'अमेरिका को गहरी जड़ जमाए नस्लवाद को ख़त्म करना होगा'
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने कहा है कि जो लोग अमेरिका में गहराई से जड़ जमाए और समाज के लिए एक बीमारी बन चुके ढाँचागत नस्लवाद को ख़त्म करने के लिए अपनी आवाज़ बुलन्द कर रहे हैं, उनकी आवाज़ों को सुना और समझा जाना होगा, ताकि देश नस्लवाद और हिन्सा के अपने पीड़ादायक इतिहास के चंगुल से बाहर निकल सके.
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने एक वक्तव्य में कहा, ”जो लोग निहत्थे अफ्रीकी-अमेरिकन लोगों की हत्याओं पर रोक लगाने लिए आवाज़ें बुलन्द कर रहे हैं, उनकी बात सुनी जानी होगी... जो आवाज़ें पुलिस हिंसा पर लगाम लगाने की बात कर रही हैं, उन्हें सुना जाना होगा.”
The grievances at the heart of the protests that have erupted in hundreds of US cities need to be heard and addressed if the country is to move on from its tragic history of racism & violence – @mbachelet.Learn more: https://t.co/IN8QfYyMEV#FightRacism#StandUp4HumanRights pic.twitter.com/xEeD6TM9Je
UNHumanRights
ध्यान रहे कि मिनीयापॉलिस शहर में एक श्वेत पुलिस अधिकारी के बर्ताव से 46 वर्षीय एक काले अफ्रीकी व्यक्ति जियॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद 25 मई को अनेक शहरों में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे.
श्वेत पुलिस अधिकारी ने फ्लॉयड की गर्दन पर आठ से ज़्यादा मिनट तक अपना घुटना सख़्ती से टिकाए रखा और समझा जाता है कि उसके कारण फ्लॉयड का दम घुट गया और बाद में पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई.
बीते सप्ताह के दौरान लाखों प्रदर्शनकारी अमेरिका के 300 से भी ज़्यादा शहरों और अन्य अनेक देशों में सड़कों पर उतरे हैं. ये प्रदर्शन मुख्य रूप से शान्तिपूर्ण रहे हैं और इनमें नस्लीय न्याय की माँग की गई है, लेकिन कुछ स्थानों पर अव्यवस्था व लूटपाट भी देखी गई है, कुछ लोग ज़ख़्मी हुए हैं और पुलिस की हिंसक कार्रवाई भी देखी गई है.
नस्लवाद की खुली निन्दा हो
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि वैसे तो हर समय ही ऐसा होना चाहिए, मगर ख़ासतौर से किसी संकट के दौरान, देश के नेताओं को नस्लवाद की खुली निन्दा करनी चाहिए.
उन्होंने ये भी कहा कि प्रभारी नेताओं व अधिकारियों को ये भी देखना होगा कि ऐसा क्या हुआ जिसके कारण लोगों में इतना ग़ुस्सा भर गया, उनकी बात सुनी जाए और सबक़ सीखे जाएँ; और ऐसी कार्रवाई की जाए जिनसे असमानताएँ सच में ही दूर हो सकें.
बल व हिंसा
विश्वस्त ख़बरों में कहा गया है कि क़ानून लागू करने वाले अधिकारियों (पुलिस) ने अनावश्यक और ज़रूरत से ज़्यादा बल प्रयोग किया है, इनमें कम ख़तरनाक हथियारों व बारूद का इस्तेमाल भी शामिल है.
शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों व पत्रकारों पर आँसू गैस, रबर की गोलियाँ और मिर्चों की गोलियाँ दागे गए हैं, कुछ मामलों में तो तब, जबकि प्रदर्शनकारी वापिस जा रहे थे.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार ऐसी कम से कम 200 घटनाएँ दर्ज की गई हैं जिनमें प्रदर्शनकारियों को कवर करने वाले पत्रकारों पर शारीरिक रूप से हमला किया गया, उन्हें डराया धमकाया गया या मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया, जबकि वो पत्रकार पूरी तरह से दिख जाने वाले अपने प्रैस कार्ड पहने हुए थे.
यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कहा कि पत्रकारों पर असाधारण रूप से हमले हुए हैं, कुछ मामलों में तो, उन पर तब हमले किये गए, या उन्हें गिरफ़्तार किया गया जब वो रेडियो या टेलीविज़न पर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे थे.
मिशेल बाशेलेट ने कहा, “ये सब इसलिए भी दहला देने वाला है क्योंकि अमेरिका में अभिव्यक्ति और मीडिया की आज़ादी बुनियादी सिद्धान्तों में शामिल है, जोकि देश की पहचान निर्धारित करते हैं.”
“मैं हर स्तर पर अधिकारियों का आहवान करती हूँ कि सन्देश स्पष्ट रूप में समझा जाए – पत्रकारों को अपना महत्वपूर्ण काम करने दिया जाए, किसी भी तरह के हमलों या प्रताड़ना के डर से मुक्त होकर.”
हिन्सा पर लगे लगाम
इन प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों व पुलिसकर्मियों दोनों को ही चोटें पहुँची हैं. मानवाधिकार उच्चायुक्त ने इसी सन्दर्भ में प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वो न्याय के लिए अपनी माँगों का इज़हार शान्तिपूर्ण तरीक़ों से करें. साथ ही पुलिस से भी स्थिति का सामना करने में अत्यधिक सावधानी बरतने की अपील की.
उन्होंने कहा, “हिन्सा, लूटपाट और सम्पत्ति और बस्तियों को नुक़सान पहुँचाने से पुलिस बर्बरता और लम्बे समय से चले आ रहे भेदभाव के माहौल की समस्या से निपटने में कोई मदद नहीं मिलेगी.” उन्होंने पूरे मामले की निष्पक्ष, पारदर्शी जाँच कराए जाने की माँग भी की है.
मिशेल बाशेलेट ने इस तरह की ख़बरों पर भी गहरी चिन्ता जताई है जिनमें प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी कहा गया है या फिर शान्तिपूर्ण प्रदर्शनों को ये कहकर बदनाम करने की कोशिश की गई है कि – “इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता कि इन प्रदर्शनों के पीछे क्या और कौन हैं.”
ध्यान रहे कि अमेरिका में ये ग़ुस्सा ऐसे समय में फूटा है जब कोविड-19 महामारी से एक लाख से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और इसने समाज और व्यवस्था में गहराई से बैठे भेदभाव को भी उजागर कर दिया है.
मिशेल बाशेलेट ने कहा कि ऐसे में व्यापक सुधारों और समावेशी बातचीत पर ज़ोर दिया जा रहा है जिनसे पुलिस के हाथों होने वाली हत्याओं और पुलिस में क़ानून का डर नहीं होने का मौहाल बदला जा सके, साथ ही पुलिस में नस्लभेद को भी ख़त्म किया जा सके.