वैश्विक महामारी के दौरान मीडिया के लिये कठिन हुए हालात

पूर्वी योरोप के मोलदोवा में एक कार्यक्रम की कवरेज के लिये जुटे पत्रकार.
© UNICEF Moldova
पूर्वी योरोप के मोलदोवा में एक कार्यक्रम की कवरेज के लिये जुटे पत्रकार.

वैश्विक महामारी के दौरान मीडिया के लिये कठिन हुए हालात

संस्कृति और शिक्षा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि कोविड-19 महामारी का एक बड़ा नुक़सान, जनहित के लिये काम करने वाले मीडिया संगठनों के समक्ष उत्पन्न वित्तीय चुनौतियों के रूप में सामने आया है. यूएन प्रमुख ने जनहितैषी मीडिया के लिये समर्थन जुटाने के उद्देश्य से, बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है.  

एक अनुमान के मुताबिक़ इस वर्ष, अख़बारों को अरबों डॉलर का नुक़सान हो सकता है. 

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इसके मद्देनज़र, उन्होंने सचेत किया कि कुछ लोगों को डर है कि वैश्विक महामारी, मीडिया के विलुप्त होने की घटना बन सकती है.   

यूएन प्रमुख ने कार्यक्रम के लिये पहले से रिकॉर्ड कराए अपने सन्देश में कहा, “हम ऐसा होने देने का जोखिम मोल नहीं ले सकते.”

महासचिव गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि स्वतन्त्र, तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग, वैश्विक कल्याण के लिये बेहद अहम है, जिसकी मदद से सुरक्षित, स्वस्थ व हरित भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है. 

यूएन प्रमुख ने देशों से हाल ही में स्थापित ‘जनहित मीडिया के लिये अन्तरराष्ट्रीय कोष’ (International Fund for Public Interest Media) को समर्थन प्रदान करने की पुकार लगाई है.

इस कोष का लक्ष्य मुख्यत: निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में स्वतन्त्र मीडिया संगठनों के भविष्य को सुरक्षा प्रदान करना है. 

3 मई को ‘विश्व प्रैस स्वतन्त्रता दिवस’ से पहले, संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग (DGC) ने परोपकारी संगठन - Luminate, के सहयोग से यूएन के नेतृत्व वाली ‘वैरीफ़ाइड” पहल के तहत इस कार्यक्रम का आयोजन किया.

वैरीफ़ाइड मुहिम का उद्देश्य, कोविड-19 से मुक़ाबला करने के दौरान तथ्य-आधारित जानकारी साझा किये जाने को बढ़ावा देना है.  

वैश्विक महामारी के दौरान भरोसेमन्द सूचना की अहमियत को रेखांकित किया गया है, जोकि एक बुनियादी मानवाधिकार से बढ़कर, जीवन और मृत्यु से जुड़ा प्रश्न है.

इस पृष्ठभूमि में, संयुक्त राष्ट्र, भ्रामक सूचनाओं व ग़लत जानकारी, और नफ़रत भरे सन्देशों व भाषणों से मुक़ाबला करने के लिये प्रयासरत है.     

घाना के सूचना मन्त्री कोजो ओप्पोन्ग-न्क्रुमाह ने बताया कि ‘इन्फ़ोडैमिक’ - भ्रामक सूचनाएँ फैलने की महामारी, की वजह से आर्थिक संकट और गहरे हुए हैं, जिसका सामना मीडिया को भी करना पड़ रहा है. 

उन्होंने कहा कि लोग झूठी सामग्री तैयार करके फैला रहे हैं और मीडिया के राजस्व में कटौती की जा रही है.

ऐसे में आवश्यक पेशेवर कौशल का अभाव पैदा होता है और मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता पर जोखिम भी, विशेष रूप से तब, जब इस तरह की ग़लत और मनगढ़न्त सामग्री को बार-बार प्रसारित किया जाता है. 

मीडिया के समक्ष चुनौतियाँ

वैश्विक महामारी से मीडिया पर हुए असर के आकलन के लिये एक सर्वेक्षण कराया गया जिसमें 125 देशों के 14 हज़ार पत्रकारों और समाचार प्रबन्धकों ने हिस्सा लिया. इस सर्वे को पत्रकारों के लिये अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र (ICFJ) और कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने साझा रूप से करवाया. 

आईसीएफ़जे की प्रमुख जॉयस बारनेथन ने बताया कि मीडिया, विज्ञापन से हासिल होने वाले राजस्व पर निर्भर है, और 40 प्रतिशत संस्थानों ने 50 से 75 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज होने की बात कही है. 

इसके परिणामस्वरूप वेतनों में कटौती हुई है और लोगों के रोज़गार छिन गए हैं. और यह एक ऐसे समय हो रहा है जब लोगों को बेहद ज़रूरी सूचनाओं की आवश्यकता है. 

मौजूदा हालात, महामारी के दौरान लोगों तक ख़बरें पहुँचाने के काम में जुटे पत्रकारों और उन पर मानसिक दबाव को भी उजागर करता है. 

सर्वेक्षण के मुताबिक़ लगभग 70 फ़ीसदी पत्रकारों ने बताया कि मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक असर, उनके काम का सबसे मुश्किल हिस्सा है. 

क़रीब एक-तिहाई का कहना है कि उनके संस्थानों ने ज़रूरी बचाव सामग्री व उपकरण मुहैया नहीं कराए हैं, जबकि महिला पत्रकारों पर हैरतअंगेज़ ढंग से हमले हुए हैं. 

जोखिम में लोकतन्त्र

आईसीएफ़जे प्रमुख के मुताबिक़, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएँ नए सामान्य हालात की ओर लौटेंगी, विज्ञापन राजस्वों में फिर से बढ़ोत्तरी होगी.

हालाँकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि हालात क्या इतने सुधर पाएंगे कि जनहित में मीडिया के काम को जारी रखने के लिये ज़रूरी धनराशि का स्तर हासिल किया जा सके.

“जोखिम केवल पत्रकारिता के लिये नहीं है, बल्कि मेरे विचार में, लोकतन्त्रों के भविष्य पर भी है.”

इस वर्ष के लिये यूएन प्रैस स्वतन्त्रता पुरस्कार विजेता और फ़िलिपीन्स की पत्रकार मारिया रेस्सा ने कहा कि पत्रकारिता का मिशन इससे पहले कभी इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा.

अधिकतर लोग अब ख़बरें, फ़ेसबुक जैसे अन्य सोशल मीडिया माध्यमों से प्राप्त करते हैं, मगर यही मंच, तथ्यों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं. 

“अगर हमारे पास तथ्य नहीं है, तो हमारे पास साझा वास्तविकता नहीं है.”

“एक झूठ को लाखों बार दोहराने से वो एक तथ्य बन जाता है. तथ्यों के बिना, हमारे पास सच नहीं हो सकता. सच के बग़ैर, हमारे पास भरोसा नहीं हो सकता.”

उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का मौजूदा व्यवसाय मॉडल अब मृतप्रायः है, और विज्ञापन अब फ़ेसबुक व अन्य टैक्नॉलॉजी कम्पनियों के हिस्से में ज़्यादा हैं.

इन हालात में जनहित मीडिया संगठनों को, अपना वजूद बचाए रखने के लिये, टैक्नॉलॉजी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.