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संयुक्त राष्ट्र का सहयोग करने पर द्वेषपूर्ण कार्रवाई, एक चिन्ताजनक रुझान

माली के मेनाका में एक विस्थापित व्यक्ति के साथ बातचीत करते हुए एक मानवाधिकार अधिकारी. (मई 2018)
UN Photo/Marco Dormino
माली के मेनाका में एक विस्थापित व्यक्ति के साथ बातचीत करते हुए एक मानवाधिकार अधिकारी. (मई 2018)

संयुक्त राष्ट्र का सहयोग करने पर द्वेषपूर्ण कार्रवाई, एक चिन्ताजनक रुझान

मानवाधिकार

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व के 42 देशों में लोगों को मानवाधिकारों के मुद्दे पर इस विश्व संगठन के साथ सहयोग करने के लिये, द्वेषपूर्ण कार्रवाई और डराए-धमकाए जाने का सामना करना पड़ा है. रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक वर्ष में इस विषय में चिन्ताजनक रुझान दर्ज किये गए हैं.

गुरूवार को जारी इस रिपोर्ट में अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, ब्राज़ील, क्यूबा, भारत, इण्डोनेशिया, ईरान, इसराइल, म्याँमार, रूसी महासंघ, सऊदी अरब, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, निकारागुआ, थाईलैण्ड, वेनेज़ुएला समेत अन्य देशों में, 1 मई 2021 से 30 अप्रैल 2022 के दौरान घटित मामलों का विवरण दिया गया है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि मानवाधिकार हनन के पीड़ितों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को किस प्रकार से सरकार व ग़ैर-सरकारी तत्वों ने डराया धमकाया और उनके विरुद्ध बदले की भावना से कार्रवाई की गई.

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इन मामलों में लोगों को हिरासत में लिया जाना, पाबन्दी लगाने वाले क़ानूनों के द्वारा निशाना बनाया जाना, और ऑनलाइन व ऑफ़लाइन उनकी निगरानी करना शामिल है.

ये उन व्यक्तियों और समूहों पर केन्द्रित है, जिन्होंने मानवाधिकार मुद्दों पर यूएन के साथ सहयोग किया; जानकारी व गवाही को साझा करने में यूएन प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया या फिर मानवाधिकार उल्लंघन व दुर्व्यवहार के मामलों में समस्याओं के निवारण का प्रयास किया.

बताया गया है जिन व्यक्तियों या समूहों ने यूएन के साथ सहयोग करने का प्रयास भी किया, या फिर ऐसा करते हुए नज़र आए, वे भी इससे प्रभावित हुए हैं.

रिपोर्ट में उल्लेखित देशों में से एक-तिहाई ऐसे हैं, जहाँ व्यक्तियों व समूहों ने या तो सहयोग से परहेज़ किया या फिर अज्ञान होकर भी अपने मामलों के सिलसिले में जानकारी दी, चूँकि उन्हें बदले की भावना से कार्रवाई का भय था.  

मानवाधिकारों के लिये सहायक महासचिव इल्ज़े ब्रैण्ड्स केहरिस का कहना है कि द्वेषपूर्ण कार्रवाई के विरुद्ध सदस्य देशों द्वारा लिये गए साझा संकल्पों के बावजूद, रिपोर्ट एक बार फिर दर्शाती है कि यूएन के समक्ष मानवाधिकार चिन्ताओं को उठाने के लिये, लोगों का किस तरह उनकी निगरानी की जाती है और यातना दी है.

उन्होंने कहा कि यह संख्या स्तब्धकारी है, जबकि बदले की भावना से की गई कार्रवाई के अनेक मामलों में सही जानकारी भी नहीं मिल पाती है.

बताया गया है कि यूएन के साथ सहयोग करने वाले व्यक्तियों व समूहों की निगरानी किये जाने के मामले हर क्षेत्र में सामने आए हैं. रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन निगरानी व साइबर हमलों के सम्बन्ध में तथ्य बढ़ रहे हैं.

कोविड-19 महामारी के कारण व्यापक स्तर पर डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल में तेज़ी आई, जिससे साइबर-सुरक्षा, निजता और ऑनलाइन स्थलों की सुलभता के प्रति चुनौती भी गहरी हुईं.

चिन्ताजनक वैश्विक रुझान

रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग पर रोक लगाने और ऐसा करने पर दण्डित किये जाने के क़ानूनों के इस्तेमाल और असर को भी चिन्ताजनक वैश्विक रुझान बताया गया है.

इसके परिणामस्वरूप कुछ लोगों को लम्बी अवधि के लिये जेल की सज़ा दी गई या फिर घर में नज़रबन्द कर दिया गया.

अनेक देशों में डराए-धमकाए जाने के मामले बार-बार सामने आए, जोकि एक रुझान को प्रदर्शित करता है.

एक अन्य वैश्विक रुझान स्वत: सेंसरशिप का भी है, जिसमें व्यक्ति अपनी सलामती के लिये यूएन के साथ या तो सहयोग नहीं करते हैं, या फिर अपनी सुरक्षा के लिये गोपनीय ढंग से ऐसा करते हैं.

बढ़ती निगरानी और आपराधिक ज़िम्मेदारी तय किये जाने के भय की वजह से, सुन्न कर देने वाला प्रभाव पनपा है, जिसके कारण लोग चुप्पी धारण कर लेते हैं, और लोगों को यूएन के साथ सहयोग करने से रोकता है.

अतीत के वर्षों की तरह, रिपोर्ट दर्शाती है कि द्वेषपूर्ण कार्रवाई और डराए-धमकाए जाने के मामलों से कुछ समूह व आबादी अधिक प्रभावित हैं.

इनमें आदिवासी व्यक्ति, अल्पसंख्यक, या पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मुद्दों पर सक्रिय व्यक्तियों के अलावा वे लोग भी हैं, जोकि अपनी आयु, यौन रुझान और लिंग के आधार पर भेदभाव से गुज़रते हैं.

सहायक महासचिव ब्रैण्ड्स केहरिस ने जिनीवा में मानवाधिकार परिषद को बताया, “महिला पीड़ितों, और यूएन के साथ साक्ष्य साझा और सहयोग करने वाली महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व शान्ति निर्माताओं के लिये जोखिम बहुत बड़े हैं.”

“हम यह सुनिश्चित करने के लिये अपना काम जारी रखेंगे कि सभी यूएन के साथ सुरक्षित ढंग से सम्पर्क व बातचीत कर सकें.”