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अमेरिका की नई सीमा-प्रवेश नीति, ‘बुनियादी अधिकारों के लिए जोखिम’

मैक्सिको में सीमावर्ती इलाक़े में, वेनेज़ुएला के विस्थापितों के लिये एक शिविर स्थापित किया गया है. (फ़ाइल)
© IOM Mexico/Alejandro Cartagena
मैक्सिको में सीमावर्ती इलाक़े में, वेनेज़ुएला के विस्थापितों के लिये एक शिविर स्थापित किया गया है. (फ़ाइल)

अमेरिका की नई सीमा-प्रवेश नीति, ‘बुनियादी अधिकारों के लिए जोखिम’

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क ने कहा है कि अमेरिकी सरकार ने हाल ही में जिन नए सीमा प्रवर्तन उपायों की घोषणा की है, उनसे अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और शरणार्थी अधिकारों की बुनियाद कमज़ोर हो जाने का जोखिम है.

अमेरिकी नीति में नए बदलावों के तहत लोगों को देश से बाहर निकालने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने, और ‘टाइटल 42’ क़ानूनी उपाय के दायरे में विस्तार करने की बात कही गई है.  

अमेरिकी सरकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था से सम्बन्धित इस उपाय के इस्तेमाल से, कोविड-19 महामारी जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात हालात के दौरान, व्यक्तियों को देश से निकाल सकती है.

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मानवाधिकार मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को अपने एक वक्तव्य में आगाह किया कि हर महीने वेनेज़ुएला, हेती, क्यूबा और निकारागुआ के 30 हज़ार नागरिकों को अमेरिका से निष्कासित करके मैक्सिको भेजे जाने की आशंका है.

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि अमेरिकी सरकार का नवीनतम क़दम, सामूहिक रूप से देश निकाला देने पर पाबन्दी के साथ-साथ उस सिद्धान्त का भी हनन है, जिसमें शरण की चाह रखने वाले लोगों की जान पर जोखिम की स्थिति में, उन्हें उनके मूल देश वापिस नहीं भेजा जा सकता है.

उन्होंने शरण पाने की चाह को एक मानवाधिकार क़रार दिया.

“शरण पाने की इच्छा का अधिकार, एक मानवाधिकार है, भले ही व्यक्ति का मूल स्थान, आप्रवासन दर्जा कुछ भी हो, या फिर वे अन्तरराष्ट्रीय सीमा पर किसी भी तरह पहुँचे हों.”

संरक्षण ज़रूरतों की समीक्षा

बताया गया है कि अमेरिकी आप्रवासन अधिकारियों ने देश की दक्षिणी सीमा पर लोगों को वापिस मैक्सिको या उनके मूल देश भेजने में अब तक लगभग 25 लाख बार ‘टाइटल 42’ का इस्तेमाल किया है.

यूएन मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार, इस दौरान ना तो लोगों की संरक्षण आवश्यकताओं की व्यक्तिगत रूप से समीक्षा की गई और ना ही प्रक्रियात्मक बचाव उपायों का ध्यान रखा गया.

नए बदलावों के अन्तर्गत एक ‘मानव कल्याण पैरोल कार्यक्रम’ का दायरा क्यूबा, हेती और निकारागुआ के नागरिकों तक बढ़ाए जाने की योजना है. वेनेज़ुएला के नागरिकों को शामिल करने के लिये इसमें पहले ही विस्तार किया जा चुका है.

इस पहल के ज़रिये, हर महीने इन चार देशों से लगभग 30 हज़ार व्यक्ति, दो वर्ष की सीमित अवधि के लिये अमेरिका आ सकेंगे, मगर इसके लिये उन्हें सख़्त अहर्ताओं को पूरा करना होगा.

वोल्कर टर्क ने अमेरिका में प्रवेश के लिये सुरक्षित व नियमित रास्तों के सृजन का स्वागत किया है, मगर आगाह भी किया है कि इन्हें बुनियादी मानवाधिकारों की क़ीमत पर लागू नहीं किया जाना होगा.

इन अधिकारों में शरण चाहने का अधिकार, संरक्षण आवश्यकताओं की व्यक्तिगत समीक्षा का अधिकार भी है.

अहर्ताएँ पूरी कर पाना कठिन

मानवाधिकार उच्चायुक्त ने यूएन शरणार्थी एजेंसी की चिन्ताओं को दोहराते हुए कहा कि ‘मानव कल्याण पैरोल कार्यक्रम’ की सीमित सुलभता, अपने मानवाधिकारों की रक्षा की चाह रखने वाले लोगों के अधिकारों का स्थान नहीं ले सकती है.

वोल्कर टर्क ने सचेत किया कि शरण आवश्यकताओं और निर्बल परिस्थितियों में जीवन गुज़ार रहे लोगों द्वारा प्रवेश अनुमति के लिए ‘मानव कल्याण पैरोल कार्यक्रम’ की सख़्त अहर्ताओं को पूरा कर पाना कठिन होगा. इसके लिए उन्हें अमेरिका में किसी वित्तीय प्रायोजक की आवश्यकता भी होगी.

यूएन कार्यालय के शीर्ष अधिकारी ने अन्तरराष्ट्रीय सीमाओं पर सभी शरणार्थियों और प्रवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा व सम्मान करने के समर्थन में अपनी अपील जारी की है.

वोल्कर टर्क ने कहा, “हम प्रवासन संकटों के बारे में अक्सर बहुत कुछ सुनते हैं, मगर वास्तविकता में, ये असल में प्रवासी ही हैं जो अक्सर संकट में होते हैं.”

मानवाधिकार उच्चायुक्त के अनुसार, उनका तिरस्कार करने और लम्बे समय के अधिकारों से वंचित करने के बजाय, उनके लिये प्रवासन को मानवीय बनाया जाना चाहिए, और ऐसा करते समय, हर एक व्यक्ति के मानवाधिकारों का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित किया जाना होगा.