कोविड-19: भारी क़र्ज़ों वाले देशों पर अत्यधिक दबाव, बाज़ारों में ठहराव

अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों और वित्तीय विशेषज्ञों ने आगाह करते हुए कहा है कि जो देश अत्यधिक सार्वजनिक क़र्ज़ के दबाव तले दबे हैं उन पर कोविड-19 महामारी के माहौल में बहुत गहरी आर्थिक प्रभाव होने की आशंका है. इन देशों की मदद के लिए एकजुटता के सिद्धांत पर आधारित पुनर्गठन योजनाओं का आहवान किया गया है.
वैश्विक महामारी कोविड-19 की शुरुआत से ही विश्न बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सहित संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ, क्षेत्रीय संगठन और जी20 जैसे समूह बाज़ारों के स्थायित्व, बेरोज़गारी रोकने के लिए मौजूद उपकरणों की समीक्षा कर रहे हैं. साथ ही विकास के क्षेत्र में जो कामयाबियाँ हासिल की गई हैं, उन्हें क़ायम रखने के प्रयासों पर भी ग़ौर हो रहा है.
The @WorldBank Group is acting swiftly on #COVID19. At the end of the Spring Meetings, @DavidMalpassWBG highlighted 3 key pillars of our response. https://t.co/CCIgRxtZTl pic.twitter.com/UrYXN14Pfj
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शुक्रवार को अफ्रीका के मुद्दे पर विश्व बैंक और आईएमएफ़ ने एक संयुक्त बैठक आयोजित की. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने सदस्यों देशों की मदद करने के लिए उठाए गए क़दमों के लिए इन संस्थाओं की सराहना की. साथ ही उन्होंने ये भी ज़ोर दिया कि अभी और ज़्यादा किए जाने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि ये वायरस जंगल की आग की तरह फैलेगा जिसे रोकने के लिए कोई चारदीवारी नहीं है. क़र्ज़ के बढ़ते बोझ को कुछ हल्का किया जाना बहुत अहम है.”
यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि अफ्रीका में परिवार और कारोबार नक़दी की क़िल्लत की समस्या का सामना कर रहे हैं और अफ्रीका क्षेत्र में ये समस्या वायरस के हमले से पहले से ही मौजूद थी.
अब जबकि देश करोड़ों लोगों को ग़रीबी के गर्त में जाने से बचाने के प्रयास कर रहे हैं तो असमानता का स्तर पर पहले ही इस स्तर पर बढ़ रहा है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. भँगुरता बढ़ रही है और नक़दी अर्जित करने वाली वस्तुओं की क़ीमतें गिर रही हैं.
कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई मौजूदा स्वास्थ्य व आर्थिक आपदाएँ बहुत से विकासशील देशों के लिए पहले से ही मौजूद अत्यधिक क़र्ज़ के माहौल में आई हैं. इस समस्या से दुनिया भर के मध्य आय वाले देश भी जूझ रहे हैं.
वर्ष 2008 के वित्तीय संकट से ही, बहुत से विकासशील देशों में बाहरी क़र्ज़ में बहुत ज़्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. निम्न ब्याज दरों और उच्च नक़दी उपलब्धता की बदौलत बहुत से देशों के लिए व्यावसायिक क़र्ज़ आसान बना दिया.
जनवरी 2020 तक, 44 प्रतिशत कम विकसित और निम्न आय वाले विकासशील देशों की क़र्ज़ स्थिति को उच्च जोखिम या अत्यधिक दबाव वाला माना किया गया था.
कोविड-19 द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों के कारण और भी ज़्यादा ख़तरनाक परिणाम हुए हैं. दुनिया भर के वित्तीय बाज़ारों में जड़त्व की स्थिति पैदा हो गई है क्योंकि निवेशक उभरते बाज़ारों और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से अपनी धनराशि निकालने के लिए उतावले दिख रहे हैं.
वैश्विक महामारी ने देशों के राष्ट्रीय बजटों पर अत्यधिक बोझ डाल दिया है और बहुत से देश अपनी जनता की स्वास्थ्य ज़रूरतें पूरी करने, बढ़ती बेरोज़गारी का मुक़ाबला करने और अपनी अर्थव्यवस्थाओं का सहारा देने में संघर्ष कर रहे हैं.
यूएन विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अफ्रीका पिछले 25 वर्षों में शायद अपनी पहली आर्थिक मन्दी का सामना करेगा, जबकि लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई देश अपने इतिहास में सबसे बुरी आर्थिक मन्दी का सामना कर रहे हैं. इसी तरह की परिस्थितियाँ एशिया और अरब क्षेत्रों में देखी जा रही हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने इन्हीं हालात को देखते हुए कोविड-19 महामारी का मुक़ाबला करने के लिए एक व्यापक पैकेज की हिमायत की है जिसकी धन उपलब्धता वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम दो अंक प्रतिशत में रखी जाए.
यूएन ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से भी आग्रह किया है कि वो तबाही मचा देने वाले क़र्ज़ संकट को रोकने के लिए हर संभव उठाएँ. साथ ही महामारी का वैश्विक मुक़ाबला करने के प्रयासों में क़र्ज़ से राहत मुहैया कराने को भी अहम प्राथमिकता दिए जाने पर भी ज़ोर दिया गया है.
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरश ने आईएमएफ़ और विश्व बैंक समूह की संयुक्त बैठक में बोलते हुए जी20 द्वारा उठाए गए शुरुआती क़दमों का स्वागत किया. इनमें अंतरराष्ट्रीय विकास एसोसिएशन वाले देशों के क़र्ज़ संबंधी भुगतान को स्थगित करना प्रमुख है.