोज़गार में हैं.

इसके साथ-साथ, महिलाओं और औपचारिक श्रम बाज़ार से पारम्परिक रूप से बाहर रखे गए अन्य समूहों के लिये शिष्ट व उपयुक्त रोज़गार अवसरों के दायरे में विस्तार करना होगा.

अनौपचारिक देखभाल सैक्टर से औपचारिक अर्थव्यवस्था में मिलने वाले योगदान को पहचाना जाना होगा, ताकि एक उम्रदराज़ हो रही दुनिया में, सतत व समावेशी आर्थिक प्रगति सुनिश्चित की जा सके.